2009-07-28

अपने अपने कैनवस पर


शुक्रवार .....रात नौ बजे ....
वे हमेशा की तरह किताबो में धंसे हुए है ...अपने चश्मे को ठीक करके मुझे देख मुस्कराते है ... वे पिता के उन मित्रो में से है जो मुझे बेहद पसंद हूँ...उसका एक कारण उनकी लाइब्रेरी का कलेक्शन भी है ..यूँ भी जब आप बचपन ओर किशोरावस्था की उस नाजुक सी बॉर्डरलाइन पे कन्फ्युस से खड़े होते हो....सवालो का एक बड़ा पुलंदा जेब में लिए .... ओर दूसरी ओर जैसे हर कोई पादरी का लिबास पहने होता है ...आपका आपका एक एक कन्फेशन सुनने को तैयार ..... किताबे आपके कई सवालों के जवाब देती है ....बिना कोई कन्फेशन सुने ...किताबे तबसे मेरे साथ है ....... उनकी लाइब्रेरी में खड़े होकर मुझे लगता है जैसे वक़्त दबे पाँव गुजर गया है बिना कोई आहट किये ... अपनी लाइब्रेरी के लिए वे खासे पोजेससिव है ..इसलिए शुरू के कुछ साल मेरी पहुँच उस लाइब्रेरी के दरवाजे तक रही.....कभी कभी आंटी की मदद से बेकडोर एंट्री मारी..ओफिसियल एंट्री तब मिली जब उन्हें लगा मै एक सीरियस रीडर हूँ ओर किताबे लौटाने में ईमानदार .....उसके छह महीने बाद ही मेरा एडमिशन मेडिकल में हो गया .....पर .कुछ पते ......कुछ गलिया ....उम्र के एक दौर में बड़े महत्वपूर्ण होते है ...छुट्टियों में .घर लौटने पर मेरे कुछ मकाम तय होते .उनमे से एक उनके घर का वो कोना था .....एक बार ऐसे ही एक छुट्टी में उनके घर के लॉन में बैठे कई लोगो की ऊँची ऊँची आवाजे सुनी थी...आधे घंटे बाद जब वहां से गुजरा तो वे अकेले थे ...हंसते हुए बोले थे " क्यों डॉ इगो मापने का भी कोई थर्मामीटर होना चाहिए ....नहीं ...
पिछले दो सालो से .उम्र के तकाजे से उनका मूवमेंट कम हो गया है ...इसलिए मुझसे ही अपने पसंद की किताबे मंगवा लेते है ....उनसे उनकी किसी पसंदीदा किताब का जिक्र करो तो उनकी आँखों में वैसी ही चमक उभरती है जैसे किसी बाप से उसके बेटे की तारीफ करने पर उभरती है ....उनकी बेटी विदेस में है ...बड़े बेटे की दस साल पहले एक्सीडेंट में म्रत्यु हुई है ....बहू की दूसरी शादी वे करवा चुके है ....अब सुना है ..बहू ओर भतीजे दोनों जायदाद में हिस्सा चाहते है....कोर्ट से नोटिस आया हुआ है .... ये वही भतीजे है ..जो अपने शराबी पिता से परेशान होकर गाँव से सर झुकाए उनके पास आये थे ....
उनकी किसी किताब को लेकर पहुंचा हूँ "अपने अंकल से कहो कुछ सामजिक भी हो जाये" .आंटी चाय का प्याला थमाते शिकायत करती है ..कोई मुसीबत आन पड़ी तो कोई खैर खबर लेने वाला तो हो.....आंटी की कई शिकायते मेरे बहाने जारी है .नयी भी ... पुरानी भी... जिसमे उनके कई पुराने फैसले भी. है...
वे खामोशी से सुनते है...फिर मुस्करा कर कहते है ..."जिंदगी एडिट नहीं होती डॉ ..यही मुश्किल है .. ...
बाहर निकलते वक़्त सोचता हूँ...की भगवान् ने अपनी एक बेहतरीन क्रियटीविटी गलत वक़्त में तो नहीं ......

मंगलवार सुबह ....साडे नौ बजे .......
एक रेफेरेंस देखकर लौटते वक़्त हॉस्पिटल के कोरिडोर में एक जानी पहचानी आवाज सुनकर मुड़ता हूँ ..जो डॉ अग्रवाल से जिरह कर रही . है .."अडसठ साल का आदमी खून नहीं दे सकता.... ये कहाँ का नियम है ...देखिये बिलकुल फिट हूँ .."वही है ...मै उन्हें एक कोने में ले जाता हूँ...वे हांफने लगे है ..नियम समझा कर उन्हें शांत करता हूँ.....आंटी ठीक है ....पहले तसल्ली करता हूँ .....फिर कौन है जिसके लिए वे खून देना चाहते है ....अन्दर कमरे में झांकता हूँ.....उनका छोटा भतीजा है....एक्सीडेंट हुआ है ...अगले कुछ पल खामोशी तय करती है.....
...कुछ देर ठहर कर उनसे विदा लेता हूँ....वे पीछे से आवाज देते है....चलकर नजदीक आये है ...."सुनो अपनी आंटी से कुछ मत कहना "....मै सिर्फ सर हिलाता हूँ.......".ओर अपने बाप से.भी ...."
सीडिया उतरते वक़्त बादल गरजे है .....बाहर बारिश है ......

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