2011-01-29

कभी चलना आसमानों पे ...मांजे की चरखी ले के ...


खांसते बच्चे . ओर  बूढ़े मोहल्ले एक से लगते है
मै जब बड़ा हो जाऊंगा....बस अड्डे के पास मकान नहीं बनाऊंगा ......मै रजाई से मुंह निकालकर  कर पापा से कहता हूँ...किसी फाइल में डूबे  पापा सिर्फ" हूँ "करते है ... सवेरे सवेरे  हमारे उठने से पहले  पापा रोज दिल्ली जाते है ......रात देर में  घर आते है ...मै अक्सर कोशिश करता हूँ उनके आने तक जगा रहूं...उन्हें पतंग पसंद नहीं है ... मां सुबह जल्दी उठ जाती है ...दिन भर काम करती रहती है. ...मुझे  पतंग उडानी बहुत अच्छी लगती है ..आज मैंने पहला  पेचा काटा है ....वो भी राजू भैय्या  का ..राजू भैय्या बहुत अच्छी पतंग उड़ाते है ..पापा को पतंग क्यों पसंद नहीं है ?...
मां से मंजे के लिए  पैसे मांगू तो कहती है सारे खर्च हो गए ...मेहमानों के बिस्किट लाने में ...मेहमान .रोज  आते है ..ढेर सारे!!  बस अड्डे के पास हम  रहते  है  …किराये  के  मकान  में  … थापर नगर गली नंबर चार में……बस अड्डे से मोहल्ले में खुलती  गली जिसकी एक  दीवार पर ना जाने कौन  फिल्मो के पोस्टर चिपका जाता है   ...थोडा आगे चलकर एक मंदिर....जिसका लाल आँखों वाला  पुजारी  मुझे  उछल  कर घंटा बजाने पे घूरता है ....मुझे मन्दिर आना पसंद नहीं है पर  स्वेटर वाली आंटी आम पापड़ का मीठा पेकेट देती है ..इसलिए उनके साथ आता हूँ……..गाँव से मेरठ  चले   किसी  भी  काम के वास्ते चले  शख्स   की    ..हमारे घर  हाजिरी   तय    है  ……..... मम्मी- पापा किसी ज़मीन की बात कर रहे   है ... ..मुझे   नींद ने घेरना  शुरू किया है ....मै जगे रहने की कोशिश  कर रहा हूँ...बीच बीच में कुछ आवाजे सुने देती है ...पैसा .लोन...ढाई सौ गज...आहिस्ता - आहिस्ता   सारी आवाजे खो  जाती  है  … … कोई मुझे  रजाई  उड़ाते  वक़्त  प्यार कर रहा है ..चुभती  दाढ़ी ...पापा है .....
उम्मीदों के आसमान  में यकीनो  के मांजे
सुबह  उठता  हूँ पापा  चले  गए  है  … मां  उन की केप   पहना  रही  है  ..मुझे  केप  पहनना पसंद नहीं ..बाल कैसे चिपके चिपके से हो जाते है 
"मुझे  मंजा  लाना  है  मम्मी " …….... मां जैसे सुनती नहीं ...सीधे केप से  कान ढँक देती है ....स्कूल   पास  ही  है .. मै  पैदल  चल कर जाता हूँ..... स्कूल के नीचे बायीं ओर एक पोस्ट ऑफिस है ..जिसमे काम करने  वाले सारे बूढ़े है ..सब के सफ़ेद बाल है  ...दाई ओर एक नाई की दूकान है जिसे चलाना वाला कोई रिटायर्ड फौजी है ... उसे  "कटोरा कट" काटने में बड़ा मजा आता है ..छोटे छोटे बाल...मां अक्सर उसकी धमकी देती है.......गेट   पर   देव  खड़ा  है .... ऊँचा   है ओर मोटा भी...आते जाते  मेरी केप उतार देता है .....मुझे  उससे  डर  लगता  है  ..ओर मुझे वो  पसंद नहीं .....मै  साइड  से  निकल  जाता   हूँ ...आजकल  विनीत  मेरा  नया  पार्टनर  है ....अपने हाथ में वो एक लाल रंग की गाड़ी मुट्ठी  में दबाये रखता है ..क्लास शुरू होते ही उसे बेग की जेब में रख देता है ....
...लंच  में  .. मै टिफिन खोलता हूँ....आलू ओर परांठा है .. मां.  रोज रोज  बस आलू ओर परांठे  देती  है .....जिस रोज आलू नहीं ..उस रोज अचार ...अचार का तेल टिफिन से निकलकर ..सब कुछ पीला कर देता है ..मेरा बेग भी.....विनीत ने अपना टिफिन खोला है ..उसका सफ़ेद परांठा है...प्याज ओर टमाटर बीच में ...".खायेगा '.विनीत मुझसे पूछता है ....वो  मेरा बहुत अच्छा  वाला दोस्त नहीं है ..पर उसका परांठा !!!......मै आधे  से  ज्यादा  खा  जाता  हूँ …....उसका   "सफ़ेद परांठा"  कितना  अच्छा  है  !
लंच  के  बाद   अगला  पीरियड   हिस्टरी  का  है ….मेरा  कुछ  होम  वर्क  बाकी  है  ..मै  विनीत  की  कॉपी   से   कर  रहा  हूँ ….देव  ने   मेरी  केप  उतार   ली  है ….मै  उससे  लेने  की  कोशिश  करता  हूँ उसने मेरी हिस्टरी  की कोपी  उठा ली है....वापस लेने में ….  हिस्ट्री की कोपी फट गयी है ...होमवर्क का चेप्टर भी......
 पीरियड में  . हिस्ट्री की मैडम  मुट्ठी बंद करवा के  स्केल को खड़ा करके मारती है ....बहुत जोर से लगती है...सीट पर जाकर आंसू पोछता  हुआ मै सोचता हूँ..टीचर बना तो बच्चो को नहीं मारूंगा !
स्कूल से लौटता हूँ तो सीडियो पर मुड़ी तुड़ी अधजली .बीड़िया देख मुझे गुस्सा आता है   .. मां रोज की तरह कुछ बनाने में जुटी है .. कितना बड़ा गाँव है ?

उन दिनों सब  लोग एक से  थे ...न ज्यादा अमीर .न ज्यादा गरीब...
 उस रोज  "स्वेटर वाली आंटी" ने ..मुझे ओर छोटे को  सुबह खाने पर  बुलाया है ..वो  सर्दियों में बहुत सारे स्वेटर   बुनती  है .....इसलिए उन्हें सब स्वेटर वाली आंटी  कहते है ....वे  बहुत अच्छी  है .. हमेशा प्यार करती है  .सुबह के स्कूल में अभी  टाइम है ...वहां  पहुँचता हूँ  तो देखता हूँ  बहुत सारे बच्चे है पूरी ..काले छोले..ओर हलवा ...काले छोले मुझे बहुत अच्छे  लगते  है कई दिनों से आंटी मंदिर नहीं गयी  .... आंटी का पेट फूला हुआ है .
"आप बीमार हो'.....मै पूछता हूँ...
वे हंसती है ...ओर मेरे सर पर हाथ फेरती है.ओर थोडा हलवा मेरी प्लेट में डाल देती है .
"आंटी   के  पेट  में  बेबी  है "बराबर में बैठी .रविंदर  कौर  मुझे  धीमे  से  बताती  है  ….रविंदर  कौर  गली  नंबर  तीन  में  रहती  है ...बड़ी होशियार है ..नेल कटर से नेल  काटती है .(   पापा अपने  ब्लेड से  नेल  काटते  है ) उसके  घर  में  एक  बड़ा  डौगी  है ….जब  कभी  "लंगड़ी - टांग"  में  उससे  लड़ो  तो  वो  बहुत  जोर  से  भौंकता  है  ….
पेट  भर गया है ...ऐसा  जैसे  फट जाएगा .... ..स्कूल पहुँचता हूँ तो देखता हूँ एक कोने में भीड़ जमा है ...विनीत के होठो पर खून है ....देव   ने उसे मारा है....देव के हाथ में उसकी गाडी है ...विनीत.  रो रहा है . .....किसी ने मुझे देव की ओर धक्का दिया है ...."तू लडेगा" ..देव मेरी ओर बढ़ा  है ...मेरी घिघ्घी  बंध आयी है ...देव ने हाथ घुमाया है...मै  पीछे हट गया  हूँ फिर  जाने  क्या  हुआ  है  के  मैंने  घूंसे  बरसाने  शुरू  किये  है  …लगतार  ….देव  गिर  गया  है  …..मुझे  लगता  है   काले  छोलो   ने  मुझमे  ताकत  भर  दी  है  .....
स्कूली ड्रेस में भी सारे बच्चे एक से लगते है
सुबह उठा  हूँ... वीर सिंह अंकल आये है ....चंडीगढ़ से ....मेरे लिए हमेशा  कोई  किताब लेकर आते है ..... पापा बताते है बचपन के दोस्त है …. एक ही गाँव से निकले चंडीगढ़  से वे जब भी सन्डे को  आते है ..पापा उनके साथ घंटो चेस खेलते है ..........रात को वीर सिंह अंकल मुझे कहानिया सुनाते है
.अगले  दिन  विनीत ने  मुझे घर पे बुलाया है....वो गली नंबर पांच में रहता है....उसके पास मांजे  की एक चरखी है ...बहुत सारी पतंगे ...हम उसकी छत   से पतंग   उड़ाते है ..उसकी मम्मी  नीचे   बुलाती है ...प्लेट में गरम गरम सफ़ेद परांठा है ...ब्रेड के साथ.......मै पूरा खा जाता हूँ..... ….ओर ऑमलेट  खायोगे बेटे? उसकी मम्मी पूछ रही है .... ऑमलेट !!!!!..मैंने अंडा खाया है ....मै डर गया हूँ.....नहीं ...मै कहता हूँ....वापस लौटते वक़्त मन में अजीब सा गिल्ट है ..... घर जाने से पहले गली नंबर  तीन के  अस्पताल के नल से मुंह धोता हूँ....  मम्मी को नहीं बतायूँगा..बहुत मार पड़ेगी  
रात को वीर सिंह अंकल मुझे एक कहानी सुनाते हैवे कहानिया लिखते भी है ..."मै भी बड़ा होकर कहानिया लिखूंगा" ....मै उनसे कहता हूँ....
सपने में उनकी कहानी के साथ ऑमलेट भी आया है !
दो रोज से   मै  विनीत  के घर नहीं गया हूँ... ...तीसरे दिन विनीत   मुझे बुलाने आया है....मै शर्त रखता हूँ ऑमलेट नहीं  खायूँगा .......फिर कई दिन .रंग बिरंगी पतंगों.में बीतते है ... हाथ की अंगुलिया काटने लगी है मंजो से .... उसकी मम्मी ब्रेड सेंडविच बनाने लगी है ....उनके यहाँ की  ब्रेड कितनी मुलायम होती है न ...साफ सुथरी  कोनो से कटी हुई.....आठ दिन बाद बसंत है ...पतंगों का त्यौहार ... हम ने  उस दिन के लिए  एक रुपये वाली बड़ी पतंग भी खरीदी  है....".सरदारा "….
वक़्त के कन्ने कटते है जब ..
अगले रोज  विनीत  स्कूल में नहीं आया है ....दोपहर को मै उसके घर जाता हूँ....उसके यहां सामान की पेकिंग हो रही है ....पापा का ट्रांसफर हो गया ..वो बताता है ...उस रोज हम छत  पर पतंग नहीं उड़ाते...न सेंडविच खाते ...दो दिन बाद उसे जाना है ...वापस लौटते वक़्त  मै सड़क के कई पथ्थरो पर ठोकर मारता हूँ...  घर आकर मां से झगड़ता  हूँ..बिना खाए सो जाता हूँ....
सुबह जल्दी आँख  खुली है .पापा तैयार  होकर चाय पी रहे है .ये ट्रांसफर क्या होता है पापा ....मै पापा से पूछता हूँ.....वे कुछ समझाते है .जो मेरी समझ नहीं आया है........
क्या आपका भी होगा
?..मै पूछता हूँ......वे हाँ कहते है ....जाते वक़्त मुझे प्यार करते है ......
मेरा स्कूल जाने का
  मन नहीं है ......मां गुस्सा होकर तैयार करके भेजती है .स्कूल में मन नहीं लगा है ...लौटा हूँ तो मां बताती है ... विनीत आया था..मुझे घर पे बुलाया है ...
मै उस रोज उसके घर नहीं गया हूँ...मां के कहने पर भी नहीं.... आज फिर मां से लड़ा हूँ कई बार
.. अगले दिन सुबह  मुझे ठण्ड  सी   लगती है ....स्कूल   में सब कुछ सुस्त सुस्त सा है ...मेरे सर में बहुत दर्द है....आज घर बहुत दूर  लगा है ......सीढियों पर चढ़ते चढ़ते  रुक गया हूँ... .मां दौड़ी आयी है ....कहती है मुझे बुखार है ...रोते हुए प्यार करती है ....मै जब भी बीमार होता हूँ..मां बहुत प्यार करती है .....दवाई के साथ वो  मुझे ग्लूकोज़ का बिस्किट भी देती  है..मै दवाई लेकर  सो गया हूँ.....  घंटो  सोया हूँ...उठता हूँ....तो कमरे  के बाहर में हवा के साथ अजीब सी आवाजे सुनाई  दी  है .जानी पहचानी ... क्या .पापा छुट्टी लेकर आये है.?... ...."..मां "मै आवाज देता हूँ.....मां के हाथ में ढेर सारी पतंगे है ओर हुचकी है .....बताती है विनीत आया था....छोड़ गया है... पापा कमरे के कोने में कोई कटोरी लेकर खड़े है ...गाजर का हलवा है ...मेरी फेवरेट डिश हवा से एक पतंग बाहर निकल कर गिरती है…."सरदारा" है….
 ... जनवरी महीने का एक मंगलवार   साल २०११ ..
नीचे अख़बार पढने उतरा हूँ तो मां चाय पीते पीते बताती
  है .वीर सिंह अंकल नहीं रहे . मन अजीब सा हो गया है ...... ...अखबार की तह बताती है ... ... पापा ने नहीं पढ़ा ....पापा चुप चुप से  है.... चाय में चीनी नहीं है ...पर वे चुपचाप पी रहे है ... उन्हें एक घंटे में चंडीगढ़ निकलना है  ...मुझे उनकी ख़ामोशी मुझे बैचेन करती है  . ड्राईवर  को हिदायत देकर   भेजता हूं……पापा को अगले दिन आना है.....
बुधवार की दोपहर....
.. क्लीनिक से लौटते  वक़्त  सोचा है ......अगले  आधे दिन की छुट्टी रखूंगा गाडी पार्क करते  देखता हूँ.......पापा दूर सड़क पे  से आर्यन के साथ आ रहे है ...उसके हाथ में ढेर सारी पतंगे है…. सबसे आगे "सरदारा "है

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