जब किसी रोज दोपहरी मे
तीन चार बूंदे खिड़की से छलांग लगाकर
इन कागजो ओर चेहरे पे
अचानक आ गिरती है,
हवा भी खिड़की के दरवाजे से
लटक कोई शरारत करती है
खिड़की पे टंगा बादल
चिल्लाकर कहता है
"छोड़ो ये गमे- रोजगार के मसले,
छोड़ो ये रोजमर्रा के बेहिस फलसफे ,
छोड़ो ये खामोश मेज ओर कुर्सी
फेंको ये जहीनीयत का लिबास ......."
खिड़की से
...उफक की ओर अपना बस्ता थामे
भागते सूरज को देख
मैं भी सोचता हूँ ...........
चलो यूं करे यारो
"उन्हें "एक "मिस कॉल" दी जाये