2008-04-30

कुछ त्रिवेनिया .......

भरोसेमंद नही रहा उड़ान भरना इन दीनो
हर परिंदा डाल पर सहमा हुआ है ........

आसमान भी जात पूछकर रास्ता दे रहा



परिंदे तय कर लेंगे अपना सफ़र
मौसम की दीवानगी से वाकिफ़ है........
मुए "एरोपलेंन " ही होश खो बैठे है




कासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है .......
आसमान से आज कई यादे गिरेंगी


हर इतवार सवेरे उठकर मीलो पैदल चलता था
जेब मे छिपाकर मज़हब पहली पंगत बैठता था.........
हर इतवार अब्दुल पेट भर खाना ख़ाता था


रिक्शावाला .........

धौंकते सीनो से, पेशानी के पसीनो से
लड़ -लड़कर सूरज से जो जमा किया था.........

एक गिलास मे भरकर पी गया पूरा दिन













































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