2008-05-06

पिछले दो दिन .....


रात को एक C.M.E से लौटते वक़्त जब घड़ी ने अंदाजन १२ बजाये होगे ,पार्किंग मे मेरे दोस्त ने मुझे टोका .. "अरे तीन दिन के बाद अपना रात का वक़्त खाली रखना ,बच्चे का जन्मदिन है .......जरूर मैंने कहा .उसकी गाड़ी पर विदा करने गया तो पूरी गाड़ी समान से भरी थी .क्या है यार ?मैंने पूछा 

कम्बल है  "उसने कहा .
 इतने सारे ?
  अनाथालय के बच्चो के लिए है  .पहले सोचा उसी दिन बेटे के हाथो बंटवा दूँ पर उस दिन बहुत भागदौड़ हो जायेगी .सुबह हवन होगा ..... रात को पार्टी ....तो उस दिन वक़्त नही मिलेगा तो कल सुबह अपने बेटे को लेकर जायूँगा .....ख़ुद इसलिए बांटना चाहता हूँ की पता नही वहां का मनेजर उन्हें दे या न दे .....उसने एक सिगरेट जलाई .
 हम दोनों के मोबाइल लगभग साथ साथ बजे "अभी निकल रहा हूँ ,लगभग एक सा जवाब.
वही पार्टी वही  चेहरे उन पर चस्पा वही मुस्काने  ! अजीब बात है है ना , आने वाले को भी मालूम है उसे क्या करना है ओर मेजबान को भी..........बस हर साल कुछ नए चेहरे जुड़ जाते है क्यूंकि आपका दायरा बढ़ रहा है गोया की आपकी तरक्की आपके मेहमानों मे शुमार लोगो के ओहदे ओर उनकी संख्या तय करती है.
 सिगरेट का एक ओर कश !
" माँ बेचारी सीधी सादी थी ओर पिता जी आम नौकरीपेशा .. . हमारे पिता जी को हालात ओर उनकी अपनी पेर्सोनालिटी ने ईमानदार बना दिया था ,अपने घर से जो गाँव मे था एक मात्र पढे लिखे ,जिम्मेदारियों से घिरे हुए ,रिश्वत मांगने की हिम्मत नही थी ओर फ़िर कुछ पोस्टिंग ऐसी जगह जहाँ ऊपर की कमाई कुछ नही......एक स्कूटर हुआ करता था लंबा सा सफ़ेद रंग का ..पिता जी रोज सुबह कई मिन्टो तक उसमे किक मरते तब जाकर स्टार्ट होता था .....विजय मोडल था .....मेरे बड़े भाइयो की पेंट काटकर दरजी उन्हें मेरे नाप की बनाता.....आधी तनखा गाँव चली जाती... .इसलिए मेरा बर्थ डे बचपन मे कभी नही मना,हम पुराना निक्कर पहनकर दोस्तो के बर्थ डे पे जाते वहां केक कटता हुआ देख  सोचते हमारा बर्थ डे क्यों नहीं मनता ?
हर बार आकर मां से झगड़ते   .

 हमने बस इतना सीखा कि ५ रुपये कि पेस्ट्री लेकर घर पे मोमबत्ती लगाकर भाई बहन खा लेते थे .   माँ कहते बेटे मकान बनना है है ना ! कितने साल वो मकान बनता रहा ,इसलिए मैं भी चाहता हूँ की मेरे बच्चो का जन्मदिन मैं तरीके से मनायू पर अन्दर एक आत्मा बैठी है उसके लिये भी मुझे ये कम्बल बाँटने होगे .
एक सिगरेट ओर जल गई थी .
मुझे अपना एक सीनियर याद आया वो अक्सर कहा करता की “आपके पास ना ज्यादा पैसे होने चाहिए ना कम  . ना इतने कम हो की आप का बच्चा होस्टल वापस आने के लिये ट्रेन के फर्स्ट क्लास मे जाने की फरमाइश करे तो आप पुरी ना कर पायो पैसे होने चाहिए पर अगर वो प्लेन मे आना चाहे तो आप को सोचना पड़े ...थोड़ा हाथ तंग रहता है तो इंसानियत ओर पैसे के लिये तमीज बनी रहती है.

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