जिंदगी कोई "हिचकॉक" की फिल्म नहीं है जहाँ संस्पेंस मुख्य पात्र है ..न ही मनमोहन देसाई का "खोया -पाया" फार्मूला ..इसका अधिकतर फुटेज स्टीरियो टाइप ही है ...कलात्मक सिनेमा संस्करण की बची खुची उम्मीद शर्मा जैसे "मिसकास्ट" लोग सुबह सुबह तोड़ते है ....भंगन की लड़की जींस पहनकर कर सड़क पे झाडू लगा रही है ...मिसेस शरमा मुंह फाड़े गेट पे कोहनी टिकाये "संस्क्रति" की ऐसी तेसी होते देख रहे है .....शर्मा जी" प्रगतिशीलता के इस लिबास पे " बख्त ख़राब है "का अपना पेटेंट बोर्ड टाँगे खड़े है.......सड़क पे पड़े दो कागजो के टुकड़े देखकर ये हफ्ते में दो बार कामचोरी पे "गोल मेज सम्मलेन" बुलवा लेते है ..पर महीने के पहले हफ्ते ... शर्मा जी के पास जब कालोनी का चौकीदार डेड सौ रुपये लेने पहुंचेगा .तो उसे दस मिनट गेट पे खडा करने के बाद ये अपने पजामे में से सौ रुपये निकल कर कहेंगे" हमारे पास तो इतने ही है जी "....फिर हो हो करके हँसेंगे ...ऐसे में मन करता है शाप दे दूँ ....पुराना बख्त ठीक था जहाँ मूड ऑफ़ हुआ ...शाप दे दिया .सुना है ऋषि दुर्वासा इसके सबसे बड़े शेयर होल्डर थे ....तभी इन्द्र हलकान हुए रहते थे ...वैसे इन्द्र का सिहांसन जरूर किसी खुन्नस खाये बढ़ई ने बनाया था जो बात बात पे डोलता था .... .
ऐसे में किसी 'डिफरेंट "सुबह की उम्मीद करना बेमानी है ….तो गोया हम भी काम पे निकलने से पहले अपने मुखौटे की झाड़ पोंछ करते है .उसके नट -बोल्ट कसते है …. इस सदी के ….हर आदमी के पास अपना अपना मुखौटा है ...पहनने को.... मजाल जो .किसी की . असली सूरत दिखे ..कुछ मुखोटो में अप- ग्रेड होने की सुविधा भी है ..तो ...उसी रास्ते की .उसी सड़क के ..उसी चौराहइ पे आप रेड लाईट पे रूककर रेडियो के कान उमेठते है ... ट्रेफिक न हुआ कोई" रिले -रेस" हो गयी .जिसे देखो दौड़ रिया है.....आगे लाल स्कूटी पे बैठी लड़की ने सबकी आँखों की एक्स रे मशीन ऑन कर दी है ..एक साहबजादे अपनी मोटरसाइकिल पे ऐसे लटक हुए है मानो ,अलग अलग एंगलो से कोई स्क्रीन टेस्ट ले रहे हो ...ओर ..मोड़ पे खड़े पुलिस वाले अपनी मोटी तोंद ओर लटकी बेल्ट के साथ सी टी स्केन कर रिये है........ये चरित्र प्रमाण- पत्र हर ६ महीने मे रिवियु होने चाहिए ...........वैसे गर हर लड़की के हाथ मे एक बंदूक दे दी जाये के घूर कर देखने वाले को .....धाँय... धांय …...
रूटीन कितना बोरिंग है ना ……अधजगा लिफ्टमेन .जिसकी वर्दी से गंध के भभके छूटते है ..आप निसंकोच शर्त लगा सकते है इसे जरूर फंगल इन्फेक्शन होगा.... ...पान मसाला से रंगे दातो को चमकाता ऑफिस का चपरासी बहादुर .या रामू .....आप का मन करता है ऑफिस के बीच गलियारे में खड़े होकर बॉस को गली दे “साले “….सारा स्टाफ ब्रेवो कहकर खड़े होकर ताली बजाये …पर मुखौटे के पीछे से आप स्वर में मिश्री की तीन क्यूब मिला कर गुड मोर्निंग सर कहकर अपने अन्दर के इंकलाबी को समझौता परस्त बनाते है ... शुक्र है अपने साथ कोई बॉस का लफडा नहीं है
.....क्लीनिक पहुँचता हूँ....पिछले एक हफ्ते से मेडिकल -स्टोर वाला किसी दूर दराज वाले गंवई बूढे की फ़िक्र में है . ….इशारों इशारो में वो रोज उसकी आमद की तारीख पूछना चाह रहा है .....रिसेप्शिनिस्ट उसकी चिंता का असल कारण बताती है ……उसे 235 रुपियो की फ़िक्र है …जो उसने दवायों पे उधार के छोड़े थे ....
पहले मरीज एक साहब है .. जिनके भीतर का बुद्दिजीवी केवल पी कर जागता है....कोकेटेलो पे वे कल्चरल क्रान्ति के कई विशुद्ध चिंतको का जमावडा करते है ..ओर रात भर बहसियाते है.... ....पर अफ़सोस अल्कोहल से इन्हें एलर्जी है ......बुद्दिजीवी को ये देश हित में जरूरी मानते है ...इसलिए एक पखवाडे हमारी सेवा ले लेते है ....यूँ तो मै इन्टेलेकच्युँलो की मै बहुत इज्ज़त करता हूँ पर ज्यादा इज्ज़त देने से कभी कभी वे बहुत बोर करते है...
दोपहर का लंच ब्रेक .......गंवई बूढा अपने साथ कच्चे आम की बोरी दूर से ढोकर लाया है...डॉ साहब के आम के अचार के वास्ते ..... सामने एक बोरी मेडिकल स्टोर पे भी पड़ी है......अपुन को इदरीच ही रहने होगा ..... इसी स्टेरियो टाइप लाइफ में.....कच्चे आम की खुशबु गाडी में फ़ैल गयी है.....किसी की लाइफ में अपुन भी तो मिसकास्ट होगा ......
आपको याद है वो जिन ….जो चिराग के घिसने पे प्रकट होकर कहता था .क्या हुक्म है मेरे आका “.क्या .मस्त जिन था ना ?कुछ आईडिया ,आजकल किधर ? |