2008-11-13

एक टुकडा नज़्म का मेरी साँस मे सरकता रहा

दोनों नज्मो का मिजाज अलग है....एक अक्सर किसी मोड़ से गुजरते वक़्त मिलती है दूसरी इस मसलसल भागती बेसबब जिंदगी में वक़्त- बेवक्त मुझे आइना दिखाती है .......


सुबह से छेनी हथौडे खोल रहे है
उसके जिस्म की तहे …
जिद्दी है मगर रूह उसकी
ना कोई आह है ,ना दर्द की शिकन है चेहरे पर
बस इक हवा है
जों कभी कभी दबी सी सिसकिया भरती है
खामोश खडी है धूप भी
गमजदा सी लगती है ।
जख्मी बदन से
बेतरतीब सी कुछ दुनिया
बाहर निकली है
कोनो पे खडी कुछ बेबस आंखो मे
थोडी नमी भी उभरी है
कितने वाकये ,कितने हादसे
शिरकत करने आये है
क़त्ल मे शामिल
कुछ लोग भी सर झुकाये है

मुफलिसी दोस्त थी उसकी ,
वो मुफलिसों का दोस्त था

आओं इस फुटपाथ को दफ़न कर आये .


(२)
रहने दो चन्द ख़ुशनुमा यादे
वक़्त क़ी तहो मे,
ज़िंदगी हमेशा मन- मुताबिक़ नही होती
अब जब ,
मिलते है बचपन के दोस्त,
ना वो फ़ुरसत होती
ना वो पहले सी ख़ुशी होती


आज की त्रिवेणी

कासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है .....

आसमान से आज कई यादे गिरेंगी

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