2008-08-25

"आदमी मे मगर जिंदा शिकायते रही "


इस वक़्त हर आदमी के पास शिकायतों का एक पुलंदा है ....सिलेवार लगाई गयी तकलीफों सहेज कर रखी है ..ये तकलीफे मगर इस "टेक्नोलोजी सक्षम" समाज को धीरे धीरे अंधेरे गलियारे की ओर धकेल रही है ,ऐसा गलियारा जिसके दोनों ओर सजे गमलों में केक्टस लगे है ..नकारात्मकता के केक्टस .....




सोमवार अक्सर ओर दिनों की अपेक्षा ज्यादा मसरूफ रहता है .शायद इतवार की छुट्टी के कारण...एक हॉस्पिटल का राउंड लेकर जब क्लीनिक पहुँचता हूँ...तो फरजाना दिख जाती है ...उसके साथ उसी की एक हम उम्र लड़की है...१९ साल की फरजाना के हाथ में एक फार्म है... रोजाना डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर टेंपो पकड़ कर स्कूल जाना उसकी रोज की कवायद में शामिल है ,सुबह उठकर भैंस का दूध निकालना ओर रात को लालटेन की रौशनी में पढ़कर वो इंटर में 87 प्रतिशत नंबर लायी है ...उसे 20 हज़ार का वजीफा मिला है चेक के रूप में ,इन पैसो को वो पढ़ाई के लिये आगे इस्तेमाल करना चाहती है....पर दिक्कत ये है की .किसी बैंक में उसका अकाउंट नही है ओर नया खाता खोलने के लिये बैंक वाले किसी खातेदार का साइन मांगते है .....इस शहर में वो सिर्फ़ मुझे पहचानती है
आज से ७ साल पहले १२ साल की इस बच्ची को अपनी माँ के सिरहाने एक हस्पताल में देखा था ...उसकी माँ को connective tissue disorder है ,इसलिए वे हर महीने-दो महीने एक चक्कर मेरे क्लीनिक का लगाते है ..
अपने साथ आयी लड़की के लिए वो हिचकिचाते हुए पूछती है ..क्या मै उसके फार्म पर भी साइन कर दूँगा ..बिंदिया ..दूसरी लड़की का नाम है...
वो दोनों उस समाज का प्रतिनिधत्व करती है जहाँ पढने से कतराते लड़को को पुचकार कर धंधे में बिठा दिया जाता है ओर पढने की इच्छा रखने वाली लड़की की पढ़ाई जारी रखने के लिये बेहद चतुराई से रखे गये "तथाकथित नैतिक' ओर सामाजिक तानो बानो को फलांघने का उलहाना भी लंबे समय तक झेलना पड़ता है इस दोयम दर्जे के समाज की तमाम बाधायों से वे लड़ती है पर अपनी संघर्षो की कड़वाहट को सहेज कर नही रखती .....अपने सपनो को सहेजती है
मै अपने बैंक मेनेजर को फोन करके साइन कर देता हूँ.... जाते जाते वो मेरे लेप टॉप पर धोनी को देखकर पूछती है .आप धोनी के भी फैन है(दसवी क्लास मे उसकी फर्स्ट डिविसन आने पर मैंने उसे कलाम की किताब "विंग्स ऑफ़ फायर ".दी थी )....मै उससे कहना चाहता हूँ मै हर उस इंसान का फैन हूँ जो असल जिंदगी में हीरो है .......पर सिर्फ़ मुस्करा देता हूँ...


सोचता हूँ अब इन नेज़ो को तराश लूं
ओर घोप दूं आसमान के सीने मे.........

इल्म क़ी बारिश हो ओर वतन भीग जाये

 













नेल्सन मंडेला अपनी आत्मकथा मे लिखते है की किसी ने उनसे पूछा कि "आप २७ साल जेल मे बंद रहे आपको कही गुस्सा नही आया ?ओर आप उसी जेलर को अपने सम्मान समारोह मे बुलाना चाह कर सम्मानित कर रहे है क्यों ?वे कहते है मुझे बहुत गुस्सा आता है इसलिए मैं इन लोगो को अपने साथ जेल के बाहर नही ले जाना चाहता मैं इनसे आजाद होना चाहता हूँ....
-आहा जिंदगी से


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