2008-08-13

मेरे तजुर्बे बड़े है मेरी उम्र से



दोपहर एक हॉस्पिटल से कॉल आयी..रास्ते में भीड़ भरी सड़क पर अचानक आगे गाडियों में ब्रेक लगी ,उल्टे हाथ में मॉल पे लाल रंग से बड़ा सा मैकडावल लिखा हुआ ..उसके बाजू में "सिंह इस किंग" के पोस्टर पे अक्षय कुमार हँसता हुआ ...एक कोने पे बैनर टंगा हुआ ...केटमास पर ५०% की छूट ....दूसरा बैनर ......लिलिपुट पर ७०० रुपये की खरीदारी पे एक बैग....कार का शीशा खटका...ऐ साहब झंडा लो न....१० -१२ साल का लड़का .......बैनर को पढने की फ़िर एक कोशिश...साहेब लो न...मै .गाड़ी में लगायूँ ....कहते कहते उसने लगा दिया ....एक ओर दे ...मै उससे मांगता हूँ....पीछे गाडियों का हार्न बज रहा है...कितने का है एक ?मै पूछ रहा है ...एक रुपये का.....गाड़ी में चिल्लर ढूंढता हूँ ...एक पाँच का सिक्का हाथ में आता है....उसे दे देता हूँ....गाड़ी आगे बढाई है ...कुछ दूर चलने पर फ़िर गाड़ी रूकती है...शीशा खटक रहा है....साहेब ....बाकी के झंडे ....वो हांफता हुआ तीन झंडे मुझे देता है.....पिछले दो मिनट वो भागा है...... पीछे वाली गाड़ी का हार्न फ़िर बजने लगा है ..मै उसे कुछ कहना चाहता हूँ ..पर वो भीड़ में गुम हो गया है......
१० साल गुजर गये है आजादी ने बहुत कुछ बदल दिया है.....पर कुछ अब भी वैसा ही है......

रेलवे स्टेशन की ये पोस्ट कभी ब्लॉग शुरू किया था तब डाली थी...आज दुबारा वही दोहराने का मन किया ....जिन्होंने पहले पढ़ा उनसे गुजारिश की दुबारा पढ़े ....
13 august 2008 7.40pm




दिसम्बर की सर्द सर्दिया थी ओर कुहरा मुंह चिडा रहा था कुछ कुलियों ने अलाव जला लिए थे ओर हम गर्म जकेटो की  जेबों  मे  अपने  हाथो  दिए  ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे , समय काटने के लिए लगभग सारी "आउटलुक "पढ़ चुका था ,बावजूद इतनी सर्दी के नई दिल्ली  का  वो रेलवे स्टेशन अभी भी सोया नही था ,हम तीनो दोस्त छुट्टी बिताकर वापस कॉलेज सूरत जा रहे थे ओर रात १० बजे की जम्मू-तवी मे हम लोगो का रिज़र्वेशन था ,कोहरे की वजह से ट्रेन लेट थी ,घर सी लायी हुई आलू - पुरिया को हमने अखबार बिछाकर खाना तय किया ,वैसे भी पिछले दो घंटो से सिगरेट ओर चाय पी-पी कर फेफडे ओर पेट दोनों गाली देने लगे थे ,एक हफ्ते से घर मे रहने से उन्हें भी अब इस धुंये की आदत सी नही रही थी ,घर जाकर जैसे सिगरेट की तलब ख़त्म हो जाती थी ओर भूख बढ़ जाती थी ओर उस  एक  हफ्ते  मे  हॉस्टल  की  कभी एक कटिंग चाय ओर सुखी ब्रेड का वो butter toast,या सुखा पोह्वा या शेट्टी की कैंटीन का वो अजीब सा  संभार  का पानी छोड़ के आलू के ,गोभी के ओर तमाम परांठे  भी  माँ देसी घी मे तिरा कर खिलाती थी जैसे एक हफ्ते मे ही हमे गामा पहलवान बना के वापस भेजेगी ....
हमने एक suitcase को तिरछा किया ओर अखबार उसपे फैला कर अपने तीसरे दोस्त को आवाज दी जों रॉबर्ट  लुड्लाम के नोवेल मे घुसा हुआ था ,पुरी मे आलू -गोभी डाल के उसका रोल बनाके मैंने पहले को पकडाया ही था कि नीचे जमीन पे घिसट ता एक दस बारह साल का लड़का ठीक सामने आकर खड़ा हो गया .......मैले - कुचेले से कपड़ो मे उसने दो कमीजे ..........अपने बदन से ठंड को रोकने के लिए लिपटा रखी थी ......उसके हाथ मे ब्रुश था दूसरे मे बड़ा सा कपड़ा जों कई तहे बनाकर वो  शायद फर्श पे चलता था ,उसके कंधे पे एक खाकी रंग का स्कूल का बस्ता था पर उसमे किताबे नही जूते- पालिश करने का सामान था .......
उसने एक नजर हमारी आलू-पुरी पे डाली फ़िर अजीब से ढंग से हमारे जूतों को घूरता हुआ बोला "पोलिश करवाएंगे ? 
मेरे दोस्त ने उसे आलू-पुरी का एक रोल ऑफर किया तो उसने अजीब से अंदाज  में  उसे घूरा "पोलिश करवानी है "?  
उसने  हामी  भरी  ओर अपने जूते उतार दिए ,जब तक वो पोलिश करता रहा  उसने  एक टुकडा नही तोडा .....हम दोने ने स्पोर्ट्स   शूसपहने थे ....."कितने पैसे "  
मेरे दोस्त ने पूछा .तीन रुपया ?
मेरे दोस्त ने दस रुपये का नोट निकाला ...."छुट्टा नही है साहेब"
मेरे पास भी नही है ,अभी ट्रेन जाने मे वक़्त है तू इधर उधर घूम ले जब हो तब दे देना . '
वो लड़का एक टक मेरे दोस्त को देखता रहा ......उसके घुंघराले लंबे बाल माथे पे गिरे ........उन्हें हटाते हुए वो कुछ देर  तक  ठिठका  रहा  फ़िर आलू पुरी पे एक निगाह मार के घिसटता हुआ आगे चला गया ...हमने जल्दी जल्दी आलू पुरी ख़त्म की ,हमारा तीसरा दोस्त अब भी नोवेल मे दुबका हुआ था .............
"चाय पिएगा ? मैंने उससे पूछा उसने  हाँ  मे सर हिला दिया 
.हम दोनों उठकर आगे जा के एक चाय के स्टाल पे खड़े हुए वहां तीन चाय का आर्डर दिया ....एक सिगरेट फ़िर जल गयी .कितने पैसे "?मैंने पूछा . तीस रुपया . मैंने जेब से सौ का नोट निकाला ,साहेब छुट्टा दो . मैंने पर्स टटोला तो उसमे छुट्टा नही था ,मेरे दोस्त ने अपने पर्स मे से कुछ पैसे निकाले तो ढेर सरे सिक्के छन छन करके उसके पोलिश किये हुए जूतों के पास गिर गये . . मैंने उसे देखा तो उसके चेहरे पे मुस्कान आ गयी.....हम दोनों चाय के कुल्हड़ हाथ मे लिए लौटे तो वहां वही लड़का हमारे . दोस्त के पास उक्डू हो के बैठा था .....जो की अभी भी किताब मे मगन था ,
उसने हथेली मेरे दोस्त के आगे फैला दी "साहेब आपके बाकी पैसे "।



११ सल् पहले दिल्ली के रेलवे स्टेशन की एक रात

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