किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूंढ उसको जो चोटी ओर दाढ़ी तक रहे ,वो दीनदारी क्या - निदा फाज़ली |
उन दिनों सेकंड क्लास में बतियाते ,गप्पे हांकते १८ -२० घंटे हम यार दोस्त गुजार देते थे ,अक्सर टोलियों में चलते थे .सिगरेट से फेफडे जलाते ओर गाना गाकर गला बैठा लेते ....दिल्ली सुबह आता था ...नई दिल्ली उतरकर एक दूसरे से गले मिलते ..पंजाब ,हरियाणा वाले वापस डब्बे में चले जाते ,दिल्ली वालो के साथ हम ऑटो पकड़कर बस अड्डे पर....
पश्चिम एक्सप्रेस टाइम पर थी ,बस अड्डे तक पहुँचते पहुँचते १२ बज गये,थकान इतनी नही होती थी पर घर पहुचने की जल्दी जरूर होती थी ...दिल्ली से मेरठ का रास्ता चुभता था ..मेरठ वाली तख्ती के नीचे हम ५ मिनट खड़े हुए,दो बस गुजरी ,लोग भागे .ओर टूट पड़े .भीड़ देखकर .हमारी हिम्मत नही हुई . . सोचा अगली से चल देंगे....१० मिनट गुजरे कोई बस नही आयी...खैर एक बस पर मेरठ लिखा देख हम भी लपके .किसी ने सामान खिड़की से फेंका ,कोई पहले चढा तो रुमाल सीट पर रखकर हमें इत्तिला कर दिया की रिज़र्व है..आगे बढे दो लोगो की सीट पर जींस टी शर्ट में एक लड़की बैठी हुई थी ,कानो में वाकमैन की तारे ओर आँखों में चश्मा ..हम एक मिनट हिचकिचाये,इत्ते में पीछे वाले एक भाईसाहब अपना बैग पीछे से ही सीट पर धकेलने लगे तो हम बैठ गये ....दो चार मिनट गुजरे ओर लोगो का आने का सिलसिला जारी रहा ..हमसे ठीक आगे की सीट पर .कंडक्टर कानो में पेन्सिल दिये,कंधे पे बैग रखे 'मेरठ- मेरठ' का शोर मचा रहा था...पीछे मुड कर देखा तो सारी सीट फुल थी ..फ़िर किस बात का शोर मचा रहा है . एयर बेग को सीट के नीचे खिसकाया ..बस अड्डे से बाहर निकलते ही ड्राईवर ने फ़िर बस रोकी ,एक रेला भीड़ का चढा …ओर पूरी बस खड़े बैठे लोगो से भर गई ,एक तीखी सी गंध नथुनों में घुसी तो देखा एक 45-50 साल की शरीर से थोड़ा भारी औरत पूरी बाजू की सफ़ेद शर्ट जिसके बटन बंद थे उसके साथ एक मटमैली सी साड़ी पहने एक हाथ में कोई थैला दबाये ओर दूसरे में टीन का कनस्तर थामे थी उसके साथ कोई 4-5 साल की एक सांवली सी लड़की थी , पिंक कलर के फ्राक में ,बाल लगभग मुंडे हुए फ़िर भी बहुत प्यारे नैन नक्श लिए हुए थी .अपनी दादी (शयद दादी ही थी) की धोती को पकड़े ,इधर उधर ताकती हुई ,बस के हिचकोलों से इधर उधर झूलती सी ..एक अजीब सी कशमकश शुरू हुई थी कि इस बच्ची को बिठा लूँ ?या नही ?कुछ देर गुजरने के बाद जब कंडक्टर ने टिकट के आवाज लगानी शुरू की , लोगो के बार बार आगे पीछे होने कि वजह से उंघती बच्ची को परेशान देखकर ...मैंने बच्ची को इशारा किया .लेकिन बच्ची के साथ दादी भी आयी ओर गोद में लेकर बैठने लगी ..दो लोगो की सीट सो मरता क्या न करता अब खिसकाना लाजिमी था उस तरफ़ थोड़ा सा खिसका ही था कि बराबर वाली ने डपट दिया . " व्हाट इस् यूर प्रोब्लम मेन ?मै खड़ा हो गया .....३०-४० मिनट तक सिरके की गंध अपने फेफडो में भरता रहा ...कंडक्टर ने आवाज लगायी ....मोहन नगर वाले .......लड़की उठी ओर मुझे घूरती हुई उठ खड़ी हुई....मैंने अम्मा जी को उधर खिसकने को कहा ओर बैठकर आँखे मूँद ली .....की चलो अगला एक घंटा तो थोडी तसल्ली से कटेगा ..ऐ .लाल्ला तम् कौन हो ?मैंने आँखे खोली ..".मै समझा नही' ?मैंने अम्मा जी से पूछा ....मतलब थारी बिरादरी कौन सी है ? .बमाहन ,के बनिया ?
जब कभी भ्रम होने लगता है की सामजिक परिवेश बदल गया है ,कुछ वाक्यात इसे तोड़ देते है ,आर्यसमाजी परिवार से हूँ इसलिए दोनों भाइयो के नाम के आगे आर्य लगा हुआ है ,आज से तकरीबन ५ साल पहले मेरे क्लीनिक में एक साहेब धड धडाते घुस आये,उनके "अफसरशाही इगो" को दो चार मिनट का इंतज़ार बर्दाश्त नही हुआ (वे साहेब एक I.A.S ऑफिसर थे ),मेरे एक सीनियर डॉ के खासमखास थे ओर कुछ देर बाद मुझे एक procedure करना था इसलिए हम चुप लगा गये,उन्होंने अपनी wife को दिखाना था ,कुछ सवाल जवाब पूछने के बाद जब मै प्रेस्क्रिप्शन लिखने लगा ... बोले डॉ साहब आप कौन हो ?मैंने ऊपर से नीचे तक उन्हें देखा ,साले फीस के रुपये देने में जान जा रही है ओर उम्मीद ये भी लगाए बैठे है कि डॉ साहेब सैम्पल की कोई ट्यूब भी पकड़ा दे ...आपने डॉ साहेब से नहीं पूछा था क्या ?मैंने प्रेस्क्रिप्शन लिखते लिखते हुए कहा ...वे खिसिया गये ..नहीं डॉ साहेब दरअसल हमारे यहाँ कई तरह के लोग आर्य लिखते है "मन तो चाहा की . पूछ लूँ की अगर" वही "होता तो क्या प्रेस्क्रिप्शन फाड़ देते ?पर मुह पर एक मुस्कान चिपका कर मैंने उन्हें विदा कर दिया .......वे भारत की सबसे बड़ी प्रशासनिक सेवा में प्रतियोगिता से चुने गये एक योग्य व्यक्ति थे ,पर अपनी मानसिकता नही बदल पाये थे मैंने ढेरो ऐसे लोगो को देखा है जिनकी शेल्फ बड़ी बड़ी किताबो से भरी है जो ढेरो ज्ञान इधर उधर बांटते है ,जिनकी व्यवहारिकता ओर वाक्पटुता के लोग कायल है ,जो समाज के बड़े खम्बो में से एक है पर जहाँ बिरादरी की बात आती है ,वे एक साधारहण आदमी हो जाते है ...... |
अंत में इस पोस्ट के लिये अभिषेक को खास शुक्रिया जिन्होंने मुझे टेबल बनाने में मदद की ...