2009-06-29

"बाँध के रखो इन ख्यालो को....कम्बखत आसमां तक उडान भरते है "

राशिद मियां ….तकरीबन ५० साल के है एक रुपये में एक कपडा प्रेस करते है .दस किलोमीटर से साईकिल चलाकर एक दूकान के आगे लकडी के एक तख्त पर ऊपर एक चद्दर तानकर सूरज से लड़ के पिछले बीस सालो से कोयले की प्रेस के संग है .. बचपन की पढाई से यहाँ तक के सफ़र में उन्हें वही खड़े देखा है .जैसे कोई किरदार खामोशी से अपना एक ही रोल निभा रहा है... पहले सूरज इतना चुभता नहीं था ...सूरज बदला है या मै....
आपकी प्रेस इस बिजली की मोहताज नहीं मियां...मै उनसे कहता हूँ....
एक बात बतायेगे छोटे मियां ....वे गाडी की खिड़की पे आ गये है ...मुझे लगता है वे किसी बीमारी की बाबत बात करेगे ...
" कोई जन्नत है भी या ये भी खामखाँ हम जैसो को बहलाने के शगल है ….उनकी नजर मेरे लेपटोप पर रुक गयी है … .. " सुना है साइंस ने बड़ी तरक्की कर ली है इन दिनों .. ...आपका ये जादू का डब्बा कुछ कहता है इस बारे में ..." मै सिर्फ मुस्कराता हूँ ….अक्सर मेरी गाडी से प्रेस के लिए कपडे उठाते उन्हें किताबे ओर लेप टॉप दिख जाते है .इसलिए उन्हें गलतफहमी है के मै खूब पढने लिखने वाला इंसान हूँ
आप तो हवाई जहाज में कई बार बैठे होगे .आसमान में...
हाँ क्यों ?
कुछ नहीं......वे हंसते हुए कपडे उठाते है. हमारी बेगम कहती है .. रब ऊपर बैठा है …फिर एक ठंडी सांस ..…"पगली है " ...
"मुए जहाजो से कहो कभी हार्न बजाये......


अपनी दुनिया को आसमान से ढक कर
तुम्हारा खुदा बड़ी बेफिक्री से सोया है "







सुना है कपिल सिब्बल शिक्षा में नयी क्रान्ति ला रहे है ....तो क्या इस देश के किसी दूर दराज गाँव का
बच्चा भी वही किताब पढेगा . जो दिल्ली या कलकत्ता में ए. सी क्लास रूम में पढने वाले बच्चा पढ़ रहा है . ...... .तो क्या अब स्कोलर शिप के फार्म हर गरीब के बस्ते में होगे …..की कोई हुनर दाल- रोटी की फ़िक्र में जाया न हो..... तो क्या अब ..... २२ साल के होने पे ....जिंदगी की दौड़ में .. मौको की एक सी रिले -रेस होगी ..तो क्या अब किस्मत केवल दौलत वालो के पाले में खड़ी न होगी .. .हिश -श- श- श...... बावरा मन देखने चला एक सपना ….अभी तो राखी सावंत की शादी पे नेशनल डिबेट हो रही है...

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