2009-02-08

यू क्नो अवर ब्लडी समाज .....इमोशनल अत्याचार ओर जानेमन .....


भीड़ भाड़ भर उस मोहल्ले में जहाँ चारो ओर पंजाबी ही पंजाबी थे ओर उनकी ढेर सारी लड़किया .. इश्क से हमारी मुलाकात वही हुई थी ,उस पंजाबी मोहल्ले में रहने के दो बड़े फायदे हुए हमारी माँ को पंजाबी स्टाइल का राजमा बनाना आ गया ओर वही उन्होंने पंजाबी सांभर बनाना सीखा ...आलू के पराँठे में अचार का मसाला भर कर हम कभी कभी आज के पिज्जा ओर मेक्दोनल के बर्गर से उन दिनों मुकाबला करते थे ....
खैर इश्क के मौसम में इश्क पर आते है , ...साइकिल पे चलते इश्क से पहला टकराव हुआ ...तब हम कुल जमा ७ -८ साल के होगे ....नीचे वाले घर में ४ लड़किया थी बड़ी बड़ी..उनमे से एक थी शम्मी दीदी ।सबसे सुंदर....वो चश्मा लगाने के बाद ओर सुंदर लगती थी.....सफ़ेद रंग का उनका वो फ्रेम मुझे आज भी याद है..... कुल जमा ४ घर थे ..ओर बिल्डिंग की लड़कियों को जब भी बाहर निकलना होता .हम जैसे छोटो को पकड़ा जाता ....कई बार बड़ी कोफ्त होती ....आप कंचा ताड़ रहे होते .. या किसी घर आए मेहमान के लिए प्लेट में रखे ग्लूकोज़ के बिस्किट के आगे मुस्तैद रहते .. ओर आपको अचानक फरमान सुनाया जाता की समेट लो ....हमें समझ नही आता की शम्मी दीदी जाती है तो हमें क्यों अपने साथ ले जाती है...पर जब किसी दूकान पे कंचे वाली बोतल का नमकीन पानी गटकते तो शम्मी दीदी अच्छी लगने लगती......
उन छोटी -छोटी गलियों के मुहाने पर ढेरो ऐसे प्रेमी होते जिनका नाम इतिहास में दर्ज नही है ... .... एक साहब चौडी सी बेल बोटम पहने अक्सर गली के कोने पे साइकिल लेकर खड़े होते ..पास से गुजरते तो अक्सर कुछ न कुछ गाना सुनाते ...शम्मी दीदी दूर से उन्हें देखती ओर नीची नजरे करके तेजी से हमें घसीटते हुए ले जाती ....हम अचानक हुए इस गति परिवर्तन से अक्सर नाराज होते ओर अक्सर उन साइकिल वाले साहब को देर तक पीछे मुड कर देखते ...वे हमें आँख मारते....एक रोज हमने भी पलटकर मार दी...कई दिनों ये सिलसिला चला ....
उन दिनों हमारा प्रिय शगल कंचे था ..ओर जीत जीत के हम बिल्डिंग में एक खास सीक्रेट जगह उनको छिपा कर रखते ...दुनिया के दूसरे पिताओ की तरह हमारे पिता को भी कंचो से नफरत थी .... एक दिन हम जब अकेले अपने कंचे संभाले गली में से गुजर रहे थे , तो उन्ही साहेब ने हमें आवाज देकर बुलाया ...उस दिन हम हार के ग़मगीन लौट रहे थे ....उन्होंने एक ख़त ...ओर बड़े बड़े कंचे ... हमें दिए .... ख़त को हिदायतों के साथ थमाया गया छोटी सी जेब में कंचे बजाते हम घर की ओर चले .....तभी पिता श्री के लेम्ब्रेटा स्कूटर की आवाज सुनाई...पिता श्री के आने से पहले ही हमने उन्हें सीक्रेट जगह छिपाना था .. .कंचे बड़े भारी थे .... ...इश्क की गहराई तब हम समझते नही थे .......सो बिल्डिंग में घुसते ही ख़त हमने सामने खड़े शम्मी दीदी के पिता जी चमन अंकल को दे दिया ......
थोडी देर बाद जब हमारी ठुकाई हुई ओर सीक्रेट जगह का राज भी हमारे छोटे भाई ने पिता श्री के आगे खोल दिया...ओर हमारी अमानत ...हमारा खजाना .. सारे कंचे फेंके गए .... उस दिन हमें अहसास हुआ की ये ख़त भी खतरनाक चीज है....उस दिन के बाद से ना तो गली में बेल बोटम दिखी ओर कई दिनों तक हमने कंचे वाली बोतल भी नसीब नही हुई
कई दिनों बाद हमारा प्रमोशन हुआ ओर हमें बड़ी नीता दीदी के साथ ट्रांसफर कर दिया गया ओर हम रंगीन बर्फ के गोले खाने लगे ....नीता दीदी ऐसे एक साईकिल वाले के पास पहुंचकर ओर धीमी हो जाती ...वो फुसफुसा कर बोलता 'जानेमन " ...सुनकर वे आँख तिरछी कर देखती फ़िर मुंह दबाकर हंसती.....हम समझ नही पाते ..एक रोज हमने अपनी टीचर से इसका मतलब पूछा ... उन्होंने डांटकर डस्ट - बिन पर मुंह पर टेप लगाकर बिठा दिया ......हमने दिमाग की डायरी में दूसरा खतरनाक वर्ड नोट कर लिया
कुछ ही महीनो में नीता दीदी की शादी तय हो गयी .ओर उन्होंने सगाई होने की खुशी में हम सबने ऋषि कपूर की' कर्ज -मूवी" देखी ....एक संभावित प्रेम कहानी के क्रूर कत्ल के पाप का बोझ हम बरसो से अपने सीने में लिए घूम रहे है....
देव -डी रिलीज हो गयी है .... अभय देओल मुझे पसंद है ओर अनुराग कश्यप भी... ..अभय की . पहली पिक्चर 'सोचा ना था "खासी दिलचस्प थी .. उसी का एक डाइलोग था "यू क्नो अवर ब्लडी समाज " ....याद आ रहा है.......सामने .रिक्शा में लड़की चल रही है....ओर मोटरसाइकिल पे लड़का... उसे कार्ड देने की कोशिश कर रहा है ....इश्क का "एपिडेमिक" इस महीने खासा फैलता है .....संस्क्रति के लम्बरदार ओर उनके लठैत कितनी कोशिश कर ले ये "इमोशनल अत्याचार" रुकेगा नही.... ...कम्बखत . इश्क के सेल मगर मरते नही ... ..


आज की त्रिवेणी ...

कागज की पर्चियों को अब बेगारी भी नही मिलती
देर रात तक "एस.एम् एस " ही गुलाब तक ढोता है .......

ये इश्क भी इन दिनों कितना पेचीदा है

ओर अजित वडनेकर जी से मुआफी मांगते हुए जिन्हें ६- ७ महीने पहले "बकलम- ख़ुद' में लिखने के वादे को पूरा नही कर पाया ..एक तो कोई गौरवशाली अतीत है नही ...वर्तमान भी रफू करके जैसे तैसे काम चला रहे है... ओर जो फिल्टर करके थोड़ा बहुत निकला है वो पहले ही बाँट दिया....१४ फरवरी को अपनी सगी बीवी को साथ में घूमने -पिक्चर देखने में डर लगने लगा है ....वैसे १४ फरवरी को हमारी टेंशन दूसरे कारणों से होती है... अपनी एनिवर्सरी भी १४ को पड़ती है...


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