2009-10-06

हमारी पहली गर्लफ्रेंड ...नीलू भाई...ओर एक क्रिकेट मैच !!!!


उन दिनों सपने बहुत छोटे होते थे यूं  कहिये बलिश्त भर के ..ओर लगभग एक जैसे ..ट्विन्स .का भ्रम देते ...पर गुजरे वक़्त के साथ एक बात  हमने जानी है की लड़कियों में कुछ  हुनर  शायद पैदाईशी  होते है . मसलन वे  किताबे कापियों पे साफ सुथरे कवर चढा कर रखती है ..उनपे सुन्दर- सुन्दर चिटे  ...वे बड़ी गौर से आगे की लाइन में बैठकर टीचर की एक एक बात सुनती है ...ओर फिर उन्हें  सिलेवार   अपनी   कोपी   में  साफ़ सुथरी  राइटिंग  में  लिखती है ...मै कितनी भी कोशिश कर लूं आज तक एक भी फूल पत्ती सीधी भी बना नहीं पाता ..  नये स्कूल में एडजस्ट  करना बड़ा मुश्किल काम होता है .. पापा का ट्रांसफर  जब देहरादून  हुआ...हमारी सबसे बड़ी परेशानी यही थी.....कई रोज तक  आप  अंडर ओब्सर्वेशन  रहते है ..आपके चाल चलन   को देख परख    फिर   आपकी  एंट्री  किसी खेमे   में  होती   है ..ओर फिर को -एड स्कूल ...  हमें जोग्राफी पसंद नहीं थी....मैथ्स से हमें डर लगता था ....आर्ट हमें आती नहीं थी ...तो नये स्कूल   में इम्प्रेशन   बनेगा कैसे ......कुल जमा उन दिनों हमें दो तीन चीजो में महारत   हासिल थी....कंचे खेलने  पतंग  उडाने .में या क्रिकेट खेलने में  ........

उन दिनों देहरादून आज सा नहीं था .खूब घने पेड़ ....पंखे भी न के बराबर घरो में होते थे ...हमारे घर के पीछे लीची का एक बागः था ...सामने के घर में दो बड़ी लड़किया   रंजू  दी ओर पूनम दी ….ओर एक उनका लफंगा भाई....नीलू ...जो छुप छुप के लीची के बाग में सिगरेट पीता...उनके घर  का  एक  नियम था .....उसका बाप  रोज  काम पे जाने से  पहले  नीलू  भैय्या  को  कई गलिया देता ..वो एक किताब   हाथ में  लिए सर झुकाये सुनते ..   ....बाप के दुकान  पे जाने  के  बाद  वो  किताब  खोलकर धूप में   पढने   बैठते  ...ओर .उनकी  मां रोज  घी चुपड़े आलू के परांठे  खिलाती ...परांठे   खाने    के करीब  दस  मिनट  बाद  नीलू  भैय्या   अपनी साइकिल   निकालते ..ओर फिर   दिन ढलने से थोडा पहले लौटते ... .. पिछले  तीन सालो से वो  दसवी   के  एक्साम   की तैयारी   में लगे हुए थे ....नीलू भैय्या का संक्षिप्त परिचय अगर देना हो तो ...तब रिचर्ड अटेनबरो  की  "गांधी "रिलीज़ हुई ..मां ने नीलू भैय्या के हाथ में पैसे रख के मुझे ओर छोटे को गांधी दिखा लाने को कहा ...नीलू भैय्या हमें "तकदीर" देखा लाये ....हेरोइन ओर दूसरा हीरो याद नहीं पर उसमे एक हीरो शत्रुघ्न सिन्हा थे वो याद है..
.उनकी छोटी लड़की पूनम दी  किसी ब्यूटी  पार्लर का कोर्स  कर रही थी उन दिनों.....तो अक्सर शाम को हमारे पैरो हाथो पे तरह तरह के उबटन मेल जाते फिर धोये जाते ...बदले में हमें चम्पक ...नंदन   या इंद्रजाल   कोमिक्स   पढने  को मिलती ... पर मै चेहरे पे कुछ नहीं करने देता ..... एक रोज उन्होंने एक लेप निकला जिसकी  अजीब  सी   शक्ल  थी ...मुझे डील ऑफर हुई इसे चेहरे पे लगवायोगे तो दो तुम्हारी मर्जी की कोमिक्स ...तुम्हे खरीद कर दी जायेगी ...हमने मन कडा किया पर  जैसे ही लेप नजदीक  आया  हमने  विद्रोह  कर दिया ....ओर भाग   निकले!
गली के  कोने पे  किसी सरकारी  आदमी  का  मकान था ....उन्हें घर के बाहर अक्सर एक सरकारी जीप खड़ी रहती ओर उसमे ऊँघता एक ड्राइवर ...  रोज सुबह  उसमे  एक लड़की बैठती ...पतली दुबली . गोरी ....उसकी आंख पे एक चश्मा टिका  रहता .. ...जो उसे पढने वालियों जैसा लुक  देता था ...गली में वो कम दिखती .... मेरे क्लास में ही पढ़ती थी....कभी कभी  नजर उठाकर  मुझे देखती...मन करता तो मुस्करा देती ..उनके घर वाले गली के बाकी लोगो से थोडा  कम मेल जोल रखते ...
एक महीना बीत गया .मै सेकंड लास्ट बेंच पे एक तेल चिपुडे लड़के के साथ  बैठता ...जो अक्सर पीरियड में टोफी निकाल कर खाता...दिन भर वो इतनी टोफी खाता की मुझे डर लगता  की कभी इसको हाथ भी मारा तो इसके मुंह से टाफिया ही निकलेगी...स्कूल से पैदल का रास्ता करीब आधे घंटे का था ...ओर मै रोज पैदल जाता .सच कहूं तो बड़ा मजा आता .लौटते  वक़्त  जरूर  सड़क  की चढाई   थकान  देती .... एक रोज स्कूल से लौटते वक़्त जीप मेरे बगल में रुकी ....वही थी ...एक दो बार की न नुकर के बाद मै जीप में बैठ गया ..पूरा रास्ता हम दोनों में कोई बात नहीं हुई...तीन रोज तक यही होता ..मै बिना थैंक्यू  कहे  घर के सामने उतरता ....
तुम कोमिक्स पढ़ते हो ..पांचवे दिन उसने पूछा
हां
मेरे पास बहुत सारी है  ....पढोगे .. मैंने देखा उसके गोरे चेहरे पे होठो के उपर भूरे से बाल है ....मै सिर्फ उतने ही सवालों का जवाब देता जितने वो पूछती ....
धीरे धीरे हम दोनों में जमने लगी ...वो हमारी ड्राइंग की किताब भरती ...उसके दादा दादी अक्सर  शाम को  आंगन  में चेस खेलते रहते ओर साइड  में बने झूले  पे हम दोनों खेलते ..... तब हमें डायरी रखने ओर  उसमे  जो अच्छा   लगा उसे  लिखने का नया नया शौक़ हुआ था ..ओर वो  हमारा   सीक्रेट   था ...पर जाने  क्यों   हमने उससे   शेयर   किया ...हमारी डायरी की पहली पाठक वही थी ..
हमने एक महीने में उसकी सारी कोमिक्स पढ़ डाली .फिर हमें गिल्टी फील   हुई  के  अब तक हमने उसे कोई कोमिक्स नहीं दी ...हमने सोचा उसे कोमिक्स खरीद के ही गिफ्ट दे देंगे
समस्या ये थी की पैसे आयेगे कहां से ???
. मै..वो  लेप लगवाने पूनम दी के सामने पहुंच गया ..
आधे पौन पौन  घंटे के उस एक्सपेरिमेंट के बाद  पूनम दी ने नीलू भैय्या को पैसे थमाए ओर हमारे लिए कोमिक्स लाने को कहा...दिन भर गली के मुहाने पर बनी एक छोटी सी दीवार पे बैठे नीलू  भैय्या की राह तकते रहे ...शाम होने से कुछ पहले नीलू भैय्या अपनी उस ऐतिहासिक साइकिल पे अवतरित हुए ..पर उनके हाथ में कोई कोमिक्स न देखकर हमारा दिल धड़का ....
नीलू भैय्या ....कोमिक्स
कल ले आयूंगा ....आज दुकान बंद थी ....नीलू भैय्या थके थके से बोले ......
झूठ बोलते हो .दुकान तो खुली थी ......मै देख के आया था .बात सच थी....मै रुआंसा हो गया ....
नीलू भैय्या ने मुझे हड़का दिया .....आंखू में आंसू  ओर गुस्सा होके हम कई देर वही बैठे रहे ...थोडी देर में उनके पिता जी का स्कूटर आता दिखाई दिया ....इससे पहले के वे मफलर उतार के स्टेंड पे लगा कर गेट खोले ....हम दिल में प्रतिशोध  की ज्वाला लिए उनके पास पहुंचे ....अंकल नीलू भैय्या बाग में सिगरेट पीते  है "ओर भाग  लिये.....
उस शाम नीलू भाई की जबरदस्त सुतायी  हुई!!!!!!

तो पढने  लिखने की बाबत  तमीज  हमें वही  से आई ....उसी की सोहबत  में हम कोर्स की किताबो में थोडा ध्यान रमाने लगे ...फिर एक घटना हुई ..... हमारी क्लास के दो दादा थे एक था  रस्तोगी दूसरा कुलदीप ..दोनों के बापों की अगल बगल दुकाने थी .. फ्रायड ओर मंटो से पहले  कुलदीप   की मेरी जिंदगी में  एंट्री है ..औरत मर्द के रिश्तो के बारे में उसकी मालूमात कुछ ज्यादा है ..इंटरवल में लड़को का समूह उसके इर्द गिर्द इकठ्ठा होता है ...उसके बाप की स्टेशनरी की दूकान है ...साथ में किताबो की भी...कुलदीप के बस्ते में कई किताबे पीछे रखी  होती है ... पिछले दो दिनों से कुलदीप हमें रोज  लंच   में  बुलाता .पर हम नहीं जाते ...हालांकि  हमारा मन का एक कोना जरूर वहां जाने को मचलता  ...
तुझे उसके पास नहीं जाना  वो मुझसे कहती है
क्यों ?
वो अच्छा लड़का नहीं है
क्यों ?
वो जवाब नहीं देती.....
दो रोज बाद कुलदीप छुट्टी के वक़्त मुझे पकड़ लेता है ...".क्यों बे "दो दिन से बुला रहा हूँ .आता क्यों नहीं ....
मै बेग छुडाने की कोशिश  करता हूँ  ....वो दूर से देख रही है ...
जा लड़कियों के साथ लंगडी टांग खेल....कुलदीप धक्का देता है ....
मै गिर गया हूँ....कुहनी छिल गयी है ...
क्या कह रहा था ?वो पूछती है .
कुछ नहीं......
तीन दिन   बाद  स्पोर्ट्स  के पीरियड  में  वो कुलदीप के पास बैठी है .. कोई जवाब देने कुलदीप उठा है .बैठते ही चीखा है .उसने पेन्सिल सीधी करके रखी है........
 बाद में दूसरे  लड़को ने  हमें  बताया  की सरदार ने कसम खायी.. है .वो हमें माफ़ नहीं करेगा... दिन गुजरते रहे पर   शायद मेघा के ड्राइवर  का डर था जिसने कुलदीप को रोके रखा ......
तभी  स्पोर्ट्स वीक हुआ .. कुलदीप हमारी टीम का  क्रिकेट कप्तान था ...मुझे मालूम था वो खुंदक  में मुझे टीम में शामिल नहीं करेगा ..हमारी क्लास का  क्रिकेट  मेच सीनियर क्लास से था ठीक मेच से एक रोज  पहले ग्यारहवे  खिलाडी को दस्त लग गये ....दिन भर उसके दस्तो के रुकने का इंतज़ार किया गया ..फिर. हमें  ग्यारहवे खिलाडी के तौर पे   टीम   में शामिल किया  गया .क्यूंकि पूरी क्लास में सिर्फ पंद्रह  लड़के थे ....बाकी बचे तीन में एक वही तेल चिपुडा ओर दो उसके भाई बंद थे ..तभी   इंडिया  नया नया  पहली बार  वर्ल्ड कप जीता था ...इसलिए क्रिकेट पे बड़ा जोर था ..
इससे पहले हमने जितने भी मैच खेले थे  अपने मोहल्ले में खेले थे ..हर टीम  एक नयी बीस रुपये  की लेदर  बाल लेकर आती थी .जिसे दो दो रुपये  इकट्ठे करके  हर खिलाडी लाता था ....    जीतने वाली टीम को  दोनों  लेदर  बाल मिलती थी .हमारी जिंदगी की फाइल में यूं तो कई मैच दर्ज है .पर इतने दर्शको में जिसमे लड़किया भी शामिल हो..हमारा पहला मैच था ....आखिरी दो  गेंदों  में दो  रन चाहिये थे ....हमें नाइन डाउन भेजा गया ...सरदार हमारी टीम का कैप्टन था ...हमें इस बात की ताकीद  मिली  की गेंद के बोलर के हाथ से छूटते  ही आंख बंद करके भाग लेना है ...जबकि हमें अपनी क्रिकेट काबिलियत पे भरोसा था ....इधर बोलर चला उधर रस्तोगी ने चिलाना शुरू किया भाग ....पर हम भागे नहीं .धड़कते   दिल  से .बल्ला  घुमा दिया  ....खुदा का शुक्र है गेंद बल्ले पे आ गयी .. ओर..सरदार ने हमें माफ़ कर दिया ....

अगले साल हमारा ट्रांसफर वापस अपने शहर हो गया .... एक बैग में ढेर सारी कोमिक्स भर के मुझे दे  गयी....एसट्रिक्स की कोमिक्स ...अब सुना है नीलू भैय्या  दूकान पे बैठते है ....दोनों बड़ी बहनों की   शादी   हो गयी है .छोटी ने लुधियाना   में कोई  पार्लर  खोल  रखा है ...सुनते है हमारे जाने के दो साल बाद उनका भी ट्रांसफर हो गया था..... मेघा पता नहीं कहां है....मेरे कलेशन में आज भी वो कोमिक्स पड़ी है .जिनमे से एक दो के ऊपर उसका नाम लिखा है .....

कहते है ये वक़्त तकनीक का है पर तकनीक की  दुनिया की अपनी पेचीदगिया है .....बाजार   की  अंगुली थाम के   बढे होते बच्चे   है ..चौबीस साल के घनघोर कैरियरिस्ट है....ज्यादा   फ्लेक्सेबल  रीड की हड्डिया है ....ख्वाहिशे   डबल   अंडर लाइन करे भागता  युवा  है    ...   अपने अपने  इगो की  बड़ी  बड़ी  आलीशान  ड्योढी में  बैठकर इतराने वाले कुछ अधेड़   दुनियादार   लोग है ...  ...   इत्ते  बड़े  बड़े  रंग बिरंगे  ग्लो साइन बोर्ड   है जो रात  को  चमककर सच ओर झूठ  को  गडमड कर देते है .. .   ..ओर हर   ख्वाहिश पे  अलादीन  का चिराग न सही ...एक अदद  इ एम  आई   जरूर  है ...काश चेप्टर होते जिंदगी के भी .....किसी स्कूल में सिखाया जाता ...कैसे   खामोशी   से   मुमकिन है .......इत्ते  मुखोटो  में  रोज आवाजाही .....कैसे पकड़ना जमीर का इक कोना ...जब दुनियादारी का बुलडोज़र बढा आये

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