हर परिंदा डाल पर सहमा हुआ है ........
आसमान भी जात पूछकर रास्ता दे रहा
मौसम की दीवानगी से वाकिफ़ है........
मुए "एरोपलेंन " ही होश खो बैठे है
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है .......
आसमान से आज कई यादे गिरेंगी
जेब मे छिपाकर मज़हब पहली पंगत बैठता था.........
हर इतवार अब्दुल पेट भर खाना ख़ाता था
धौंकते सीनो से, पेशानी के पसीनो से
लड़ -लड़कर सूरज से जो जमा किया था.........
एक गिलास मे भरकर पी गया पूरा दिन