2008-07-14

जिंदगी मंटो की कहानी से भी बेरहम होती है

मंटो कौन ? अश्लील कहानी लिखने वाला ये नामुराद लेखक इस सदी की विलुप्त होती प्रजातियों में से एक है .... लेकिन जिंदगी मंटो की कहानी से भी बेरहम होती है , ये उसूलो को तो खाती ही है दुःख दर्द ओर उम्मीद भी चबा चबा कर बिना थूक सटके निगल जाती है .....दया का बाप जब अपनी बाकी की तीन बच्चियों का भविष्य 'मुआवजे "की उस रकम में देखता है .जो केस दायर ना करने के एवेज में उसी दी गयी थी ....तो महीनो  रेप की शिकार   दया  को इसी "सामान्य जिंदगी ' में लाने के लिए जूझती  साइकेट्री डिपार्टमेंट  की फिमेल रेसिडेंट कही भीतर से टूट जाती है . सच की इस विकृत दुनिया के बीमार समाज का इलाज उसके पास नही है ........
समाज  भले ही  कितने हिस्सों में बंटा हो  ......  पर इसका पाटा  औरत को ही पीसेगा ?
जब  किसी  जयंती  बेन का शराबी पति उसे डंडो से अधमरा करता है ओर उसके 5  महीने बच्चे को साथ   लेकर उसकी बूढी सास अस्पताल आती है तो आप् का मन करता है की उसके शराबी पति को लात घूंसों से मर कर अधमरा कर दूँ ..........आप् शायद एक दो बार ऐसा कर भी दे पर जब हर हफ्ते कोई जयंती बेन आती है तो आप् उसके घावो को खामोशी से स्टिच करते है ......साल दर साल आपकी खामोशी बढती जाती है ...ओर आपके हाथो की सफाई भी . .....अब आप बिना दर्द किये तेजी से स्टिच करना सीख जाते है ......लिजलिजे शराबी से आपको नफरत  तो होती है पर आप अपनी नफरत को दबाना सीख जाते है . ....शुरू में आप ऐसा कभी करते भी है तो यही जयंती बेन अपने पति को बचाने पट्टियों से लदी सामने आ जाती है …. महान औरत ?...देवी ?
ये कौन से संस्कार के बीज है जो सिर्फ़ औरतो के जिस्म में उगते है ,पलते है ? भूखे जिस्मो में भी ?
दस साल बीत गये है पर शायद दया अब भी सरकारी अस्पतालों में दिख जाती होगी, कभी उम्र बदल कर ,कभी चेहरा ..










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