मेरठ फरवरी २००१
आबूलेन के एक चौराहे पर खडे हम दोनों कोल्ड-ड्रिंक पी रहे है ,मैं असमंजस मे हूँ की मेरठ शहर मे वापस आयूँ या सूरत वापस चला जायूं,मेरी जेब मे डॉ मेहता की चिठ्ठी पड़ी है ...जिसमे उन्होंने मारीशस मेडिकल कॉलेज को ज्वाइन करने का ऑफर दिया है..मेरी wife को भी microbiology मे एडजस्ट कर दिया जायेगा...मुझे मेरठ बड़ा अव्यस्थित सा लगता है ,कोई डिसिप्लिन नही ..यहाँ के लोग बात बात मे गुस्सा हो जाते है...."यार वहां गुजरात मे पैसा बहुत है ..यहाँ up मे लोग पैसा कमा के फ़िर जोड़ के रखते है ..वहां हर आदमी खर्च करता है इसलिए पैसे का फ्लो बना रहता है ..मैं अपना तर्क देता हूँ,..दस मिनट यहाँ खड़ा रह ...देख कितनी गडिया यहाँ से गुजरती है ....अब मेरठ वो नही रहा १० साल मे ये भी बदल गया है.....साला गाँव है....मैं बुदबुदाता हूँ..हैरान हूँ कि कोई गुजरात मे u.p या मेरठ को कुछ कह देता था तो मैं बिफर जाता था फ़िर मैं ऐसा सोच रहा हूँ.."बेटे ऐसी गाँव ने तुझे पाल पोस कर बड़ा किया है....उसने ओर मैंने अपने सपने साथ ही बोये थे ,साथ साथ ही उन्हें सीचा ओर साथ साथ ही उन्हें बड़ा होते देखा ओर गाहे बगाहे हौसलों की कुछ बूंदे एक दूसरे की मिटटी मे डालते रहे अलबत्ता दोनों की जमीन अलग अलग थी.....बाद के कुछ सालो मे मैं मेडिकल मे एडमिशन लेकर बाहर चला गया ...वो I.A.S के प्री मे तीन बार सेलेक्ट हुआ फ़िर अचानक घर मे पिता के आकस्मिक निधन की वजह से जॉब ज्वाइन कर ली..excise मे काफ़ी अच्छी पोस्ट पर है........."
लेकिन मैं अब शहर मे किसको जानता हूँ..मैं उससे कहता हूँ...सब यार दोस्त बाहर गये...
जब तू यहाँ से गया था तो उस शहर मे किसको जानता था ?अब वहां बहुत से लोग है ना...ये तो तेरा अपना शहर है....कितने दिन लगेंगे...मैं सड़क पर चलती गाडियों के देखता हूँ.......
नवम्बर २००० सूरत ....
यार माँ बाप अकेले पड़ जायेंगे ....छोटा भी बाहर है ..मैं कहता हूँ..
तुम साले शायरों का यही होता है...हर फ़ैसला किताबो के पन्नों से जोड़ कर लेते हो या ..दिल से... 'मेरे सूरत वाले दोस्त कहते है...दोनों बाहर जा रहे है ..एक U.K तो दूसरा हावर्ड..एक opthalmologist है ,दूसरा सोशल मेडीसिन वाला..दूसरे के पिता I.A.S.है इसलिए उसकी सोच भी W.H.O या किसी रिसर्च मे जाने की है...ऐसा नही है की वो ग़लत सोच वाले इंसान है...."सबके हालात जुदा होते है "मैं कहता हूँ...फ़िर शेर पढने लगा ..मेरा दोस्त कह रहा है... ' जिंदगी के गंभीर फैसले जज्बातों से नही लिए जाते '.... अजीब उलझन है......मैं सोचता हूँ...
पहले सोचते थे की बस डिग्री मिले तो छू लेंगे आसमान ....अब यहाँ कोई छोर नही मिल रहा है..इस शहर मे रहकर ढेर सारे सम्बन्ध बन गये है ,एक मन यहाँ भी खींच रहा है......
फरवरी २००१ मेरठ ....
डॉ श्रीवास्तव की .चिट्ठी पापा के आगे रखता हूँ....तुम जाना चाहते हो तो देख लो हमारी चिंता ना करो अभी इस शरीर मे बहुत जान है.....वे कहते है ....मैं उनका चेहरा गौर से देखने लगा हूँ..वे बूढे हो चले है ...चिट्ठी को भी नजदीक से ले जाकर पढ़ रहे है ,एक आँख मे मोतिया आ चुका है ..कई बार कह चुका हूँ की ऑपरेशन करवा लो ....बस तू आ जा फ़िर करवाते है... वो कई महीनों से टालते आ रहे है..... क्या उनका गला रुंधा सा है या मुझे वहम है ,वे अपना गला खंखारते है ... मम्मी चाय लेकर आयी है ..शुगर ओर ब्लड प्रेशर की मरीज है ...मोबाइल बज उठा है...सूरत से देवांग का फोन है....रानदेर रोड पर जगह final कर ली है ....तुने कुछ सोचा की नही ?वो भी opthamlologist है बता ....यहाँ एक दो जगह खाली है... ..मैं चाय पीता पीता बाहर आ गया हूँ....बताता हूँ....
बिना वजह गाड़ी उठाकर बाहर निकल गया हूँ.....आगे एक रिक्शा जा रहा है .हार्न देता हूँ, रिक्शा वाला सुन नही रहा है...देखता हूँ उसमे दो बूढे बुढिया बैठे हुए है ,बुढिया ने कमर का सहारा बूढे को दे रखा है ...बूढा शायद बीमार है....कुछ खांस भी रहा है....हार्न की आवाज सुनकर पीछे देखता है....उसकी शक्ल पापा से मिलती सी लगती है....
जून २००८
शुक्रवार का रात का खाना मेरे साथ खाना है ,उस दिन जरा जल्दी फ्री हो जाना ,मेरा excise वाला दोस्त फोन पर है...मैं समझ जाता हूँ कोई बात है ...वो आजकल गजिअबाद पोस्टेड है..रात को हम साथ बैठे है...उसके चेहरे पर गहरी उदासी है .....वो बोलना शुरू करता है ...
गाँव मे एक जमीन थी .बहुत ज्यादा नही थी ...केवल ५ लाख मे बिकी ...माँ ओर दोनों बड़े भाई के अलावा छोटे भाई बहन का भी हिस्सा मिलाकर सबके हिस्से १ लाख आता ,तुझे मालूम है छोटा कैसा है....मैं सर हिलाता हूँ.. जानता हूँ उसके छोटे के हालात ठीक नही है .सोचता था की इन पैसो से कोई व्यापार करवा दूंगा....पर .....वो खामोश हो जाता है.. भाइयो से कुछ डिसकस करने की सोच ही रहा था कि उससे पहले ही गाड़ी मे रस्ते मे ही मालूम चला दोनों भाइयो ने पहले से तय कर रखा था कहाँ इन्वेस्ट करना है ....बहन ने भी......ये बहुत ज्यादा पैसा तो नही था अनुराग....
उसकी आँखे भर आयी है...८ सालो ने रिश्तो के चेहरे बदल दिए है .. उसके बीच वाले भैय्या उसके हीरो हुआ करते थे ,मैं जानता हूँ... मेरे भी थे ....मैं क्या कहूँ .मैं खामोशी से सुनता हूँ... उसने सिगरेट सुलगा ली है ...
७ जून २००८ शनिवार शाम ६ बजे
क्लिनिक मे घुसता हूँ ..तो एक आदमी अपने बेटे ओर एक अपनी पत्नी से साथ बैठा हुआ है ....उसकी पत्नी कि एक बांह नही है.डॉ साहब ४ बजे से आपका इंतज़ार कर रहा हूँ...वो कहता है ..दूर से आए थे आपका टाइम मालूम नही था ...तो सोचा मिल कर जायेंगे ...उसके ५ साल के बेटे को सफ़ेद दाग है....क्या काम करते हो ?मैं पूछता हूँ...मजदूरी करता हूँ साहब .६० रुपये रोज......१५० रुपिया मेरी फीस देकर वो मुझे दिखाने आया है ...सरकारी अस्पताल मे उसे विश्वास नही है.....साहब मेरा बेटा ठीक तो हो जायेगा ना..उसकी बीवी मुझसे पूछती है....
दर्द है कि कम्बख्त ख़त्म होता नही..........रूह को चैन मिलता नही ....