2009-02-27

"जरा नाखून तराशो इन अल्फाजो के "


बिट्टू की बुआ को गेट तक हम दोनों छोड़ने आये है ...उसका बेटा हाथ जोड़कर हमसे विदा लेता है ...हम बुआ को नमस्ते करते है ..उसके बेटे पर ऑफिस में कोई केस चल रहा है ,वो "छोटे" से उसकी सिफारिश करने आयी है ..
गेट के उस पार गुजरा वक़्त झाँक कर आँखों में देखता है ,उसका हाथ पकड़कर मै फलांग लगाकर .. कई साल पीछे चला जाता हूँ .......बचपन में... जब हमारे यहाँ टी वी नही होता था ...चार भाइयो के हमारे पिता के पास एक सरकारी नौकरी थी ..ओर आधी तन्खवाह गाँव भेजने के बाद ...घर चलाने का मध्यम वर्गीय साहस .. ओर उस पर दुस्हास था अपने घर का सपना ........उपरी कमाई के रास्ते में सरफिरे असूल अड़ जाते ..... न इतने बैंक थे ........ना लोन जैसा अलादीन का चिराग ....हमारी इच्छाओ को अक्सर माँ 'घर बनाना है ' की थपकियों में सुला देती ...
.टी.वी देखने हम अक्सर पड़ोस में .कभी कभी एक या दो दोस्तों के घर ..जाते ..मुझमे ओर छोटे में २ साल का अन्तर है इसलिए दोस्त भी एक थे....एक शाम खेल के बाद बिट्टू के घर कोई कार्टून देखने रुक गए ....२-३ मिनट ही हुए होगे ...उसकी बुआ ने कहा ..ए नीचे बैठो...नन्हे मन को कोई खरोंच लगी ....मै ओर छोटा खड़े हुए ..उसकी बुआ को देखा ओर उस घर से निकल गये ....घर में तीन दिन बाद टी.वी आ गया ...
वक़्त गुजरता रहा ...देहरादून पिता का प्रोमोशन ट्रांसफर...डिपार्टमेंट एक्साम .फिर प्रोमोशन .....वापस मेरठ ..अपना मकान ...पिता क्लास वन ऑफिसर की पोस्ट से रिटायर हुए ...छोटा छतीसगढ़ में जॉब पर लग गया ....फिर बंगलौर....हेड ऑफिस दिल्ली कुछ काम था .....इसलिए दो दिन के लिए घर आया हुआ है.....
वापस लौटता हूँ......छोटा उन्हें . जाते देख रहा है....... चाय का कप उसके हाथ में आ गया है....होठो पे लगाये कहता है ....."याद है भाई इसने हमें नीचे बैठने को कहा था "....पच्चीस साल.....मै उसको देखता हूँ
२५ साल से ये खरोंच उसको भी कभी -कभी चुभन देती है"



आज की त्रिवेणी

उठायो दोनों सिरे ओर कस के खींचो
ओर बाँध दो एक ओर गिरह .....

अब ये रिश्ता ओर कई साल चलेगा

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