2008-08-18

इश्क -मुश्क आग का दरिया ओर छापामार सेना ...



फलसफा नंबर एक -
“तुमने जिंदगी में क्या कमाया है ये तुम्हारे बैंक अकाउंट से नही तुम्हारे पास कितने दोस्त है इससे पता चलता है .”ये जुमला अक्सर गुजरात की अड़लट्रेडट शराब के घूँट भरते हुए होस्टल के कमरों में अक्सर कहा जाता …जिसमे बेकग्राउंड में धीमे –धीमे गाते जगजीत सिंह अक्सर इस बात की तसदीक करते ,वक़्त बदलता …लोग बदलते …कमरा बदलता …पर ये जुमला वही रहता …..
इस जुमले को आज सुनकर ढेरो लग हंस देंगे ..कुछ ‘लड़कपन के वो दिन वाला गीत कहकर …’पीठ थपथपा देंगे ,कुछ नाक भो सिकोड़ लेंगे पर क्या आपने कभी अपने दोस्तों को गिना है ? क्या उन्हें आप उंगलियों पे गिन सकते है ?जब आप 4 साल के होते है तब सब आपके दोस्त होते है ….10 की उम्र में तकरीबन 30 …15 की उम्र में 20 .ओर 20 की उम्र में 15 ….. ये दायरा ओर सिकुड़ता जाता है .

ब तक हमने नही किया था प्यार
किया था क्या ,
ताज्जुब है ? 
 
याद नही किसने लिखी , ओर कहाँ पढ़ी पर जेहन में आज भी है . तब प्यार फिजायो में घूमता था ,कब कौन इसकी चपेट में आ जाये ,कह नही सकते .
पहले साल सारी लड़किया “बस दोस्त ”…..ओर आपको किसी ओर नज़र से नही देखती .(ऐसा उनका कहना था }बोयस होस्टल में दोस्तों में एक अलिखित समझौता होता कि फला शख्स ,फला पर सेंटी है तो बाकि समझदार लोग अपने आप उस लड़की से दूरी बना लेते थे …….
प कितने ही बड़े तीरंदाज हो ,क्रिकेट के ओपनिंग बेट्समैन हो या "अनाटोमी की  ग्रे' आपको जबानी याद हो …..किसी ख़ास लड़की के सामने आते ही ……दिल बहुत तेज़ी से धड़कने लगता ,,,,पैर कापने लगते …,,,ओर आप जो उसे प्रपोज़ करने की सोचकर गये होते उसके घर के हाल - चल पूछ आते या फ़िर सडे गले कोई नोट्स ले आते ……शर्ट के अन्दर पड़ा ग्रीटिंग कार्ड्स पसीने से भीगा आपको गाली देता लाइब्रेरी की सीडियो पर कई आशिक राजधानी एक्सप्रेस की तरह धड-धडाते जाते ,लेकिन फिरोजपुर जनता की तरह लुटे पिटे से वापस आते ,
श्क बड़ी कमीनी शै है …आपका सुख - चैन छीन लेता है ।अगर आपने प्रपोज़ करने की पहली बाधा पार कर ली तो …"हाँ ”की तलवार गिरने में बहुत वक़्त लेती ….इस दौरान अगर “दोस्ती ” बरकरार रहती .तो एक गुंजाइश बाकि रहती …… अमूमन लड़किया “माहोल ” से ज्यादा प्रभावित रहती …अपने अकेले दिल पर उन्हें थोड़ा कम भरोसा रहता .उनके हॉस्टल में लड़कियों का एक खास समूह होता जिसकी घुसपेठ हर बैच में होती जो अमूमन हर लड़के का एक “ करेक्टर - सरटिविकेट ” तैयार करता ,जिस पर बाकायदा कुछ खास टिपण्णी लिखी जाती .......ओर भविष्यवाणी की जाती कि ये लड़का गब्बर सिंह से बड़ा विलेन है . . उनका संविधान अपने मन मुताबिक संशोधन करता जिसके मापदंड ऐसे थे कि अगर ‘ भगवन राम ‘ भी भेष बदल कर आते तो रावण से बड़े विलेन करार दिए जाते
क्सर हर रात इस समूह कि कुछ सीनियर कन्याये परिकर्मा करते हुए हर कमरे की गंध लेती कि कही किसी गरीब का घर तो नही बस रहा .जहाँ भी उन्हें ये खुशबु मिलती “ब्रेन -वाश का सेशन आपातकालीन स्थ्ति घोषित कर शुरू किया जाता .उस वक़्त under-graduate के लड़कियों के दो हॉस्टल थे .... ओल्ड LH , ओर न्यू LH .(ऐसा नम उनकी बिल्डिंग के लिए दिया गया था ) ....अगर आप का दिल किसी ओल्ड LH की कन्या पर आया होता तो आपको आगाह कर दिया जाता कि बेटे "रकीबो " से अलग कई अनदेखे दुश्मनों से छापामार युद्ध लड़ने के लिए कमर कस लो . ओर अपने "करेक्टर एसिनेशन "के लिए तैयार रहो .
से –ऐसे दस्तावेज़ तैयार होते कि रिश्वत लेकर झूठे दस्तावेज़ तैयार करने वाले सरे सरकारी बाबू शरमा जाये . एक दो गवाह भी अमूमन मौजूद रहते ……..आपके खिलाफ गवाही देने को …..ओर इस बात कि पुरी तसल्ली के बाद कि दिल के चारो कोनो में किसी कोने में आपके नाम कि कोई छोटी सी बूँद तो किसी लड़की के दिल में नही है .ये छापामार सेना वहां से कूच करती .
ओर आप बेचारे इन सबसे अंजान किसी कोने में सिगेरेटो से अपना बचा कूचा दिल फूंक रहे होते या जगजीत सिंह को सुन रहे होते. (शायद जगजीत सिंह भी ये नही जानते होंगे कि कितने प्यार में डूबे ,तैरते ,सँभालते ,अटके लोगो के वो खेवैया रहे है , अगर हमारा बस चलता तो कबका उन्हें ‘भारत - रत्न ” दिलवा देते ).......काश ये अवार्ड भी s.m.s वोटिंग पर आधारित होता 
खैर .इस छापामार सेना से जूझने के लिए हमारे पास कुछ गिने चुने उदारहण होते जैसे कि एक साहिब ने पहले साल किसी मोहतरमा को प्रपोज़ किया ओर आखिरी साल में लड़की ने उन्हें हाँ बोली ….वे कई प्रेमियों के लिए मिसाल बन कर रहे ..अक्सर चाय कि चुस्कियों के साथ वे इश्क के दांव पेचो पर मशवरा देते ....
पर दोस्ती ओर प्यार की एक नाज़ुक दहलीज़ पर जो लोग कुछ वक़्त बिताते . वो वक़्त बढ़ा मुश्किलों ओर उलझन भरा होता लड़के “हाँ ओर न ” के नाज़ुक झूलो में झूलते …..इस दौरान दूसरी किसी लड़की की ओर देखना भी ना काबिले बर्दाश्त गुनाह होता आपकी गर्दन फ़ौरन कलम कर दी जाती . आप लगातार “ओब्सेर्वेशन -पीरियड “ में रहते . .कुछ लोग इस आग के दरिया को पार ककर जाते कुछ गम को गले लगा लेते ....कुछ अपने सीने में इश्क को दफ़न कर लेते ओर कुछ फ़ौरन नए दरिये की ओर रुख कर लेते ..……यूँ ही जिंदगी चलती रहती …


बाद के सालो में इस छापामार सेना के कई प्रभावी सदस्यों ने कुछ ऐसे ही 'संशयास्पद चरित्र' वाले लड़को से लव मेरिज की ....


आख़िर में एक ओर कविता याद नही किसने लिखी ओर कहाँ लिखी…..
मै आपकी दोस्त हूँ
मै आपकी मित्र हूँ
ओर आप क्या चाहते है ?
मै ओर क्या चाहता हूँ ?


जय हो इस" आग के दरिया' की


फलसफा नंबर दो -
दुनियादारी की समझ बड़ी ग़लत चीज़ है ये आपको बदल देती है
दुनियादारी आपको चुप रहने का गुर सिखा देती है आप सलीके से उन्हें क्रमानुसार चुनते है ओर इनका इस्तेमाल करते है ..... दरअसल अब आपके पास एक ओर लोकर है .चुप्प्यियो का …..चुनी हुई चुप्पिया ……इस सभ्य समाज में रहकर" तटस्थता की ये चुप्पी "मोबाइल की तरह जेब में रहती है





LinkWithin

Related Posts with Thumbnails