बेतरतीब सी कई सौ ख्वाहिशे है ...वाजिब -गैरवाजिब कई सौ सवाल है....कई सौ शुबहे ...एक आध कन्फेशन भी है ...सबको सकेर कर यहां जमा कर रहा हूं..ताकि गुजरे वक़्त में खुद को शनाख्त करने में सहूलियत रहे ...
जब किसी शाम
तेज बारिश मे ,
किसी शेड के नीचे ,
तुम अपना दुप्पटा
सर से ढके
शरीर हवायो से
जूझती नजर आती हो
तब एक ही बात सोचता हूँ
कि
इश्क के मौसम मे...... ये बरिशे कितनी लाजिमी है