क्या आपने कभी उस रिक्शा वाले को " टिप" दी है जो ..आपको मंजिल पर पहुंचाकर अपना पसीना पोछ रहा हो ? ढेर सारे बच्चो को लेकर कही ढलान पर अटक कर रिक्शा वाले की मदद करने को जो बच्चे रिक्शा से उतर कर धक्का लगाते है …. बड़े होने पर वही बच्चे किसी ठेले पर भारी सामान ले जाते मजदूर के लिए अपनी गाड़ी धीमी नही करते ….ये जानते हुए की उनके पास गियर है …वे जब चाहे अपनी रफ़्तार कम या ज्यादा कर सकते है …..हम आप सब शायद वही बच्चे है जो बड़े हो गए है ।ऐसा क्यों है कि शिक्षा पाकर पढ़ लिख कर हम ओर ज्यादा आत्म - केंद्रित होते जाते है फ़िर उसे ‘यही दुनिया है ” के नारे के पीछे छिपा देते है .पढ़ लिख कर हम अपनी चालाकियों को ओर पैना करते है ओर अपनी कमियों को ज्यादा अच्छे तरीके से छिपाना सीख जाते है ….हम ढेरो आंसू किसी मूवी को देखकर बहा देते है ..पर अपनी संवेदना उसी हॉल कि सीट पर मूवी ख़तम होने के साथ छोड़ आते है . हर इन्सान अपने परिवार के लिए संवेद्नानायो से भरा है पर वही दिल एक अजनबी या मजलूम के लिये दर्द महसूस नही करता ?हो सकता है वो अच्छा पिता हो ?शायद अच्छा बेटा भी, पर क्या ये काफ़ी है ?
जिंदगी बहुत तेज रफ़्तार से भाग रही है ओर हम भी.... वक़्त के साथ शायद हमारे भीतर ढेरो भूले जमा हो जाती है ,ढेरो ऐसे शब्द जो कहे नही गये ,ढेरो ऐसे काम जो करे नही गये ..हमारे दिल का एक कोना ऐसी कई चीजो से भरा रहता है....कभी सोचा है आपने इन्हे उलीचना ?
चरित्र दो वस्तुयों से बनता है ,आप की विचारधारा से ओर आप के समय बिताने के ढंग से ..धारणाये बदल सकती है लेकिन चरित्र का केवल विकास होता है ।२१ साल के जो आप होते है 31 मे वही नही रहते …तजुर्बे सिर्फ़ गुजरने के लिये नही होते ,क्या क्या आपने उनमे से समेटा है ये महतवपूर्ण है .....जीना भी एक कला है कुछ लोग सारे भोग भोगकर भी उनसे मुक्त रहते है ओर कुछ लोग अध्यात्म की शरण मे जाकर भी इस संसार से मुक्त नही हो पाते ॥
मेरा एक सीनियर था कॉलेज मे जिससे मैं बहुत प्रभावित था ,वो दिखने मे अच्छा था ,पढने मे अच्छा था ,ढेरो लड़किया उसकी दोस्त थी ,अच्छा पहनता था ..एक दिन मैंने उससे पूछा ऐसा कैसे ?उसने कहा "आजकल की दुनिया मे "नोर्मल" रहना ही असाधारहण होना है,आप अपने वो काम वक़्त पर करते रहिये जिन्हें उसी वक़्त करना है ,सब चीजे अपने आप होती जायेगी ......
कई बार जब हम मेडिकल प्रोफेशन के दोमिलते है तो अपने पेशे के सुख दुःख भी बांटते है मेरा एक दोस्त ऐसे ही कई बार कहता है 'कई बार ऐसे ऐसे मरीज जिनके बचने की संभावना हम भी नही करते जाने किस चमत्कार से ठीक हो जाते है ओर वे हमें ढेरो आभार ओर आशीर्वाद देकर चले जाते है ,जानते हो कभी कभी जब मैं किसी मरीज के परिवार वालो I.C U मे कहता हूँ की चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा तो ऐसा लगता है की किसी खिड़की पे बैठा भगवान् हंस रहा है.....कही कोई ईश्वर है ......जिसके भय या श्रद्धा से हम अनुशासन मे रहते है
वक़्त बड़ा ही बलवान है इसके एक पन्ने पर जो मनुष्य आपको देवता सा दिख रहा है शायद अगले कुछ पन्नो मे वही आपको साधाहरण से भी गया गुजरे लगा...परिस्थितिया ओर हालात आपके मुताबिक नही चलते ...मेरी कालोनी में,मेरी गली में एक पति पत्नी पता नही कौन सी कुमारियों के बाबा से प्रभावित होकर अपने घर के ऊपर एक आश्रम सा बना लिया है कई बार इन पति को अपनी ऐ।सी गाड़ी में इन कुमारियों को उनके बाबा के साथ ढोते देखा है ॥सुबह उनके ७७ साल के पिता को रिक्शा के इंतज़ार में खड़े देखा॥वे दिल के मरीज़ है ।किसी डॉ को दिखाने जा रहे थे ..ऐसा भक्ति का क्या मूल्य जब आपने रोजमर्रा के कर्तव्य पूरा नही कर रहे ?
हो सकता है उसके घर में कोई किताबो की शेल्फ न हो ..किसी लेखक का नाम उसने न सुना हो , कोई शेर उसे मुह जबानी भी याद न हो ,..किसी मंच पर उसने दो शब्द न बोले हो लेकिन अक्सर शाम को वो बच्चो के साथ पार्क में फूटबाल खेलता दिख जाता है , कभी ऑफिस से लौटी अपनी पत्नी के लिए उसे चाय बनाने में कोई हिचक न होती है .....अपने बूढे माँ बाप की डांट वो अब भी सर झुका कर खाता है , दोस्तों के लिए वो अब भी अपनी ऍफ़ डी तुड़वा देता है ..उसका चेहरा इतना आम है कि उसे याद करने के लिए आपको दिमाग पर जोर देना पड़ता है ..पर यकीन जानिये वो हम आप से कही बेहतर इन्सान है