2010-04-06

दिल ख्वाहिशो का कारखाना है

कहते है दोनों जुड़वाँ है ..अक्सर साथ चलती है .....मसरूफियत की आमद अगर है तो बेख्याली का आना भी तय है ...कहने वाले बेख्याली को "छोटी "कहती है .शायद इसलिए थोडा बागी  मिजाज है  .कभी कभी बेवजह ..बिना इत्तिला किये दरवाजे पर सुबह से दरवाजे पर आ बैठती है.....कुछ ख्याल कभी नज़र बचाकर  कुछ देर गुफ्तगू  करते भी है ...ठहरते नहीं...पर ...दिल ख्वाहिशो  का कारखाना है ..फ़िल्टर करके ...वक़्त के मुताबिक  उनका तर्जुमा करता है  ....ओर आसमान  फिर "डेस्टिनी " का बोर्ड ऊपर उठा देता है ....



मसलसल भागती ज़िंदगी मे....
अहसान -फ़रामोश सा दिन
तजुर्बो को जब,
शाम की ठंडी हथेली पर रखता है......
ज़ेहन की जेब से,
कुछ तसव्वुर फ़र्श पर बिछाता हूँ
फ़ुरसत की चादर खींचकर...
उसके तले पैर फैलाता हूँ
एक नज़्म गिरेबा पकड़ के मेरा....
पूछती है मुझसे
"बता तो तू कहाँ था?


किसी ने नज़्म मांगी थी ....हालात  मुताल्लिक नहीं थे ...पुरानी गठरी खोली ओर "रिफ्रेश "का बटन दबा दिया ....काश ऊपर वाला एक बार उस पहिये (कहते है दुनिया गोल है ) का  बटन  वाला  हिस्सा  मेरे  हाथ  की "रीच" में  करे.....ओर उसका रिफ्रेश बटन ......उफ्फ......दिल ख्वाहिशो  का कारखाना है






चूँकि त्रिवेणी की आदत इस सफ्हे को भी है.....ओर इन बदमाश  खयालो से इंतकाम भी लेना था



वे जो सड़क दर सड़क आवारा फिरते थे
कल सफ्हे पे मिले तो शक्ल   जुदा थी 

उर्दू पहनकर मुये  लफंगे भी  शरीफजादे हो  गये  


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