2009-10-20

डिटरजेंट से धोई हुई "साइन्साना ख्वाहिशो" पे बाइस्कोप !


इधर हमें साइंस से कुछ ज्यादा ही उम्मीदे लगने लगी है ...जब भी हम अपने एक पुराने दोस्त को फोन मिलाते है ...उधर से कुछ अजीब सी आवाजे सुनाई देती है ...कुछ खा रहे हो....हम संशकित होकर पूछते है ......
क्या ?
समोसा ...
अकेले ?
नहीं ब्रेड में दबाकर .....
हमें मेज पर पड़ी मूंग की दाल को निहारते  है ....
बहुत   पहले  एक सीरियल   आया करता था ...स्टार ट्रेक ..पता  नहीं  आपको   याद   है के   नहीं ..जिसमे एक लम्बे कानो वाले मिस्टर स्पार्क भी हुआ करते थे ...उसमे  अजीब  सी किरणों से कही भी ट्रांसपोर्ट हुआ जा सकता था ....कसम से हमें भी  उम्मीद है   एक रोज जब हमारे यही फोनुआ दोस्त  राजमा  में  चावल मिलाकर खा रहे होगे .हम ट्रांसपोर्ट हो जायेगे ...........कल  जब  सब्जी   वाले ने  सब्जी  तौलते  हुए    “ तूने  बैचेन  इतना  ज्यादा   किया   ,मै  तेरा   हो  गया मैंने वादा किया वाला "....मोहमद अज़ीज़  का सोंग बहुत देर तक सुनाकर    अपना  मोबाइलवा  उठाया    .तो हमने फ़ौरन  आसमान में नजर  डाली ........ग्राहम बेल  एक ठो मुस्कराहट   दे रहे थे .....
  …   तो  क्या   वो दिन  दूर नहीं   जब    .  आप   अपने  बढ़ई   नसीम  भाई   को   ट्विटर   पे  सुबह  सुबह ट्विट  करोगे  के " .अमां  नसीम  भाई  .एक  खिड़की  का  पल्ला  जरा   बुरा  मान  गया  है  …आ  कर  थपथपा  दो.... या  फेस  बुक  पे   आप का इलेकट्रीशियन   आप को जवाब भेजे ..  .ऊपर    वाले    स्टोर   की   बत्ती जो   आंख  मार  रही थी  बदल दी है .....नीचे इनवर्टर का भी फ्युस चेंज हुआ है ...कुल मिलाकर इत्ते मेरे बनते है ...अकाउंट  में  ट्रांसफर कर देना .... 
तो   किबला   अपनी "  पुरानियो "  के    नाम   लिख  लिख  कर    उन्हें  गूगल   में    ढूंढने   की    ही   नहीं   बल्कि   दूसरी   ओर  कई   जहमते   उठाने   के  लिए  कमर कस  लीजिये
तो  भाई   लोगो  दी  एंड  करते  हुए  अपुन  चलता  है  ……









  ई .एम .आइ-

उठायो ख़वाहिशे ओर रख दो लाल घेरे मे
दीवार पर टॅंगी दूर से नज़र आती है.....

बदलो सफ्हा कॅलंडर का ...ये महीना भी गया

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