हर स्त्री के भीतर होती है
एक लड़की..........
बेमौसम की बारिश मे
वो अक्सर भीग जाती है,
उबले हुए भुट्टो को
देख रुक जाती है
अपने नन्हे के साथ
मुन्दी आँखो से ,
उनीदे तारो से
देर तक बतियाती है
मैके मे जामुन के पेड़
पर चढ़ जामुन खाती है ,
बीती हुई जगहो को
स्नेह से थपथपाती है.
पिता की बाँहो मे
चिड़िया के बच्चे सी
छिप जाती है
ढेर सारा प्यार
हथेलियों मे भर
माँ पर उडेल आती है .....
रोज़ कई सपनो को,
वक़्त के कोनो पर ,
जहाँ- तहाँ सजाती है ....
सचिन के चौके पे
आटे से सने हाथो से
सीटी बजाती है
छत पर दौड़
पतंग लूट लाती है......
हर स्त्री के भीतर
होती है एक लड़की ..........
है ना?