2008-12-08

शनिवार की रात से

शनिवार रात क्लीनिक से बाहर निकलता हूँ.... सड़क पर गाड़ी से कुछ कदम दूर ठेलेवाला खड़ा है ..ये सीजनल ठेलेवाला है ,सर्दियों में मूंगफली ओर गर्मियों में तरबूज बेचता है..मै कुछ मूंगफली लेकर गाड़ी में घुसकर अपनी टाई ढीली करता हूँ ...क्लीनिक से घर का रास्ता १२-१५ मिनट का है ...रेडियो ऍफ़ एम् चाभी लगाते ही शुरू हो जाता है...कुछ दूर ड्राइव करने पर मै मूंगफली के पैकेट में हाथ डालता हूँ....तकरीबन ४ -५ मूंफलियो का स्वाद मेरे मुंह को लग चुका है ...आगे रास्ते में सिर्फ़ एक रेड लाईट है .. .छिलका तोड़ता हूँ तो मुंह में कड़वाहट फ़ैल जाती है...कोई कड़वी मूंगफली ..खिड़की से बाहर थूकता हूँ...फ़िर दूसरी मूंगफली........कि .आगे हवलदार खड़ा दिखायी देता है..डंडे से मुझे रुकने को कह रहा है.....मुझे ??? पर क्यों ....."ओह ...." मैंने रेड लाईट क्रॉस कर दी है...... मै गाड़ी साइड में करता हूँ...रेडियो ऍफ़ एम् पर गाना बजना बंद हो गया है.....विज्ञापनों का दौर है......ट्रेफिक पुलिस का हवलदार मेरे पास आता है .रेडियो ऍफ़ एम् पर देशद्रोही का डाइलोग चल रहा है...मै शरमा कर उसे म्यूट करते हुए सफाई देता हूँ "रेडियो है "ठीक वैसे ही जैसे आप कई दिनों कि मशक्कत के बाद जब पहली बार अपनी गर्ल फ्रेंड को रूम पर लाते है ओर पहले से सेट किए गाने को चलाने के लिए अपने टेप रिकॉर्डर का बटन माहोल को ओर रोमांटिक बनाने के लिए दबाते है....उसमे से "तुम तो ठहरे परदेसी "बजता है ओर आप हडबडा के फ़ौरन बंद कर सफाई देते है "मेरा नही है "....(मेरी आत्मकथा से )
वो अन्दर झांकता है" क्या कर रहे थे आप" ?आप शब्द बड़ी मुश्किल से आख़िर में जुडा है शायद मेरे कोट टाई का असर है ....मूंगफली के छिलके मेरी पैंट ओर सीट पर बिखरे पड़े है...कुछ बुरादा मेरे कोट पर .....ओर बराबर वाली सीट पर मूंगफली का पैकेट ..जिसमे से दो चार मूंफालिया बाहर निकल कर सीट पर फैली हुई है....वो एक नजर मुझे घूरता है..."आप चलती गाड़ी में मूंगफली खा रहे थे "मै सर झुकाकर अपराध स्वीकार करता हूँ .... जैसे देसी दारु की बोतल मेरी जेब से बरामद हुई हो....कुछ पल खामोशी से गुजरते है.....जाइये...... ओर आगे ध्यान रखियेगा " ..मै सर झुकाकर बिना ".थैंक यू" कहे अहसान फरामोशी में सरपट गाड़ी दौड़ा देता हूँ ....
देर रात टी.वी म्यूट करके स्टार मूवी पर "वाल स्ट्रीट "मूवी देखते वक़्त मै अमीष को फोन मिलाता हूँ वो सूरत में है "अब समझ में आया तेरी पहली गाड़ी उस रोज कैसी ठुकी थी ."..
आज से साल पहले अपनी गाड़ी में गिरी कैसेट को उठाने के लिए झुके अमीष ने अपनी पहली नई कार को ठोक दिया था


आज की त्रिवेणी

खामोशी में भी लफ्ज़ ढूंढ लिए उसने
वो भी सुना उसने जो कहा नही .....

ये गलतफहमिया भी अजीब होती है

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