सई को अपने बारे मे ज्यादा कहना पसंद नही है ,उससे मैं कभी रूबरू भी मिला नही हूँ ओर सच बतायूं कभी फोन पे भी बात नही की है ,सिर्फ़ sms ही इधर उधर
गये है हाल मे ही एक गुजारिश की थी उनसे कुछ लिखने की ....मुझे मान देते हुए
उन्होंने कुछ भेजा है .....
दुनिया से मेरा परिचय...इसने कराया....
कुछ किस्से कुछ कहानियाँ सब के पास होती है.मेरे पास भी है.थोड़ी बहुत दुनिया किताबों में...ज़्यादातर डॉक्टरों के यहा और इस अस्पताल में देखी है.अपोलो चेन्नई के बारे में कुछ लिख रही हू..मेरे नज़र में अपोलो चेन्नई क्या है...बस वही..और तो आप सब जानते ही है अस्पताल क्या और कैसे होते है.यहा अनजान लोग अपनी तक़लीफ़ ऐसे बाँट लेते है जैसे की पड़ोसी हो।एक महिला मेरे पापा को लिफ्ट के यहा मिलतीहै, बातों बातों में बताती है की उनके पति डायलयसिस पर है और बचने की उम्मीद कम है(तब इसका मतलब नही समझ पाई थी क्यूंकी आई वाज़ स्टिलडिसकवरिंग की मुझे क्या हुआ है)जाने क्यू उसने बताया..मुझे तब नही समझा पर अब लगता है..जहा सभी किसी बीमारी से जूझ रहे है वही सबसे ज़्यादा सहानुभूति समझने वाले मिल सकते है.पहले ऑपरेशन के वक़्त १ महीना लगा था सर्जरी फाइनलाइस होने को.फिर भी वही रह रही थी ताकि एकदम ठीक हो जाो (आइरॉनिकल इसन्त इट?) वहां की नर्सस से संवाद करना....अपने आप में एक कला थी॥उनकी अँग्रेज़ी ठीक ठाक और हमारी तमिल सुभान अल्लाह ! वैसे ही ऑपरेशन से थके हुएहोते है॥उसमे भी इशारों से बात करना ..उउफ्फ!पर नर्स ये माँ का ही एक रूप है इस पर मेरा पूरा विश्वास हो चुका है ( पर्सनल अनुभव ) किसी को कोईऔर अनुभव हुआ हो..तो सॉरी।
अस्पताल एंटर करते ही सामने एक छोटी सी गणेश जी की मूर्ति है ,वहां एक अखंड दीप जलाया हुआ है।हर कोई उसके सामने दो पल रुक कर अपने लिए अपने प्रियजन के लिए कुछ माँग लेता है (एक नमाज़ पढ़ने का कमरा और गिरिजाघर भी है पर दूसरी जगह है)।वह जगह मुझे पूर्णा विश्वा का दर्शन करवाती है. हर साल नयेलोगों से मिलवाती है। (सालाना चेक-उप और दो ऑपरेशन्स के बाद काफ़ी जानती हू उस जगह को अब) कोलकाता से सीधे अपना समान साथ रखे हुए लोगों को देखा है जो एक अन्जान डॉक्टर नामक देवता के हाथों अपने आप को सौंप देते हुए देखा है.एक ही आशा होती है की बस अपने दुखो का निवारण यही होने वाला है. वहां जाकर इस बात में कोई शंका नही रहती की दुनिया में भगवान है वरना हमारा विश्वास...बिन पैंदे का लोटा है..कभी यहा कभी वहां?
अब अंतरराष्ट्रिया मरीज़ भी होते है. पिछले ऑपरेशन के वक़्त (२१ जुलाइ २००६) एक अफ़गानी बूढ़ी औरत आई सी यू में मेरी पड़ोसन थी.उसे देख कर मुझे अपने नानी की याद आती थी. वही गोरा रंग, वही छोटी आँखें, वही झुर्रियाँ नज़र आती थी.हमेशा ऐसा लगता की उसे एक बार गले लगा लू (हम दोनो के ड्रेसिंग देखते हुए नामुमकिन था )वो सब चीज़ों के लिए मना करती थी..ना उसे खाना खाना होता ना दवाई लेना. एक दिन तो पूरा आई सी यू सिर पर उठा लिया..नर्सस ने मिन्नतें की..डॉक्टर्स आये..पर वो ना मानी. फिर उसके पोते को बुलाया गया..वो लड़का..उसके नज़दीक बैठा..दो प्यार के बोल बोले..हाथो से खाना खिलाया..और सुलाया..क्या चाहिए था उसे?एक जाना पहचाना चेहरा..अन्जाने देश में अजनबी चेहरो के बीच..
ऐसे कई किस्से है..यादें जुड़ी है अपोलो के साथ..और वो बस बढ़ती ही जाती है..हर बार इंसानियत का कोई पाठइंसानो की अच्छाई का एक उदाहरण देख आती हू..और मन ही मन दुआ करती हू...जब भी यहा आऊं कुछ सीख के जायूं जो मुझे एक बेहतर इंसान बनाता रहे..
-सई
सई को जुलाई महीने से खासा लगाव है यूँ कहे उनका दिल का नाता है . दो बार उनके दिल से छेड़ छाड़ इसी महीने मे हुई है (उनके दिल की सर्जरी हुई है 'मिट्रल वाल्व रिप्लेसमेंट "आम भाषा मे कहूँ तो उसके दिल मे छेद है) पहली सर्जरी ६ जुलाई २००२ मे plaaned थी दूसरी सर्जरी २१ जुलाई २००६ मे इमर्जेंसी मे...क्यूंकि पहली सर्जरी कामयाब नही हो पायी ....उनके दिल मे ढेरो नज्मे ओर शेर भी जमा है ओर बावजूद चाकू छुरों ओर ढेरो ग्लोव्स का सामना किए हुए अब भी वही टिके है ..कभी फ़िर गुजारिश करूँगा उनसे भी.....