2009-05-21

बुनियादी तौर से भावुक .......साले "इमोशनल इडियट"!!!!


त्मा भी साली टाइम नहीं देखती .कही भी खड़ी हो जाती है ......"इमोशनल इडियट "!.है ना ...वे मेरे कंधे पे हाथ रखकर कहते है ....तब गरीबी लिमिटिड थी ....दस बीस गुनाहों पे एक परोपकार एडजस्ट हो जाता था.....अब जमाना बदल गया है ...इस कम्पीटीशन के जमाने में सर्वाइवल ......यू क्नो "डार्विन"!!!!!!! .... साँस लेकर वाक्य अधूरा छोड़ते है ......... ग्लास में आइस की दो क्यूब डालते है ...उनके बही खाते में कई परोपकार जमा है .. वे समाज के बड़े खंभे है... ओर बूढे भी.....प्रेक्टिस में २५ साल से है.....एक ही सांस में वे सारी सटक जाते है ...पार्किंग तक जाते जाते वे मुड़ते है ओर पूछते है .तुम कौन से महीने की पैदाइश हो .?मार्च ....एरियन....फिर कुछ बुदबुदाते हुए निकल जाते है .....
रा के साडे ग्यारह बजे है ....मै गाडी में घुसता हुआ टाइम देखता हूँ....टाइम......सारा खेल कुछ सेकंडो का ही है........ आप दस बजकर २० मिनट ओर २५ सेकंड पे पैदा हुए है .... यदि सत्ताईसवे सेकेण्ड पे होते तो शायद किसी सरकारी अस्पताल के गलियारे में सीधे निकलते .......या बाइस्वे पे होते तो शायद खरबपति मित्तल के दामाद ...कुल मिलकर आपका योगदान सिफर है....इस जगह पे रहने का.......लक बाय चांस...!
...
मोबाइल का अलार्र्म जोर से सुबह की आमद की घोषणा करता है ... तो याद करने की कोशिश करता हूँ की वक़्त की फिलोसफी का सपना था ...? या कल रात इसकी भी कोई बात हुई है .....ब्रश करते हुए अंग्रेजी अखबार के पन्ने पलटता हूँ.....वे खुश है .कोई इंडियन फिमेल दस होटेस्ट सी .इ .ओ में से एक है.....
दोपहर एक बजे ....
बिजली अपनी मुंह दिखाई की रस्म अदायगी करने आयी है ....मै बराबर वाले डॉ आहूजा के पास हूँ....नजदीक के गाँव से ईट भट्टे पे काम करने वाला एक मजदूर परिवार अपने सवा साल के बच्चे को लेकर आया है....जो तीन दिन से चिडचिडा है .खा नहीं रहा ...सो नहीं रहा है......बुखार नहीं है..डॉ आहूजा उसे एक्सामिन करते है....बच्चा अब भी चिडचिडा है .कुछ उनींदा सा .......वे उसे नजदीक के अस्पताल की नर्सरी में एडमिट करने की सलाह देते है.....उनका मोबाइल बजा है ...कोई "डिलिवरी कॉल" है .....वे निकलते है ....वापसी में वे सीधे हॉस्पिटल जायंगे....
रात पौने नौ बजे ...
क्लीनिक से बाहर निकलता हूँ....डॉ आहूजा खड़े है......क्या था उसे ?मै उस बच्चे के बारे में पूछता हूँ...कुछ डाइग्नोसिस बना ? वे मुस्कराते है......बताते है कॉल से नर्सरी में लौटा तो बच्चा सो रहा था ....आराम से...
..फिर ???मै पूछता हूँ.....फिर क्या धूप ओर गर्मी से बेहाल था .. बस नर्सरी का .सी चाहिए था उसे...!










वक़्त .दो ढाई साल पहले का .. कडाके की सर्दिया ..जनवरी के शुरूआती दिन . .यू. पी का बांदा ...एक रिक्शा वाला चार बच्चो को पालने में हार मान लेता है . ... अपने .४ महीने के एक बच्चे को बेचने पे राजी ....मीडिया में "गरीबी "बड़ी खबर है ...ओर "बेचना "ओर भी सनसनी खेज...मीडिया की इस करुणाजनक तस्वीर पे हल्ला ...डी. एम् के ऑर्डर ..माँ के साथ ४ महीने का बच्चा भी थाने में ....कडाके की ठण्ड . ......निमोनिया ....अगली सुबह ...??? उसका नाम चन्दन था.....इन सालो में कुछ नहीं बदला है .गरीबी उत्ती ही बदचलन है ....चंदनो को मरने का अब भी सलीका नहीं आया ... ....


इक इक साँस की जद्दो-जेहद
फेफड़ो ने भी क़बूल किया अब....


मुफलिसी से बड़ा जुर्म नही कोई?



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