2008-06-03

संवेदनायो का मर जाना दरअसल आपका मर जाना है ..



कुछ बादल के टुकड़े ,कुछ ख़ूबसूरत लम्हे जाया हुए
जेब टटोली तो ढेर सारे सिक्के जमा हुए थे…… 


लो एक ओर दिन ख़र्च हो गया ज़िंदगी का







रविवार को दोपहर बाद किसी काम से दिल्ली जाना हुआ ,नेहरू प्लेस पर एक ब्रिज के नीचे दो मिनट को गाड़ी रेड लाईट पर रुकी तो बच्चो को ब्रिज के नीचे आपस मी खेलते हुए ओर हँसते हुए देखा ,दोनों के हाथो मी किताबो के बंडल थे ,जो शायद उन्हें बेचने के लिए दिए गये थे पर वे उन्हें छोड़ आपस मे हंस खेल रहे थे , मैंने अपने बराबर मे सोये हुए एक डॉ साहब को देखा ,जो तकरीबन मुझसे उम्र मे २० साल बड़े होगे ,वे सो रहे थे ,सोते वक़्त भी उनके चेहरे पे अजीब सी शिकन थी ....... याद करने की कोशिश की कब मैं खुल के आखिरी बार हंसा हूँ... कल दिन भर अजीब से ख्यालो मे उलझा रहा ...


रात को "आहा जिंदगी" का एक पुराना अंक हाथ आया ... तो उसकी कई बातें कही गहरे तक मन मे उतर गई ,सोचा उन्हें कुछ आप से बाँट लूँ ,कुछ ख्याल भी साथ साथ दिल मे आए.....
1.लेखक होना ओर बात है अच्छा आदमी होना दूसरी बात, सच बात है, टोलास्टोय जैसे महान लेखक अपनी वास्तविक जिंदगी मे शायद उतने महान नही थे जितने वो कागजो मे दिखते थे
२.आप चाहे जो कर ले पटना मे ठेकेदार क़ी पॉल खोलने वाले युवा इंजिनियर क़ी हत्या पर एक फाउंडेशन ज़रूर बन जायेगा लेकिन तिहार ज़ैल क़ी कॅंटीन तो पप्पू यादव के इशारे पर छूटेगी।

3. आदर्श का क्या पैमाना है?किसी ने कहा “अच्छा करो,किसी को तकलीफ़ मत दो ओर मज़ा करो.जब पूछा गया क़ी अच्छा क्या होता है?जिसे जो अच्छा लगे वही अच्छा. हो सकता है जो मेरा अच्छा हो वो आपको बुरा लगे. एक बार पैसा ओर नाम कमा ले तो कौन पूछता है कहाँ से आया?एक बार सफल हो जाइए फिर आदर्श बनाते …फिरीये … इसे पड़कर एक शेर याद आया
जहिदो जन्नत मे जाना कोई तुमसे सीखे

हर गुनाह से तौबा कर ली जब जवानी जा चुकी”
मैने ऐसे ही एक सज्जन अपने जीवन मे देखे है ,जो रिटायर होने के बाद अचानक आदर्शो क़ी बात करने लगे थे,पूरे जीवन उन्होने भ्रष्टाचार से ख़ूब धन एकत्र किया था।
सामाजिक ओर व्यक्तिगत आदर्श अलग अलग होते है,उनकी मिलावाट ना करिए. ऐसा क्यू है क़ी गुनाह करने वाले लोग ही उँचे बन पाते है?जिसे सफलता मिल गयी वही नायक……..उदारहण के तौर पर देखिए सलमान ख़ान हिरण को मार कर मुस्करे खड़े है, सेलीब्राती होने के नाते उनकी बड़ी सामाजिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए,अब वे निर्दोष होने क़ी रात लगाकर मंदिर –मस्जिद के चक्कर लगते है, ओर बेचारे लोग इस चिंता मे घुल रहे है क़ी सलमान ने ज़ैल क़ी रोटीया कैसे खाई होगी?कितने आदमियो को कुचला था उन्होने किसी को याद नही? लोग 50 लाख मंदिर मे दान कर देगे पर सड़क पर खड़े किसी ग़रीब को दुत्कार देगे. सुप्रसिद्ध लोगो के आदर्श-विरोधी कामो के बावजूद वे सफल बने रहते है, क्यूँकी आदर्श छविया अर्थशास्त्र द्वारा घड़ी गयी है,अब आदर्शो क़ी सूची नही बनती,प्रभावशलियो क़ी बनती है. अमिताभ बच्चन को देख लिजेए,तमाम ग़लत लोगो के साथ होते हुए भी वे प्रभावशाली बने हुए है.
लोग अपराध कर उसके बारे मे किताब लिखकर उसकी ‘रायल्टी” से लाखो –करोड़ो कमाते है। कही उसकी ग्लानि नही?

४.हर आदमी क़ी ये इच्छा होती है क़ी वो एक सफल जीवन बिताए, सामाजिक सफलतायो का मतलब सत्ता,शक्ति ओर धन है लेकिन समाज इस सफलता तक पहुँचने के लिए आदर्श भी स्थापित करता है जैसे मेहनत,प्रतिभा, ओर योग्यता। सफल होने क़ी राह कठिन है ओर लंबी भी ,इसलिए आसान पग्दन्डीयो क़ी तलाश क़ी जाती है। समाज के लिए सफलता महतावपूर्ण है चाहे वह पगडंडी वाली हो या सही रास्ते से तय क़ी हुई. हर व्यक्ति के अपने आदर्श है,जो सफल है. आज हम आम के ऐसे पेड़ लगाना चाहते है जो तुरंत फल दे हर इन्सान चाहता है कि शोहरत तो तुरंत भोग सके ओर उसे ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग मे ला सके ओर इसलिए सफलता हमे जल्दी से जल्दी चहिये।पर्सिद्धे से लोग अच्छाई को भी जोड़ लेते है।जब हम गेंहू का बीज़ बोते है तो हमे 3 महीने मे फल प्राप्त हो जाता है,लेकिन हम आम का बीज़ बोते है तो हमे आम 5 साल बाद मिलने शुरू होते है,लेकिन गौर करने वाली बात है क़ी आम का पेड़ हमे अगले 100 साल तक फल देता रहेग.जब्कि गेंहू क़ी फ़साल केवल एक बार मिलेगी. कृषि से धीरज क़ी अच्छी शिक्षा ली जा सकती है्अर नये दिन का सामना धीरज ,शॅंटी ओर विश्वास से करना ज़रूरी है.

५.इमानदर व्यक्ति वह नही जो कभी झूठ नही बोलता ,हम आप सभी जानते है ऐसा होना संभव नही है.बल्कि वह होता है जिसे अपनी ग़लती मानने मे कोई भय नही होता. शमा माँगना भी इक ईमानदारी है. हम ज़िंदगी भर अपनी आत्मा के साथ रहते है ,कितनी बार इससे बाते करते है ओर कितनी बार इसकी कही बतो को सुनते है?आप मे अंतरात्मा है तो आप मुनभाई क़ी 3 घंटे क़ी फ़िल्म से इतना कुछ सीख जाएँगे जो सलमान ने 40 ओर संज्या ने 50 सलो मे नही सीखा. जब आपको अपनी आत्मा से शर्मिंदा होना पड़े ऐसी सफलता का आनंद आप नही उठा पाएँगे. कहते है बेईमानी सबसे ज़्यादा ईमानदारी के साथ क़ी जाती है,बेईमानो का हिसाब अपने आदर्शो के हिसाब के साथ चलता है…. “



ज़रूरते पूरी हो सकती है लालच नही

6. ये सब सोच-पद कर लगता है कितनी निराशा है,हम आप सभी जानते है क़ी सही क्या है ,ग़लत क्या है, पढ़ कर ख़ुश होते है ,पर उसे अपने व्यहवार मे नही उतारते…… एक मनुष्या सुबह उठता है,उसके पास काम करने के कई विकल्प मौजूद होते है,फिर जब वह ये फ़ैसला करता है क़ी उसे क्या करना है ओर वह उन कार्यो को प्राथमिकता देता है,जिन्हे वह समझता है ,यही मुल्या है. मुल्यो को जब हम अपने कार्यो मे शामिल करते है तो एह हमारे चरित्र का रूप लेता है. चरित्र क्या है ...मैं तो सामान्य जीवन मे घटी हर घटना को किसी व्यक्ति के चरित्र से जोड़ कर देखता हूँ ,कही किसी जाम मे फंसी हुई गाडियों की line तोड़कर आगे जाने वाला व्यक्ति, मुश्किल वक़्त मे किसी अनजान इन्सान के काम न आने वाला इन्सान ,अपनी बेटी की शादी उसकी इच्छा के विपरीत अपने आप तय करने वाला इन्सान ...कौन से पैमाने पर मापा जायेगा?
जिंदगी मे आने वाली अधिकतर मुश्किलो का कारण “काम तुरंत करने” के प्रति हमारा आलास या फिर प्रलोभनो को “ना” नही कह पाना होता है.
मेरे पिता ने भी कई बार कहा हैउस व्यक्ति को इमानदर कहना ठीक नही जिसने बेईमानी क़ी कभी परीक्षा ना दी हो?यानी प्रलोभन के वक़्त आपमे हिम्मत थी ना कहने क़ी? बुढ़िमानी ज्ञान का सही उपयोग है. आपका नही जानता पर मेरे पेशे मे कई बार होता है क़ी किसी ग़रीब से पैसे लेते वक़्त मन कही कचोटता है,पैसे वाले पैसा नही देना चाहते ओर रसूख वाले लोग सिफ़ारिश पर पैसा बचाना चाहते है. कई बार कोई गरीब इस तकलीफ मे होता है की जानता हूँ सस्ता antibiotic असर नही करेगा ..बीमारी अमीरी गरीबी का भेदभाव नही मानती ......हम सिक्के जोड़ने मे दिन ख़र्च करते जा रहे है , आपने कभी अपनी ज़िंदगी का हिसाब किया है?कितने दिन आपने उस तरह से जिये है जिस तरह से आप जीना चाहता है?अपने आस-पास देखिए कितने लोग आपने ऐसे जुटाए है जो आप से सच मे प्यार करते है?कितने लोगो ने आपको अब तक दुआ दी है?कितने लोग आपके नही होने पर आपकी कमी महसूस करेगे?
तो क्या सब ओर निराशा ही है ....
ऐसे मे आज सुबह हिंदुस्तान अख़बार के पहले पन्ने पर ये पढ़ा

एक दिहाडी मजदूर की लाडली तो दूजी रंगाई-पुताई करने वाले कामगार की बेटी . दोनों के इरादे बिल्कुल साफ की एक दिन डॉ बनके रहना है ,फहमिना C P MT मे सलेक्ट तो ७ बरस की प्रीति रोजाना कीचड भरा नाला पर का पढने जा रही है ,मेधा के साथ जज्बा अगर मिल जाये तो फ़िर ऐसे ही "strret स्टार" जन्मते है ,फ़िर मुफलिसी राग बेमानी हो जाता है ओर सुविधायों की बारात बेमतलब ,पर पता नही क्यों सुविधायों का ताना बना बुनने वाले को ऐसी मेधायो के चौबारे नही दिखते ?वो सुविधाये चाहे सरकारी टेंट से निकली हो या किसी खाते -पीते समाज की अंटी से ,फ़िर भी लाखनऊ की फहमिना ओर प्रीति के मूक ज़ज्बे इन पत्थर दिलो से सवाल नही करते .......सलाम मेरे देश के बच्चो ......

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