2009-06-16

अबे सुन बे गुलाब !


जब रोज़ कमेटी में हमारा नाम शुमार हुआ ... जाट गंभीर से दिखे ..हम चिंतित हो गये .उनके गंभीर होने का मतलब किसी घटना के होने का आसार था..पिछली बार जब वे गंभीर हुये थे तब डॉ देसाई की लड़की को प्रपोज़ कर आये थे .वो तो शुक्र था की की उनकी ठेठ हरयाणवी उसकी समझ नहीं आयी थी .ओर वो उसे कोई लोक-गीत समझ सारु छे .... सारु छे ...करती रह गयी थी ....
उन्होंने गंभीरता से रोज़ डे के पोस्टर के आगे खड़े होकर अलग अलग एंगल से पोज़ दिये....हमारी छठी सेंस का एंटीना सिग्नल देने लगा ...शाम को जब हम कमेटी के चार मेंबर काम करने की रणनीति को लेकर डिस्कस कर रहे थे .जाट उसी गंभीर मुद्रा में अवतरित हुये ....
डिसकाऊंट कित्ता है .... उन्होंने पूछा .
ओह कम ओन प्रदीप ये रोज है मेरे साथ रोज कमेटी में शामिल लड़की बोली.....
.कोई स्कीम ....दो पे एक फ्री जैसी ....जाट
रोज में डिसकाऊंट ??? कितने अनरोमांटिक हो ... लड़की ने मुंह बनाया .....
तुम्हे कितने रोज चाहिए ......दूसरी थोडा नर्म पड़ी....हम चूँकि उनके रूम पार्टनर थे .इसलिए न्यूट्रल के किरदार में खामोश खड़े थे ...जाट ने एक लम्बी सी लिस्ट निकाल कर सामने रख दी .... कॉलेज की सारी जूनियर -सीनियर खूबसूरत लड़किया किब्ला सभी शामिल थी ...........फिक्स या " हाँ या ना" में अटकी पड़ी ...सबको पिंक रोज ...प्यार से पहले दोस्ती में जाट का अटूट विशवास था .....उसके बाद दोनों कई सारी गुलाबी पर्चिया निकाली जिनमे ऑटोग्राफ के साथ कोई सन्देश भी था ...किब्ला कोई अंग्रेजी कविता का हिस्सा ..मोर्डन दर्जे के रोमानटीजिम की ये नई थ्योरी थी .जिसके आखिर में "हेंस प्रूव्ड ' की जगह जाट के ऑटोग्राफ थे ....
पर एक नाम देखकर हम गश खा गये... वे न केवल फिक्स ओर खासी रौबीली थी ओर उस पे तुर्रा ये की उसका बॉय फ्रेंड भी हट्टा कट्टा गबरू जवान ......ओर सीनियर .......ओर हम दूसरे साल में ....
"अबे जाट वहां रहने दे ' हमने उसे अकेले में समझाया ..
.क्यों पिंक रोज देने में के है ? लाल थोड़े ही ना दे रहा हूँ ?जाट अंगद के पाँव की माफिक अडिग था ......
कल्चरल फेस्टिवल पांच दिन चलता था ....चौथे दिन रोज बाँटने थे ...आखिरी दिन हमने फिर उन्हें टटोला ....पर उन्होंने अपना फैसला रिज़र्व रख छोडा था ..
हमने डरते पड़ते बाकी रोज के साथ उसके रोज भी बाँट दिये ,.....रात को कल्चरल एवेनिंग थी ,गजल का प्रोग्राम था ...कोई साहब गुलाम अली की ऐसी तैसी फेर रहे थे ....लड़किया साडीयो ओर खूबसूरत लहंगों में ऑडिटोरियम में नुमाया होती ......हम एक जगह जाट के साथ बैठे हुए 'कोई उम्मीद बर नजर नहीं आती ' ग़ालिब के इस शेर को याद कर रहे थे ..... ..अचानक वही रौबीली मोहतरमा अपने गबरू बॉय फ्रेंड के साथ दिखी ..हम थोड़ा सिमट गये...
.हे प्रदीप तुम्हारा रोज मिला ..थैंक्यू ..वे बोली ......
"तो आज से अपां दोस्त."..जाट बोला था ......



weaker sex is stronger than stronger sex
because
weaker sex is weakness of stronger sex

अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल में रेडियोलोजी डिपार्टमेन्ट के रिपोर्टिंग रूम में अगर कोई सबसे दिलचस्प चीज थी तो वो था एक ब्लेक बोर्ड जिसका ईजाद वहां के पी जी ने आपसी तफरीह के लिया किया था ....उस पर 10 साल पहले लिखा एक फिमेल रेसिडेंट की लिखी एक सूक्ति .. ... जाट ने अपनी रेसीडेंसी वही की थी ....

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