2008-09-08

अपने अपने हिस्से का सच


हम सब के पास एक फिल्टर होता है ,मायूसियों ओर ना-उम्मीदों को फिल्टर करते करते जब हम सहूलियत की दहलीज़ पर पहुँच जाते है तब हम केवल एक ही चीज़ फिल्टर करते है ...असहमति ..हम सिर्फ़ वही देखना सुनना चाहते है जो हमारे मुताबिक है

पिछले तीन चार दिन से मै उनके फोन को अवोइड कर रहा था ...पर कल रात जब उनका फ़िर फोन आया तो मै न चाहते हुए भी उनसे मिलने गया ..लायंस क्लब की उच्चधिकारी होने के कारण वे कोई केम्प करना चाहती थी ओर बतोर चिकित्सक उन्हें मेरी सेवायों की जरुरत थी.बचपन से वे मेरे उस मोहल्ले की पडोसन थी जहाँ हम किराये के मकान में रहते थे हालांकि अब उस मोहल्ले में न वे रहती थी ओर न मै .... ,अब वे एक बुटीक की मालिक थी ओर वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया था ,वे अब ज्यादा व्यवाहरिक हो गयी थी इसलिए शायद मुझे मेरे बचपन के नाम से ना बुलाकर डॉ साहब बुला रही थी .
"डॉ साहब इसमे आपका भी फायदा है ,आपको भी पबिलिसिटी मिल जायेगी "वे चाय का कप मुझे पकडाते हुए बोलती है ,मै सिर्फ़ सर हिलाता हूँ...लोबी में चल रहे टी वी में अचानक मोनिका बेदी दिखती है ,वे एकदम दुखी हो जाती है "इस औरत ने भी बहुत सहा है " मोनिका कह रही है उसके लिए डॉन ने वाकई बदलने की कोशिश की है.......फ़िर एक ओर जज्बाती सवाल ....कैमरा एक दम मोनिका के चेहरे के नजदीक है उनकी आँखों के आंसू पकड़ने की कोशिश ..मोनिका भी पोज़ दे रही है ,इंटरव्यू लेने वाले भावुक होजाते है ...कहते है हम आपको इस तरह उदास होकर जाने नही देंगे ....ये वही दीपक चौरसिया है जो कुछ दिन पहले तक सबसे तेज चैनल पर चिल्ला चिल्ला कर कहते थे "कही जाइयेगा नही हम बतला रहे है आपको डॉन की असलियत "....ब्रेक हो गया है.........
मीडिया ओर मोनिका ......दोनों की अपनी अपनी जरूरते है ,बाईट की छटपटाहट इतनी ज्यादा है कि अब सच के ढेर में से हर इंसान सिर्फ़ अपने हिस्से का सच उठाता है ओर बाकी छोड़ देता है ,उस ढेर में बचे खुचे ऐसे कितने सच आपस में इतने गड मड हो जाते है की झूठ से लगने लगते है .वे दुखी हो गयी है ,मुझे प्लेट उठाकर बिस्किट लेने को कहती है कि उनका मोबाइल फोन बज उठता है वे आवाज लगाती है १२-१३ साल कि एक लड़की उनका फोन लेकर आयी है .....फोन देकर वो टी वी पर आ रहे किसी विज्ञापन को देख रुक गयी है .....एक कोने में दीवार से सिमटी उसकी आँखे एक टक टी वी पर है .वे फोन पर बात करते करते .रुक जाती है ,..उसे आवाज देकर आँखे दिखाती है ..वो लड़की सहम कर चली गयी है ...चाय मुझे अचानक कड़वी लगने लगी है ....... ढेरो लोग अपनी निजी त्रासदियों से बाहर ना निकल सामाजिक सरोकारों से जुड़ नही पाते ओर जाने अनजाने उस जानिब झांकते नही है ,उनकी सवेदना कुछ कारणों के घेरे में ही सिमटी रहती है ....अगले ५ मिनटों में मै उनसे आने का वादा करके विदा लेता हूँ ..
घर पहुँच कर अनमने मन से टी वी का रिमोट उठाता हूँ.....लकड़ी की कुछ खपच्चियों को जोड़कर बनायी हुई जुगाड़ की एक नाव को चलाकर ८-१० साल की कुछ लड़किया रोजाना एक नदी को पार कर स्कूल जाती है ,राजिस्थान के इस गाँव में केवल दो लड़किया ही दसवी पास है.....NDTV की पत्रकार जब उनमे से एक बच्ची से पूछती है की वो क्या बनना चाहती है तो वो शर्माते हुए जवाब देती है "टीचर "

शुक्र है हौसलों की कोई उम्र नही होती .......

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails