2008-11-30

उन लम्हों का कर्ज ........

कुछ प्यादे है
जात के
कुछ प्यादे है
धर्म के
कब आगे बढ़ेगे
नही जानते
इस खेल के
नियम नही
कही भी खेलो
जैसे भी
कैसे भी खेलो
तय है
दोनो सूरतो मे
वे जीतेंगे
प्यादा ही हारेंगा
फिर भी
ये खेल है
व्यवस्था का
जिसमे खेलने वाले
बदलते है
प्यादे वही है
हम तुम
देश हारता है
हारने दो
धर्म तो जीतेंगा
जात भी
इंसान हारता है
हारने दो
घ्र्णा तो जीतेंगी
अविश्वास भी
कितने प्यादे है
क़तार मे
क़वायद जारी है
खेल की........



उन ४९ घंटो में हम आप नही ठहरे न ही देश के दूसरे हिस्से ...लोग रोज की तरह ऑफिस गये.बच्चे स्कूल गये ....कामकाज चलता रहा ....पर शायद कही एक हिस्सा रुका रहा .. ४९ घंटो तक......
जाबांज ओर देशभक्त सिर्फ़ जान न्योछावर करने के लिए नही होते ...वे देश की अमानत भी होते है ....हम कर्जदार है इन लोगो के ओर ऐसे तमाम गुमनाम लोगो के जो अपनी लडाई खामोशी से लड़ते है .इस देश की खातिर ,हमारी आपकी खातिर ..... दो दिन मोमबत्ती जलाकर उन्हें याद करने से हम ओर आप इस बलिदान से मुक्त नही हो पायेंगे ...हमें ओर आपको ओर ज्यादा अनुशासन लाना होगा अपने जीवन में .ओर कही न कही वही अनुशासन अपनी अगली पीडी में रोपना होगा .....हमें ओर आपको ओर बेहतर नागरिक ओर बेहतर भारतीय बनना होगा

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