वक़्त एक सिगरेट है जिसका एक सिरा तेजी से जलता है.......
वो अम्मा ओर आपा के साथ आयी है ..उसे पहली बार देखकर ही आप अंदाजा लगा लेते है उसे .जिंदगी से भरपूर मोहब्बत है.. ..बेफिक्र .अल्हड शोख...गोद में बिल्ली का बच्चा थामे ...बात बात पे खिलखिलाती है . तो .उसके दांत चमकते है ...अम्मा जितना डांटती है .वो उतना ही खिलखिलाती है .
मरी को कित्ता कहती हूँ इस निगोड़े का भला वहां क्या काम ...अम्मा बिल्ली के बच्चे से नाराज है .जो उसकी गोद में यूँ दुबका है जिसे सब समझ रहा है ...
रास्ते भर कित्ते लोग निगाह उठा कर देखे है ...
कल गिलहरी को देखने आँगन के पेड़ पे चढ़ गयी.....बतायो जवान जहान लड़किया क्या पेड़ पे चढ़ती है डॉ साहब अम्मा ड्रेसिंग करवाते शिकायत करती है ...
तो क्या बूढी औरते पेड़ पे चढ़ती है ...वो आँख फैला के बोलती है फिर खुद ही हंसती है ...उसके गालो पे पड़े डिम्पल ओर गहरे हो जाते है ....
"खामखां हंसती है "अम्मा नाराज है..
पर ये खामखां की हंसी उसे बहुत सूट करती है .... ....
एक रोज धूप में बारिश भी है .... "ऐसे में चिडिया का ब्याह होता है "...वो हर बात हंस कर कहती है .उसका रिज़ल्ट आया है .फर्स्ट डिविजन ....आप रोज रोज मर्ज देखकर बोर नहीं हो जाते ....उसका सवाल है ....
"चल मरी "अम्मा धमकाती है .....
मै तो वकील बनूगी...वो जैसे कसम उठाती है...मेरे टेबल पे चोकलेट छोड़ गयी है.....
उस रोज उनकी तिगडी में अम्मा गंभीर है ..
कोई ऐसे ट्यूब लिख दो डॉ साहब के बड़ी के चेहरे पे थोडा नूर आये ...चार दिन बाद लड़के वाले देखने आ रहे है ....
एक हमारे लिए भी....वो मासूमियत से कहती है ...."तीन दिन बाद सुना है राहुल गांधी आ रहे है "दोनों बहने खिलखिला के हंसती है ...गोद में बिल्ली का बच्चा सिकुड़ जाता है...थोडा बड़ा हो गया है ."चल मरी "अम्मा अपना पेट डाइलोग दोहराती है..जिसपे मुझे शक है की अब वो असर नहीं करता .... अगले कुछ रोज गुजरते है ...आज बिल्ली का बच्चा नहीं है ....अम्मा के साथ वे दोनों है...."अल्लाह के फजल से छोटे भाई के लिए उन्होंने तरन्नुम को भी मांग लिया है ...दोनों का एक ही टाइम निकाह है ..बड़े लोग है....दोनों बहने खुश रहेगी ...आप को भी दावत में आना पड़ेगा ...".
वो हंसी नहीं है !
वक़्त अपने सफ्हे पलटता है....
तीन साल बाद अम्मा किसी के साथ दाखिल हुई है ....
सफ़ेद जर्द चेहरा ..आँखों के नीचे काले घेरे ..एक अजीब सी उदासी ....गोद में एक बच्चा ...दूसरा अम्मा के साथ है...मुझे पहचानने में वक़्त लगता है...कोई बाहर जोर जोर से मोबाइल पे बात कर रहा है ...
वक़्त जैसे छलांग लगाकर उसके चेहरे पे पहले आ जमा था
कोई टेंशन ?मै पूछता हूँ...
टेंशन काहे की ....अम्मा कहती है ..सहूलियतों से .भरा पूरा घर है ..जी लगाने को दो बच्चे .....तंदरुस्त शौहर ..सगी बहन घर में .बतायो ओर क्या चाहिए औरत को.....?
वो जिंदगी से गायब सी है .बेहिस ...जैसे खामोशी ओड ली है ...
उसके सर पे कुछ इन्फेक्शन है ....
कुछ दिन सर पे पल्ला मत रखना .... प्रेस्क्रिप्शन लिखते लिखते मै कहता हूँ....
"ये ही मुश्किल होगा डॉ साहब ...हमारे यहाँ इसी का चलन है .."हाथ में दो मोबाइल लिए ..मुंह में मसाला भरे सफ़ेद कपड़ो में ...बेडोल सा एक शख्स दाखिल होता है...
अपनी पेशेवर गैर पेशेवर जिंदगी में मैंने कई चेहरों को बुझते देखा है एक चेहरा ओर रजिस्टर में दर्ज हो गया है…... उसके जाने के बाद पहली बार कमरा एक अजीब से खालीपन से भर गया है ...चेंज के लिए कुर्सी से उठता हूँ....बाहर धूप के साथ बारिश है ..... औरत के हिस्से क्या दुखो की कोई जीरोक्स मशीन की वसीयत खुदा ने लिख छोडी है ?
एबस्ट्रेक्ट सा कुछ .....
24x7 की अरजेन्सी में चलने वाली दुनिया में पता नहीं क्या है जो ठहर गया है ...जब कभी गुमान होने लगता है इसे समझ गया हूँ जिंदगी अपने जादुई तहखानों से फिर अपनी एक नयी गली का कोई दरवाजा खोल देती है ...इतनी गलिया है छोटी बढ़ी .ताज्जुब तो जब होता है जब बचपन से गुजरी किसी गली के मुहाने पर दोबारा पहुँचता हूँ ..कुछ चीजे साफ़ साफ़ दिखती है नए मायनों के साथ ....आगे सड़क पे बैलगाडी में जुता बैल हांफ कर मुंह से झाग निकलता है . ईट लादे बैल गाडी वाले के चाबुक को देख कर डर लगता पीछे चलती गाडी जोर से चीखती है ....सटाक ....एक चाबुक........... शहर का हर हिस्सा कभी कभी कस्बाई रूप दिखा देता है .... "सेमी -अरबन "यही कहता है मेरा दोस्त ... पिछले दो घंटे से वे बाप बेटे अस्पताल के गलियारे में है ..बेटा स्ट्रेचर पे प्लास्टर बांधे .बाप टांगो पे खडा... अजीब बात है दोनों के चेहरे पे कोई गुस्सा कोई झुंझलाहट नहीं ..गरीब के अन्दर इतनी पेशेंस क्या जीन्स में होती है ? दूसरे गलियारे में डिजायनर साडी में फ्रूट बांटती एलिट क्लास …..परोपकार संडे की एक्स्ट्रा केरिकुलर एक्टिविटी है ,दुखो के झुंडों को तलाशकर सामूहिक रूप से किया जाने वाला थ्रिल....
.. दुःख के कितने रजिस्टर खुले है . अपनी अपनी भाषा लिए. पर मसौदा वही है...
दुःख से वाक आउट करने का कोई रास्ता नहीं बना है. न ओवर टेक करने की तरकीब…..दो पैर वाले जानवर ने दुनिया की हर शै पे कब्जा कर लिया है ...