2009-08-21

जाने क्या सोचकर वही गुजरा .....


दोपहर का सूरज भी अपनी दिहाड़ी करके जैसे सुस्ताने के मकाम पे है .ओर . हम नॉएडा के "ग्रेट इंडियन मॉल" की बसेमेंट पार्किंग मे दाखिल हुए है..., अन्दर उस पांच मंजिला इमारत में जुदा-जुदा ख्वाहिशे करीने से सजी है .....शोपर स्टॉप के लेडीज सेक्शन के किनारे पे एक काफी शॉप है ,वह रखी कुछ पेस्ट्रिया देखकर हमारे नन्हें मिया मचल गये है ,हमारी श्रीमती जी चूँकि अपनी शूपिंग मे व्यस्त है .... इसलिए मैं ओर आर्यन वहां कुर्सियों मे बैठ गये है ,उन्ही कुर्सियों के सीधे हाथ पे दीवार से लगे किनारे पे दो सोफे है ,काफी शॉप से थोड़ा बाहर निकले हुए मानो बाहर झाँक रहे हो ...,आर्यन ने अगले कुछ मिनटों में मुझसे आदतन मुश्किल सवाल पूछे .है .आदतन जिनका मैंने गोल मोल जवाब दिया.है .. पेस्ट्री आयी है पर उसकी सूरत उसे पसंद नहीं आयी है चुनाचे ... मैंने सैंडविच का ऑर्डर दिया है ...अपने लिए कोफी ....
.. फ़िर वो नजर आयी है .....परपल फ़्रोक मे ,नन्हें नन्हें पैरो मे आवाज करते जूते ,जिनकी आवाज जैसे पूरे शोपर स्टॉप मे गूँज रही है ..... पर कानो को बहुत भली सी लग रही है ......गोरी चिट्टी ..बिल्कुल परी सी .है ....उसके छोटे से कंधे पे एक पानी की बोत्तल ओर माथे पे बिल्कुल नन्ही सी बिंदी ..एक दम बीचों बीच ......वो आर्यन की तरफ़ बढ़ी ...."..मिष्टी "पीछे से आवाज आई ," लक्ष्मी मिष्टी को देखो "....आवाज का पीछा करता हूँ ....एक उम्रदराज महिला . एक युवती ओर एक लगभग ३0 -३५ की ...मोर्डन किस्म की एक महिला है... ,अंदाजा लगाता हूँ वही मिष्टी की माँ है... .उस किनारे पे रखे सोफे पे से एक १३ -१४ साल की दुबली पतली सांवले से कुछ गहरे रंग की एक लड़की उठी है ओर मिष्टी को उठाकर उसकी माँ के बराबर मे रखी खाली कुर्सी पर उसे बिठा दिया..है ...कुछ दो मिनट बीते .है .... मिष्टी की आँखे हमारी ओर घूमी है... .. ....फिर वही जूतों की आवाज आर्यन के नजदीक आकर रुकी है............"मिष्टी " ...माँ की आवाज ....लक्ष्मी खींच कर उसी कुर्सी पे टिका रही है. ..... , उनका ऑर्डर आ गया है .. उन्होंने खाना शुरू किया है .... ....साथ वाली युवती कुछ ओर ऑर्डर कर रही है ...मां मिष्टी को चम्मच से खिलाने की असफल कोशिश करती है ...मेरी कोफी ओर आर्यन का सेंडविच आ गया है ......सोफे पे कुछ दूर बैठी लक्ष्मी की निगाह कुछ सेकंड तक सामने शीशे पे रंग बिरंगी पेस्ट्री पर रुकी.है....फिर अपनी मालकिन पर..
मै कोफी का एक घूँट भरता हूँ ..दो घूँट . ....कोफी गरम है......तकरीबन दो तीन मिनट गुजरते है .. ... मिष्टी किसी खाली प्लेट मे चम्मच बजा रही है ....वे .तीनो खाते हुए अपनी बातचीत मे बिजी है .... वेटर मिष्टी का सैंडविच लेकर आया .है....एक नजर अपनी प्लेट को देख उसकी आँखे सोफे पर मुडी है.... ...".लक्ष्मी " उसने तोतले लफ्जों से पुकारा ,लक्ष्मी ने वही से उसे मुस्कान दी है.....कोफी का एक ओर घूँट ...."आराम से खायो ...."माँ ने बातचीत रोककर .अंग्रेजी मे हिदायत दी है....फिर व्यस्त हो गयी है....,मिष्टी सोफे की ओर देखती है.... फ़िर नीचे उतरती है... अपनी सैंडविच वाली भारी सी प्लेट लेकर सोफे की तरफ़ बढ़ी है..... .तकरीबन आधा रास्ता पार किया है ....."मिष्टी कम हियर"माँ ने पुकारा है ...मिष्टी सीधी चलती हुई सोफे पे पहुँची .है.....सोफा उसके कद से थोड़ा ऊँचा है ,पहले प्लेट रखी.. गयी है.......' मिष्टी कम हियर" .....'वापस वही आवाज ...मिष्टी ने अपने नन्हें पैर उचके है .. ओर लगभग कसरत सी करती हुई सोफे पे चढ़ गई .है .प्लेट मे से एक सैंडविच का पीस उठा कर लक्ष्मी की दिया है... ओर एक अपने हाथो मे पकड़ खाने लगी. है.......लक्ष्मी सहमी हुई है .......'.खायो -खायो"मिष्टी की तोतली आवांज गूंजती है... वो आर्यन को देखते हुए अपना सेंडविच खा रही है उसकी मां की ओर मेरी निगाह एक पल को मिली है....मै कोफी का आखिरी घूँट भरता हूँ...


कई बार कुछ वाक़ये अलग शक्ल इख्तियार कर आपके सामने से दोबारा से गुजरते है ...इत्तिफकान या कोई ओर वजह ये कहना मुमकिन नहीं ...हैदराबाद के एयरपोर्ट से मेरियट होटल की दूरी लगभग एक घंटे में तय करने के बाद रात को मै ओर मेरा दोस्त बिरयानी के मूड से बाहर निकले ...वहां एक होटल में कुछ ऐसा सा ही नजारा सामने आया ..बस फर्क नाम का था ...यहाँ मिष्टी के बदले फरजाना थी ...उम्र में शायद एक आध साल बड़ी ....लिखने कुछ ओर बैठा था ... .पर जाने क्यों ये वाकया अब भी दिमाग पे काबिज है ...सोचा इससे निजात पा लू ...इसलिए रीठेल रहा हूँ....
वैसे एक मिष्टी ओर है ...दूसरी परी...

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