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इश्क एक ऐसा गुनाह है जिसकी " ग्लोबल स्वीक्रति" है ...पुरानी फाइलों को अगर तरतीब से टटोला जाये तो हर आदमी का हलफनामा कही न कही किसी कोने में पड़ा जरूर मिलेगा ..... कितने साल बीत गये पर आज भी इश्क ओर शराब ये दो ऐसे नशे है जिसमे "हाई" होने के बाद के कुछ डाइलोग आज भी बरसो बाद वैसे ही है ... ओर" हैंग ओवर" के बाद के भी ..
मोहब्बत ही ऐसी शै है जिसे करने की कोई वजह नहीं होती....यूँ भी हर पेचीदा इश्क की बुनियाद में वही सादा दिल होता है … सपोटिंग रोल में कुछ हमदर्द दोस्त ….…..सिगरेटों के ठूंठे .. जगजीत सिंह ओर एक हेंड्ससम सा रकीब …...कोई साहब पहले कह गये है की " जिंदगी बीस से तीस साल तक किसी रोमंटिक फिल्म की माफिक होती है .....उसके बाद एक आर्ट फिल्म.....यथार्थ सिनेमा.....
क्रिकेट की तरह इश्क भी अनिश्चितताओं से भरा है… कॉलेज के दस सालो मे हमने कई ऐसे जोडो को बनते देखा ....जो एक दूसरे के नाम पे तलवार निकाल लिया करते थे .. ओर वो लड़किया जिसके पास से गुज़रते हुए …हम अक्सर सोचते थे की कितनी गंभीर लड़की है,……पता नही हँसती भी होंगी या नही, ……बाद में घर वालो से विद्रोह कर ऐसी क्रान्तिकारना शादी करती की ....आप लाइफ की थ्योरी में फिर एक संशोधन करते .
"अब ओर नहीं " वाली कसम ..ठीक वैसी सी होती ...… जैसे नया नया पीने वाला अक्सर हैंग ओवर की अगली सुबह में कहता है …., वैसे भी कसमो की उम्र कभी लम्बी नहीं रहती फिर ..इश्क की सबसे बड़ी खासियत है की आप इसमें दकियानूस नहीं होते …कसमे टूटने से कोई आसमान गिरता है भला.....
.. मैथ्स के आलावा कुछ चीजे ओर भी हमें जिंदगी में कभी समझ नहीं आयी ..मसलन की फिल्मो में विलेन रेप से पहले हँसता क्यों है …? मसलन विनोद मेहरा हमेशा अपनी कमीज के चार बटन खुले ..क्यों रखते थे ….मसलन .सचिन स्ट्राइक लेने से पहले अक्सर एल गार्ड की पोजीशन काहे ठीक करते है...मसलन . परपोज़ करना इतना मुश्किल क्यों है ? आप कितने ही बड़े तीसमार खान हो …आप कितनी भी रिहर्सल कर ले ....स्टेज पे रहकर आपने हजारो दर्शको का सामना किया हो... …कॉलेज में आपके नाम पे आत्मविश्वास की कसमे खायी जाती हो.. ..वहां जाकर आप मै मै करके मिमियागे ही …आपका दिल पसलियों से बाहर आएगा ही ….. .वो फराज साहब कहते है न ..
"उससे मिले तो जोमे -तक्काल्लुम के बावजूद
जों सोचकर गये थे वही अक्सर न कहा".....
जोमे -तकल्लुम का मतलब है संवाद की आतुरता यानि की बातचीत की तगड़ी ख्वाहिश …..इश्क में आप अक्सर वही नहीं कहते जो आपको कहना होता है.....पर हर कोई फराज साहब से इत्तेफाक रखे ऐसा जरूरी नहीं ..
मसलन हमसे दो साल सीनियर ....पटेल...भावुकता के अन्यतम विरोधी ...वक़्त की कीमत को भारी तवज्जो देते थे ..सीधे सीधे जाकर .....खल्लास ....
मसलन पटेल साहब के लोबी मेट सांकला जी .....ठीक उनके कमरे के सामने उनका कमरा था..... "मुझे हो गया है प्यार" गर उस वक़्त रिलीज हुआ होता यकीनन उनकी लाइफ में कई बार बेक ग्रायुंड में बजा होता ...धुर इमोशनल आदमी....सेंटीयाना उनकी फितरत में था...हर छह महीने बाद सेंटीया जाते.....ओर हर बार ...मकाम पूछने पे ... वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन .......उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा .....ठंडी आह भरकर गुनगुना देते ..साहिर के "इस मोड़" पे वे करीब आधा दर्जन बार पहुंचे .....ओर इसी मुख्तसर सी ख्वाहिश .सीने में ...लिए कॉलेज से विदा हुए ...
या अपने बंगाली बाबू जो "यूनिक इंटेलिजेंस "की तलाश में आठ साल भटकते रहे.....जब भी पटेल साहब ओर उनका सामना होता पटेल साहब उन्हें धकिया देते ...साले मोहब्बत भी मार्क शीट देखकर करोगे........
किस्सा कोताह ये के ....तफसील से सुनाने बैठे तो एक अदद "वार एंड पीस" ठो मोटा उपन्यास तैयार हो जाए ...
सुनते है अब वक़्त बहुत बदल गया है.....कागज की पर्चियों के बदले बेगारी .एस एम् एस ने ले ली है...उन दिनों इजहारे -मोहब्बत के बाद अमूमन एक डाइलोग यूँ होता था ....
मैंने तुम्हे कभी इस नजर से नहीं देखा......क्या हम अच्छे दोस्त नहीं रह सकते......पता नहीं आजकल कौन सा जुमला पैट्रन में है.....
इधर मौसम भी ..... रोमानटीकाना है पिछले दो दिनों से ..बारिश का..मेनिफेस्टो जैसा कुछ है............काम करने का मन नहीं है... " कमीने" का सोंग वैसे ही दो दिनों से बज रहा है कानो में.....टेन टेंड.....टेन ...टेड .... ......
कासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है …….
आसमान से आज कई यादे गिरेंगी
इसी मुए इश्क के कुछ किस्से यहाँ भी है...