"बच्चो के साथ झाडियों में जुगनू ढूंढेगे
दिल के मुआमलात में बचपन भी चाहिए "-बशीर बद्र
पिछले साल दीवाली पर हमेशा की तरह बहुत भाग दौड़ रही ,दीवाली से पहले उपहारों का आदान -प्रदान,एक दूसरे के घर जाना ओर पेशे से जुड़े कई काम ....हर आदमी व्यस्त था रास्ते भी ख़ूब जाम रहे , अक्सर सड़को पर झूंझलहट रही, छोटी दीवाली पर ऐसे ही किसी ख़ास रिश्तेदार के घर जाते वक़्त एक चौराहे पर जाम मे कई देर तक फँसे रहने के बाद ,ग़ुस्से ओर झुंझलाहट मे मै जब ट्रॅफिक पोलीस वाले के बराबर से गुज़रा तो पिछली सीट से ज़ोर से आवाज़ आई “हॅपी दीवाली” मेरे ४ साल के बेटे ने उस ट्रेफिक पुलिस वाले को कहा.तो उसके चेहरे पर इन तनाव के पलोमे भी एक मुस्कराहट आयी अचानक मुझे लगा सचमुच हम छोटी छोटी चीज़ो को कभी कभी कितना मुश्किल बना देते है ओर देखो ये इंसान आज के दिन भी अपनी ड्यूटी कर रहा है ,घर से दूर. मैने शीशा नीचे उतारा ओर कहा” हॅपी दीवाली”
उसने मुस्करा कर जवाब दिया “आपको भी”.
बंगलोर में एक 8 साल की बच्ची दही चावल से भरा कटोरा सिर्फ़ इसलिए खा जाती है की उसके पापा उसे सर मुंडाने देंगे, वो इसलिए सर मुंडा कर स्कूल जाती है क्यूंकि उसकी क्लास में पढने वाला एक बच्चा lukemia से पीड़ित है ,ओर chemotherapy की वजह से गंजे सर के साथ वो स्कूल आने में शर्म महसूस करता था ….. उस नन्ही परी को किसने सिखाया बड़ा होना ?- |