उसे उसी रस्ते से उसे वापस आना है... .....उसी दफ्तर में ....उसी रेल से ...उसका मन पर ...दफ्तर जाने का नही है. उसका मन करता है की उड़कर बंगलौर चला जाये ... २९ साल के उस नौजवान के पिता से लिपट कर एक बार रोये ..सबके सामने ...जोर से उस बूढे नेता को गाली दे ...उसका मन करता है उस रेलवे स्टेशन में कुछ देर रुके ..जहाँ एक गरीब आदमी ने अपने परिवार के ६ आदमियों को खोया है ..जिनके कफ़न के पैसे पडोसियों ने जुटाये है........वो नही जानता की हवलदार गजेंद्र सिंह दिखने में कैसा था .....वो कभी ताज नही गया .उसकी हैसियत नही थी पर उसे वो इमारत बहुत अच्छी लगती है .....वो मुंबई की उस रैली में भी नही जा पाया ....किसी शहीद की अन्तिम यात्रा में शामिल नही हो पाया ......... उसके मन में बहुत कुछ है ..बहुत कुछ......स्टेशन आ रहा है...उसका दफ्तर भी...... २ साल के उस नन्हे बच्चे की .तस्वीर उसे अपने बेटे सी लगती है ...अखबार को मोड़कर वो अपने हाथ के ब्रीफकेस में फंसाता है अपनी आँखों को टटोलता है... भीड़ में उतरने की कवायद शुरू हो गयी है ...उसके ब्रीफकेस से .अखबार की हेडलाइन चमकती है " मुंबई स्प्रिट"