2008-05-12

जाट को ....जिसने कई साल मेरे साथ गुजारे ......भाग 1

ससे   पहली  मुलाकात  सी.ऍम.ओ ऑफिस के बाहर हुई थी ... जहाँ  हम  मेडिकल - चेकअप की लाइन  में खड़े थे ,जहाँ हम मेडिकल -चेक अप की लाइन में खड़े थे .चूँकि  हम  आल इंडिया एंट्रेस वाले पंद्रह  रिजर्व सीटो   वाले थे .उसमे भी आधे एब्सेंट सो लोग कम थे .ओर हम लाइन में आगे .... लाइन  छोटी  थी ,.... 'पूरे कपड़े उतरवा लेगे ' मुझे देखकर  वो  बोला  तो   मेरे  पसीने छूटने लगे  ओर दिल  राजधानी एक्सप्रेस की रफ़्तार से दौड़ने लगा ..... मेरे पीछे खड़ी लड़की तो लगभग बेहोश सी  हो  गई....अन्दर  ओंपचारिकता   भर थी...
...म बाहर निकले तो जाट मुस्करा रहा था हमने देखा हमारे बाद लड़की को लगभग घसीटते हुए उसके माँ- बाप अन्दर ले गये....बाद मे यही जाट हमारे रूम पार्टनर तय हुये....ओर शुरू के कुछ  दिन   हमें हरयाणवी भाषा से एडजस्ट होने में लगे ......वो अक्सर कहते "तैने बेरा है " कई  दिनों  बाद  हमे  पता  चला  की " बेरा  "का मतलब "पता " या   मालूम होना है ....जाट अपने  हरयाणवी    चुटकुले सुनाता ओर उसमे कई खास लड़को वाले चुटकले  होते  एक  बार  हम  लड़कियों के साथ केन्टीन बैठे हुए थे ओर जाट शुरू हुआ "एक चूहा भाजा जा रहा था ........भाजा का हरियाणवी मे  मतलब भागना होता है......हम लड़के बैचैन हो उठे ......जाट क्या सुना रहा है ...कल ही तो हमे सुनाया था.......जाट का  ध्यान हमने तोडा .जाट .ने अनसुना किया फ़िर शुरू हुआ "एक चूहा जंगल मे भाजा जा रहा था ".......
जाट ...किसीने आवाज दी जाट ने फ़िर अनसुना कर दिया....चूहा .....
जाट किसी ने आवाज दी "क्या कर रहा है ' ?
के कर रहा हूँ" चुटकुला सुनाने लग रिया हूँ ."
जाट लड़किया .....कोई फुसफुसाया .....अबे यो दूसरा चूहा है ............................जाट  गुस्से मे खड़ा हो गया ....

र्मी हो या सर्दी..... जाट गर्म पानी मे ही नहाता......,हॉस्टल  के  गीजर  ठीक  होने  से  पहले  उसके  पास अपनी एक रोड थी जिसे उसने एक लकड़ी के चारो ओर लपेट कर बनाया हुआ था ,उसे  वो अक्सर बाल्टी  मे डालता  ओर पानी जब खौलने लगता तब जाट नहाने की बाल्टी ले कर चलता ....रोज मैं उम्मीद करता की अभी बाथरूम  से उसके चीखने की आवाज आयेगी पर कभी नही आयी ....एक दिन सुबह जब वइवा की तैयारी मे मैं किताब हाथ मे लिए इधर से उधर उस कमरे मे  ठहल    रहा था
"देख  पानी  गर्म  हुआ  के  ना"?जाट बोला .....
मैंने पानी मे हाथ डाला ओर एक झटके से दूर जा गिरा .....जाट के ठहाका गूंज उठा ......
उसके बाद मैंने कभी उसे गर्म पानी पर नही टोका ....
मारे ठीक नीचे एक मैस  हुआ  करती थी  ओर  गर्मियों  मे  उसकी  बालकनी  मे उसका महाराज अक्सर मुह खोल कर   खर्राटो से    सोते थे ......जाट भाई को रात को  कई -कई बार  बहुत लगती थी ओर वे बाथरूम  की दूरी   से  बचते हुए  अक्सर बालकनी  से  ही  अपनी  शंका  का निवारण कर लिया करते थे ........एक   रात उन्होंने निवारण किया ओर अचानक तेजी से लौटे ओर अपना एतेहासिक कम्बल ओढ़ कर लेट गये.नीचे से तेज तेज आवाजे आयी..... कुछ मिनट बाद पता चला वे रजिस्थानी गालिया  है ...फिर थोड़ी देर में दरवाजा  इस अंदाज में भड भडाये    जाने लगा जैस पोलिस  वाले रेड पे हो.........हम उठे ओर दरवाजा खोला ..गीला मुंह लिए   .महाराज  थे .जानना चाहते थे   ये पराक्रम   हमारी बालकोनी से  तो नहीं हुआ   है ... जब  तसल्ली   हुई  तो वे  ऊपर   की   बालकनी  की ओर रवाना हुए .
जाट भाई  के पास  एक  रंगीन  कम्बल हुआ करता था जिसके  वे अक्सर नाराज हो जाने के बाद ओड कर लेट जाया करते ....ओर आवाजे देने पर भी  अपना मुह उसमे से बाहर नही निकालते ......उन दिनों नये -नये ताले फिट हुये थे.... जिनकी तीन चभिया दी गई थी जिसमे से एक चाभी हमारे लोकल दोस्तो के पास थी ओर उस ताले  मे  ये खासियत  थी की  आप उसकी एक क्नोब घुमा कर  जोर से बंद करो  तो वो लाक हो जाता था......तो एक सुबह हम आराम से उठे तो जाट गायब था  हम होस्टल- केन्टीन  गये  चाय -वाय पी वापस लौटे तो जाट कमरे मे नही था ,हम तैयार होकर कॉलेज के लिए रवाना हो गये ,पहली क्लास मे जाट नदारद .......पूरे किसी लेक्चर मे जाट नही दिखा ......ये साला जाट गया कहाँ ..?

..उन दिनों हमारा एक घंटे का लंच ब्रेक होता .....मेस मे भी जाट नही दिखा ......शाम को हम कशमकश मे होस्टल लौटे तो जाट खाली अंडर वियर मे सुलगे हुए खड़े थे....दरअसल वो बाथरूम मे अपने कपड़े धो रहे थे .....नहाने के साथ साथ ओर हम ताला लगा कर चल दिए ,दूसरी चाभी अन्दर रह गई ओर  पूरी   लोबी मे बदकिस्मती से उस रोज कोई नही आया ......हम उस रोज आगे आगे थे ओर जाट हमारे पीछे .......कई दिनों तक वे उस कम्बल को ओडे रहे ......

.....जाट की डाइट बहुत अच्छी थी इसलिए अक्सर पार्टियों मे वो देर तक खाना खाता मिलता .....एक बार पहली बार हमारे एक लोकल दोस्त ने हमे खाने पर बुलाया जिसकी मम्मी को हिन्दी लगभग ना के बराबर आती थी,खैर पहुँचने के थोडी देर बाद गोल गप्पे मेज पर बैठा कर सर्व किए गये ....१०-१२ खाने के बाद .....जब हम इस इंतज़ार मे थे कि नया कुछ आएगा ....हमे हाथ धोने को पूछा गया तो हम परेशान से हाथ धोकर बैठ गये .....वही हमारा डिनर था ......जाट ओर मैंने फ़िर लौटते वक़्त एक लारी पर खड़े होकर केले खाये.......

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