2008-08-03

जीने की लौ कहाँ से जलती है ?



हम सब दरअसल गलतियों का पुलंदा भर है रोज सुबह कई मुखोटे डाल कर निकलते है ओर दिन को झूठो में लपेट उस पर सच का मुलम्मा चढाकर रात की ओर धकेल देते है उस पर "दुनियादारी ' का ग्लो साइन बोर्ड मजबूती से टिका देते है ,इस बोर्ड का साइज़ साल दर साल बढ़ रहा है


क्या आपने कभी सीढियों को . देखकर सोचा है कि . इनके माने किसी जिंदगी में भी होते है .....मैंने इन पर मायने बिछे देखे है.... जीते जागते मायने ..पहली बार उन्हें उसी हॉस्पिटल की पहली मंजिल पर देखा था( जो इन दिनों विस्फोट की वजह से चर्चा में है .).अहमदाबाद का सिविल हॉस्पिटल ..रेडियोलोजी डिपार्टमेन्ट ओर उसके ठीक ऊपर एक कमरा
एशिया के इस सबसे बड़े हॉस्पिटल की इमारत के एक कोने में गुजरात मेडिकल कौंसिल का एक दफ्तर भी है ,वही कुछ काम था हम दो लोग थे , जाट ने रेडियोलोजी डिपार्टमेन्ट ज्वाइन कर लिया था जाहिर था रात वही गुजरेगी...
रात को महफ़िल जिस कमरे में जमी उसका मालिक वही था ,अस्त व्यस्त उस कमरे में बिखरी ढेर सारी किताबे , एक कोने में रखा टेप रिकॉर्डर ...ओर कैसेटो में कैद जगजीत सिंह....मेहंदी हसन ...बीचों बीच इक पलंग उस पर कुछ अखबार के फैलाये हुए पन्ने ...जिसके इक कोने पर गोल्ड फ्लेक का पैकेट ओर दूसरे कोने पर इक इलेक्ट्रोनिक प्यानो . रखा था हवा से लड़ने को ... दो पैग के बाद प्यानो खुला ,टेप रेकॉर्डर बंद हुआ ...ओर कुछ गजले ..बाहर आयी वो गाता नही था पर सुनता बड़े गौर से था उसे मेहंदी हसन की एक एक गजल मुह जबानी याद थी ,कभी कोई लफ्ज़ या शेर भूल जाते तो वो फ़ौरन दुरस्त कर देता ,...देर रात तक हम बैठे ...... ये हमारी पहली मुलाकात थी.....
उसका असली नाम भारत भूषण था पर लोग उसे बी.बी बुलाते थे ओर इसी नाम से उसे इतना याद रखने लगे कि कभी कोई कुरियर वाला या कोई रजिस्ट्री उसके नाम से आती तो पहली बार मे वापस हो जाती या अस्पताल मे दर्जनों डिपार्टमेन्ट मे घूमती..बाद मे किसी को याद आता अरे अपना बी.बी...
उसके चेहरे में कोई असाधारण बात नही थी ,उसका चेहरा आम चेहरों जैसा था इतना आम की आप शायद एक बार मिलकर उसे याद न रख पाये पर उसके दिल के भीतर जिसके भीतर जाने के लिए आपको ढेरो दरवाजे पर करने होते थे एक लौ थी एक ऐसी लौ जो कई सालो से muscular dysdrophy नाम के अंधेरे से खामोशी से लड़ रही थी .( ऐसा रोग है जिसमे आपकी मसल्स की शक्तिया आहिस्ता आहिस्ता ख़त्म हो जाती है ओर एक अवस्था ऐसी आती है की आप की साँस लेने में मदद करने वाली मसल्स भी इसका शिकार हो जाती है )

उसके पिता साईकिल पर कपड़ो के गट्ठर रखकर जालंधर के इक गाँव में फेरी लगाते थे ,तीन बहनों का अकेला भाई उसे ओर उसकी छोटी बहन को इस अंधेरे ने घेर लिया था ....शायद बचपन के किसी मोड़ पर उसे लग गया था कि उसका बचपन आम बचपन नही है तभी उसने किताबो से दोस्ती कर ली.... पढने लिखने में आम बच्चो से कही बेहतर था ,शांत प्रकति का वो बच्चा 10 क्लास में वो अपनी बहन को साईकिल पे पीछे बैठाकर स्कूल जाता था ,12 क्लास तक आते आते उसने अकेले साईकिल से जाना शुरू किया ,अहमदाबाद के मेडिकल कॉलेज में जब उसने एडमिशन लिया तब उसका कमरा 2nd फ़लूर पर था ,दूसरे साल में वो 1st फ्लोर पर शिफ्ट हुआ ओर आखिरी साल में ग्राउंड फ्लोर पर …. रेडियोलोजी में एडमिशन मिलने पर वो पहले साल उसी कमरे में रहा उसके बाद ठीक  रेडियोलोजी डिपार्टमेन्ट के ऊपर चूँकि लिफ्ट थी …
वो इक बेहतरीन साकी था ..हर ब्रांड का जुगाड़ करता ...पूरी पार्टी का मेनेजमेंट करता ....नमकीन ,मूंगफली ..कोल्ड ड्रिंक्स ,सोडा सिगरेट .ओर खाना ..ओर . अगले रोज सुबह सुबह इक हिसाब का कागज मिलता ...की आपने इत्ते पैग पिये ,इत्ते बिखेरे ..इत्ती सिगरेट फेफडो में डाली .....इत्ते लोगो में आपका कुल जमा हिसाब ये है...उसकी ये  हिसाबी मशहूरी इतनी फैली की दूसरे डिपार्टमेन्ट के लोग भी पार्टियों की इत्तिला बी बी को देते .ओर अपनी फरमाइश उसके रजिस्टर में नोट कराते ...

उस डिपार्टमेन्ट में इक ब्लेक बोर्ड टंगा होता था रिपोर्टिंग रूम में(शायद अब भी हो ) ..जो उन रेसिडेंट डॉ की अपनी इक दीवार थी ...हॉस्पिटल से जुदा दीवार....... जिस पर वे फलसफे लिखते ....जो मन में आता वो लिखते ...कभी कभी क्रिकेट मैच का स्कोर भी.. बस इक अलिखित रूल था ...जो पहले आकर लिख देगा ..पूरा दिन वही लिखा रहेगा .बी बी अक्सर चोक की इस लडाई में फर्स्ट आता ...उसके फलसफे कभी उदासी में लिपटे नही होते ...
रेडियोलोजी डिपार्टमेन्ट में जिस किसी को छुट्टी लेनी होती थी .इक हाजिरी बी बी के पास भी लगाता था अपनी ड्यूटी को रिप्लेस करने के लिये..बी बी के यहाँ किसी की अर्जी कभी खारिज नही हुई...बाद के दिनों में लोग पहले प्रोग्राम बनते ओर बाद में बी बी को इत्तिला करते ..वो जब भी किसी से मिलता पूरा मिलता ,पूरा खर्च हो जाता पर फ़िर भी कुछ ऐसा अपने पास रख लेता जो सिर्फ़ उसका अपना था …यही उसकी अच्छाई थी ओर यही उसकी बुराई भी उसके बारे में ...लोग उतना ही जानते थे जितना वो बताता था

उसकी छोटी बहन उससे दो साल छोटी थी पर तीन साल पहले अपनी लडाई हार गयी थी ...जाट बताता है अमूमन घर न जाने वाला बी.बी उन दिनों जब घर से लौटकर आया तब कई दिनों तक खामोश रहा. ...उसके कमरे में महफिले बंद रही .हिसाब का रजिस्टर बंद रहा ...उधार के पैसो की भी जब दरकार नही हुई तब जाकर दोस्तों को चिंता हुई....चुचाप वो x रे की रिपोर्टिंग करता ,किसी के उकसाने से भी नही उलझता ....कई महीनो बाद जब उसने अपने दोस्तों को कमरे पे बुलाया .. दोस्तों को चैन मिला
.उसका शरीर धीरे धीरे उसका साथ छोड़ रहा था वो जानता था इसलिये ,PG ख़तम होने के बाद जालंधर के एक  रेडियोलोजी सेंटर में उसने इसलिए जॉब नही की क्यूंकि वहां भी ढेरो सीडिया उसके सामने थी ….
,जाट ने उसे अपने पास बुलाया ,यमुना नगर में अपने सेंटर पर … ९/११ सितम्बर वाले ऐतिहासिक दिन बी बी वहां आया ....कुछ दिन वहां रुक कर स्वाभिमानी बी बी नही रुका...उसने हिसार का एक सेंटर ज्वाइन किया ,जहाँ ऊपर ही सी टी स्केन था ओर ऊपर ही उसके रहने का कमरा … हिसार के उस सेंटर पर जब वे पहली बार गये तो बाहर से सीडिया देखकर बी बी बोला ..”.चल यार यहाँ से चलते है ...इधर भी साले कई सारे पहाड़ खड़े कर रखे है “,जाट के ये कहने पर की वे इतनी दूर से आये है इक बार मिल तो ले..फोन करने पर मालूम चला .पीछे से दूसरा रास्ता है...जिसमे लिफ्ट लगी है ..उन्होंने गाड़ी ऊपर चढाई फ़िर लिफ्ट से ऊपर गये ..लिफ्ट में बी बी बोला था ..अब ठीक है ...अपनी रोटी का जुगाड़ हो गया ... आखिरी वक्तों में .वो रात को कुण्डी लगाकर नही सोता था की कब वो हमेशा के लिए सो जाये शायद उसे अंदाजा हो गया था की . उसकी छाती तक बीमारी पहुँच रही है ओर किसी दिन साँस लेने की की उसकी कवायद मुश्किलों में पड़ने वाली है
30 september 2003 … उस रोज सोने के बाद वो नही उठा ...चुचाप लम्बी नींद ने आखिरकार उसे अपनी आगोशी में ले लिया .

गुलज़ार की एक नज़्म है लगता है उसी के लिए लिखी है

मुझे बस यूँ नही मरना है की सब मरते हुए देखे
की मेरा मुह खुला हो ,धौकनी चलती हो साँसों में
नाल इक नाक में नाक में अटकी हुई ,दो बाह की नस में
मशीनों की तरफ सब देखते हो ,धड़कने की लय
विलंबित है
ये कितनी मात्रा पे चल रही है
मुझे बस यूँ नही मरना
की एक्सीडेंट से कुछ यूँ गिरा जैसे किसी के हाथ से
चिल्लर बिखर जाये !
अठन्नी ,पैसे ,दस पैसे ,चवन्नी
बड़े गुस्से में पूरा नोट फाड़ के जैसे उडा देता
है पुर्जो में
मुझे बस यूँ नही मरना …..
मुझे कुछ ऐसे उड़ जाना है जैसे हिचकी लेकर ओस उड़ती है
की जैसे शेर कहते –कहते सकता पड़ गया .बस !
या लिखते लिखते अफसाना ,सियाही ख़त्म हो जाये !!


मै नही जानता की ऊपर कोई स्वर्ग या जन्नत जैसी कोई चीज़ है या नही कोई हमारे कामो का स्कोर कार्ड तैयार कर रहा है या नही …पर यदि वाकई कोई चित्रगुप्त है तो शेखर ,कृपा ओर बी बी जैसे लोगो को देखकर लगता है की कही हिसाब में गड़बड़ है .

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