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देर रात जब मोबाइल बजा .... छत पर घूमते घूमते नजर आसमान पर पड़ी....वही बदली वाला चाँद वहां खड़ा था.....
रोज शब
खींच कर लाते है परिंदे
ओर उठाकर
टांग देते है
आसमान के सीने में
आसमान के सीने में
मुआ चाँद
फ़िर सारी रात सताता है
बेतरतीब सी कई सौ ख्वाहिशे है ...वाजिब -गैरवाजिब कई सौ सवाल है....कई सौ शुबहे ...एक आध कन्फेशन भी है ...सबको सकेर कर यहां जमा कर रहा हूं..ताकि गुजरे वक़्त में खुद को शनाख्त करने में सहूलियत रहे ...