2009-04-22

"उस जानिब शायद कोई खुदा निकले"


दोपहरे बागी है ,आग उगलती है ..खिड़की पर खडा ए. सी हर पांच मिनट बाद जोर से आवाज करके हांफता है ...इंकलाबी सूरज !!!! .... छोटू रिटर्न गिफ्ट में मिली "फ्लोरिसेंट गेलेक्सी "दीवार पर चिपका रहा है...साथ में ढेरो सवाल.....खुदा की जगह की बाबत भी...अखबार में उलझा मै ..बीच की किसी जगह पे अंगुली रखता हूँ .....
शाम सूरज को जैसे जबरदस्ती उसे उसकी खोली में धकेलती है ....."सारे इल्म अब इस कम्पूटर में कैद है ."...एक मरीज बाप शाम को अपने छोटे बेटे को मेरे लेप टॉप की डेफिनेशन देता है ... बचपन कितनी खूबसूरत अता है ....उस उम्र में बाप से बढ़कर दुनिया की कोई शै नहीं होती ......
....लौटते वक़्त देर हो गयी है ....रात नींद में है ....छोटू भी..दीवार पर उसकी गेलेक्सी चमक रही है ...दो एस्ट्रोनोट, एक परी, पृथ्वी मार्स ,ढेर सारे तारे .... कौन है जो "अर्थ " को "पुश " करके दिन को रात में बदलता है .....दीवार पर निगाह दौडाता हूँ ......कहाँ होगा खुदा ? जूपिटर की मरम्मत में उलझा या किसी 'ब्लेक -होल "में फंसा हुआ ... ......कितने सालो से ....कितना तन्हा है ना खुदा ?


सूत के धागों में बाँध के ख्वाहिशे
कई बार फेंकी है फलक पे


उस जानिब शायद कोई खुदा निकले

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails