2008-12-18

जिंदगी की दौड़ मगर बदस्तूर जारी है ......

अपने कमरे से किताबो के साथ साल १९९९
कितनी बार आपने ऊपर आसमान की ओर मुंह करके गाली दी होगी ओर कभी फरियाद भी ..."मै ही क्यों "???.....सोचिये ऊपर आसमान वाला हर दो मिनटों बाद चित्रगुप्त को कहता होगा "नोट करो "...बेचारा चित्रगुप्त इतने सालो से ओवरटाइम कर रहा है.....शायद इसलिए उसका हिसाब ग़लत हो जाता है कभी........ओर टाइमिंग भी...... मसलन मुलाहिज़ा फरमाईये ....

जब किसी सुहाने मौसम में आप की गर्लफ्रेंड बेहद रोमांटिक अंदाज मे आपसे लिपटी हुई मोटर साइकिल पर बैठी हो ओर आपके ठीक सामने आपके बेस्ट फ्रेंड के मम्मी पापा की कार ब्रेक लगाकर रुके ......ची ची.....
या
रात के दो बजे शहर के बीचों-बीच बने शानदार पुल पर आप अपने दोस्तो के साथ pee कर रहे हो ओर अचानक पुलिस की गाड़ी आपके पीछे आकर खड़ी हो जाये ओर आपको जिप भी बंद करने का मौका न मिले .......[
या
किसी पिक्चर हॉल मे आप बार बार सीटी बजा रहे हो ओर इंटरवल मे लाइट जलने पर आपको मालूम चले की मेडीसिन का खडूस हेड आपके ठीक पीछे बैठा मूवी देख रहा है ओर आप इस साल एक्साम गोइंग है .....

या
किसी रोज मूवी के दो टिकट एक्स्ट्रा होने पर आप उन्हें ब्लैक करने की सोचे ओर उस लड़की से टकरा जाये जिसे आप पिछले दो महीनों से इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहे हो........
या
जब आपका रूम पार्टनर दूध की कच्ची थैली फाड़ कर रोज आपके सामने गटक कर दूध पिये ....ओर आप फटी फटी आँखों से उसे एक हफ्ते निहारने के बाद एक दिन दूध का थैली मुंह से लगाये ... ....ओर फ़िर दूसरे लेक्चर में पेट पकड़ कर खड़े होये... क्लास से पाकिंग तक के सफर में आप संभल संभल कर चले ....बाइक स्टार्ट करे ....ओर कुछ दूर चलके आपकी बाइक का पेट्रोल खलास ........आधे किलोमीटर की वो दूरी ....कित्ती लम्बी होती है ना !
या
पहले साल आपने जिस लड़की को अपना कविताई प्रेम पत्र दिया हो वो तीसरे साल आकर हामी भर दे .......ठीक उसी रोज आप अब अपनी "लेटेस्ट " को प्रपोज़ करने के लिए केन्टीन में कार्ड जेब में रखे उसके साथ बैठे हो.... ?????
या
किसी रेस्त्रोरेंट मे आप ओर आपका दोस्त जम के खाना सूते ओर किसी की जेब मे तो पैसे न हो .... ....(.-उस वक़्त ATM का चलन नही था ) ओर आपको उसी होटल मे बैठा कर आपका दोस्त पैसो की जुगाड़ मे होस्टल वापस जाये .......ओर आप उन खतरनाक वेटरों की खून्खारती नजरो ....ओर काउंटर पर खड़े हट्टे कट्टे साउथ इंडियन की मूंछो के बीच अकेले हो.....तन्हा ...

ये लेख २५ दिसम्बर की उस दोपहर को ......जब हमारे शहर में बाद कोई डॉ आपको ढूँढने से आसानी से नही मिलेगा (सिवाय इमरजेंसी सेवाओ के ) जिस बैच के इस शहर के मेडिकल कॉलेज में २५ साल पूरे होते है ...वो उस रोज मेजबानी करता है ... ...अमेरिका ,यूरोप ,ऑस्ट्रेलिया .....यहाँ -वहां बिखरे उस बैच के लोग ..मय परिवार शरीक होते है ओर पुराने दिनों को याद करके ..हँसते रोते है ....हाथ में गिलास ,बड़ा पेट ओर जाते बाल लिए कोई एक "अपनी वाली" को भीड़ में ढूंढता है .. ओर किसी लड़की की ओर एकटक देखकर कहता है......एस्क्युस मी बेटा.....तुम्हारी मम्मी कहाँ है ?

.कॉलेज छोडे हुए अभी साल ही हुए है पर लगता है कई दशक बीत गये...आज भी कई बार टाइमिंग ग़लत हो जाती है ....आपका पुराना लंगोटिया यार ठीक एक रात पहले गाड़ी मे छलकते पैग रख कर उस रास्ते में बैठता है जिस रास्ते मे ढेर सारे स्पीड -ब्रेकर होते है ...ओर अगले दिन पिता श्री को उसी गाड़ी मे लम्बी ट्रिप पर जाना होता है.....चित्रगुप्त तुम सुन रहे हो.....




आज की त्रिवेणी


ख्वाहिशो की दौड़ में जरूरते भीड़ सी है
जिंदगी की जेब में तन्हाईयो के कुछ सिक्के है ......

हर दिन साहूकार सा ...हर लम्हे का कुछ मोल है

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails