2009-02-16

जिंदगी की कोई स्क्रिप्ट नही होती


वो फ्लेट देखने आया है ,मै उसके साथ सलाहाकार के किरदार में हूँ ,बचपन का दोस्त है ,हम पेशा है ब्रांच अलग है ...५ फ्लोर की उस बिल्डिंग में घुसते ही पार्किंग में हमें अलग अलग नंबर बड़े बड़े लिखे दिखायी देते है .हमारे चेहरे पे उगे प्रशन वाचमेन जैसे पढ़ लेता है ...सब फ्लेट के नंबर से है ..वो जवाब देता है .मै घर आए मेहमानों के बारे में सोचता हूँ ,इतने में वो एक कोने पर बने ऑफिस की तरफ़ इशारा कर देता है ...दो बिल्डरों में से एक अपने आदमियों के साथ हमें फ्लेट दिखाने ले चलता है ...छोटी -छोटी बालकनियों में सूरज शायद तय समय पर हाजिरी देने आता है ...
आस पास कोई पार्क है ? अचानक मेरा दोस्त उससे प्रश्न पूछता है .
अच्छे घरो के बच्चे अब पार्क में कहाँ खेलते है ?फ़िर हो -हो करके हँसता है ...रंग बिरंगी दीवारों के बीच पान मसाले से रंगे उसके दांत मिल गये लगते है .स्कूल-घर -टूशन ...यही तो है .वो कह रहा है .
हम सीडिया उतर रहे है अच्छे घरो के बच्चे ?मै सोच रहा हूँ.... बाहर गाड़ी में बैठकर वो घड़ी देखता है
डॉ सक्सेना के वहां भी तो जाना है .वो कहता है ...डॉ सक्सेना का चेहरा मेरी आँखों के सामने आ जाता है .
८ साल पहले जब मुझे प्रेक्टिस शुरू करे कुछ साल ही हुए थे तब उन्होंने कहा था 'अमरोहा जायेगा ?हफ्ते में एक दिन ,मेरे समधी का हॉस्पिटल है ....जिंदगी में प्लानिंग जरूरी है बच्चे ..उनका पेट डाइलोग मिलने पर अक्सर यही होता ..आठ महीने पहले मिले थे नर्सिंग होम रिनोवेट कर रहा हूँ ... एक शानदार इन्फरटीलिटी सेंटर .शांतनु को भी बुला लूँगा .. ...छोटे की बहू गायनेक है ही .....शांतनु बड़ा बेटा ऑस्ट्रेलिया में ही है ...५ महीने पहले छोटा भी अपनी बहू के साथ यु एस शिफ्ट हो गया था ...सुना है उन्हें अपने साथ ले जाने की बहुत कोशिश करी थी उसने ...
शमशान के बाहर गाडियों की भीड़ है ..अन्दर एक कोने में हम दोनों जगह लेते है ..शांतनु आ नही पाया है...थोडी देर में किसी का मोबाइल बजता है ..५० -५१ साल के वे शहर के बड़े डॉ है ...मोबाइल पर उन्हें बात करते देख गुस्सा आता है .मन करता है हाथ से छीन लूँ ओर जोर से गाली दूँ "रस्स साले ये कोई जगह है ! पर सिर्फ़ बुदबुदाता हूँ ..उस भीड़ को देखकर सोचता हूँ कितने लोग इसमे है जो वाकई दुखी है ....खून के रिश्तेदार ?उनमे भी छटनी ! ३५ -३६ साल की उम्र में मैंने कितने लोग जुटाये है अब तक ?एक दो ...गिनतियों का जोड़ मुझमे सिरहन भर देता है.
डॉ सक्सेना लेटे हुए है .शांत ....छोटा पंडित के साथ मन्त्र का उच्चारण कर रहा है ....जिंदगी की कोई स्क्रिप्ट नही होती


आज की त्रिवेणी

कभी बग़ावत , कभी मुख़ालत , रोज़ का क़िस्सा था
अब ख़ामोशी सी है हम दोनो के दरमियाँ.......

एक मुद्दत हुई उस जमीर से मिले

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