सुबह की नींद ..में दो बार बजे अलार्म के बाद जब कोई आवाज देकर आपको उठाता है ओर आप तकिये से लिपट कर कहते है "बस पॉँच मिनट ओर " हाय वो पांच मिनट .....कितने जालिम होते है .....के उन पांच मिनटों के बाद निगोडी दुनिया में फिर एंट्री होनी ही है .
एक
बारिश की भीगी दोपहरे ....बॉस ऑफिस में नहीं है.... सेक्सी जूली आपसे एक अदद समोसे की फरमाइश करती है ओर आप जूली को भीगी बारिश में अपनी बाइक पे बिठाकर दयाराम हलवाई के यहाँ समोसे खिलाने ले जाते है ....बीच में तीन स्पीड ब्रेकर है जहाँ जूली "आउच "वाला साउंड इफेक्ट देती है ...
दो
आसमान में बादल गरजते है ... जाहिर है एक बिजली भी होगी .....पीछे से बेक ग्रायुंड म्यूजिक ..ओर भगवान् प्रकट होते है "वत्स तुम्हे पांच दिन का अवकाश दिया जाता है वेतन सहित ये लो होनुलुलू के टिकट...
साले मन में रोज कितने लड्डू फूटते है!!!!!!!!
अमूमन हर इंसान के दस बीस दोस्त होते है ओर एक दो दुश्मन. दुश्मनी हमने किसी से कभी रखी नही अलबत्ता दोस्त हमारे दस –बीस से कही ज़्यादा है. .जिन्होंने हमें फ्लेश्बेक में कई सीन दे रखे है....
जैसे हमारे दूसरे रूम पार्ट्नर जिन्हें एक मोटे से तकिये से लिपट कर सोने की आदत थी …अचानक .....रोज रात 2 बजे उठने लगे …एक जुमले के साथ … भूख लगी है .तो किबला हम दोनों . रेलवे स्टेशन की लारी पे जाकर अंडे पाँव खाते …तकरीबन साढे तीन बजे वापस लौटते ...शुक्र है के चालीस दिनों के बाद वो रहस्मयी भूख अंडे –पाँव के नियमित चढावे से ही शांत हो गयी . अन्यथा आधी रात के इस नियमित विचरण से किस्म -किस्म की अफवाहे फैलने का भय था ,,
मसलन ... हमारे एक ओर अज़ीज़ दोस्त है… .ये अमिताभ बच्चन साहब के बहुत बड़े मुरीद है,इतने बड़े की जिस पिक्चर मे अमिताभ बच्चन साहब मरते है उसका अंत ये नही देखते है…तो ये महाशय हमे दिन भर अग्निपथ के डाइलोग सुनाते उसी अंदाज में हाथ को हिला कर “हें हे अपुन दीनानाथ चोहान .गाँव मांडवा ….? अपने घर ले-जाकर इन्होने इतनी बार अग्निपथ दिखाई है की पूछिए मत… फिर हमसे पूछते "अब क्या कहते हो”? “मिथुन की ऐक्टिंग लाज़वाब है मै उनसे कहता …….आज़ वो अमेरिका मे है, हमें पूरा यक़ीन है आधे से ज़्यादा अमेरिकियों को उन्होने अपने घर बुलाकर अमिताभ की पिक्चर दिखाई होंगी.
एक तीसरे महाशाया थे ,जो हमारी लॉबी मे रहते थे, पूरे 5 साल अंडर-ग्रॅजुयेट के दिनों मे इन्होने कभी साबुन नही ख़रीदा , पूरी लॉबी के साबुनों से नहाते रहे…..पर साबुन का कौन सा ब्रांड ज़्यादा बेहतर है इनसे बेहतर कभी कोई नही बता पायेगा ....….
मसलन ......हमारे बिल्कुल बराबर के रूम के एक महाशय, जो दिन में अक्सर हमारे दरवाजे के पीछे चिपकी ग्लेडरेगस की बालाओं को छि: छि: कहते पर हर रात को सोने से पहले हाथ में पानी की बोटेल लिए हुए बिना कोई अब्सेंट लगाए चार साल तक निहारने आते रहे ...कई बार तो दरवाजा खटखटा कर निहार कर जाते ....
मसलन के .....वे. जो ...अंग्रेजी में ऐसे उधार मांगते की आप सेंटिया जाते ...अक्सर रात में हमारी बाइक के पेट्रोल टेंक के पाइप से नीचे एक बोतल लगाये मिलते ..हमें देख बिना विचलित हुए शांत निर्विवार किसी योगी की भाँती बोलते " आई एम् टेकिंग जस्ट फ्यू ड्राप मेन"..ओर हम "या या श्युर 'कहते हुए बूंदों का बोतलों में जाना देखते .....
यूँ भी होस्टल में जब किसी चीज़ की तारीफ करनी होती तो ..कुछ यूँ होती है क्या सेक्सी शर्ट है ...या .क्या सेक्सी खाना है वहां का ...सभ्य समाज में आने के बाद आपको अपने तौर तरीके यूँ भी बदलने पड़ते है ....…ओर जब आपको लगता है की वो गोल्डन एरा ख़त्म हो गया ... इत्तेफकान भगवान् आपको नए सीन दे दे देता है ....
वे हमारे दोस्त तीस की उम्र के बाद बने ,हम पेशा है हम उम्र भी ..इत्ते बड़े पांच सितारा होटलों में अकेले नींद नहीं आती यूँ भी एक घंटा खामोशी से कागज पेन लेकर लेक्चर सुनने की आदत अब रही नहीं...ओर कांफ्रेंस के दिन भर लेक्चर आपको वैसे ही इतना खौफजदा कर देते है .. इसलिए अक्सर हम उन्ही के संग एक कमरे में ठहरते है ...... ...कमरे में घुसते ही ये साहब चैनल फटाफट बदलते है ओर बी ग्रेड या सी ग्रेड चुन चुन के फिल्म लगाते है ..मजे से देखते है ...जित्नेंदर की सफ़ेद जूतों वाली फिल्मे ......मिथुन की फिल्मे ....रामसे ब्रदर की होरर फिल्मे .... गुलशन कुमार के छोटे किशन कुमार की फिल्मे ....जोगिन्दर उनके फेवरेट विलेन है ...जब वे हीरो को धमकाते है .... ये ठहाके लगा कर हंसते है . मुझे पूरा यकीन है .इन्होने "देशद्रोही "फिल्म की सी .डी माँगा कर देखी होगी ...
बीच बीच में मुड़कर कहते है साला .हिन्दुस्तान का रियल सिनेमा यही है.....
१४ अगस्त की दोपहर के बाद अगले तीन दिन हैदराबाद इन्ही के संग कटेगे .
स्वाइन फ्लू से ज्यादा खतरा इस बात का है के की वे वहां मौज में आकर ये न कहे .सुन बे "शेडो" देखने चले क्या ?
आज की "त्रिवेणी " कल तप रही थी पेशानी उसकी, बुख़ार था शायद सुबह से ही भिगो रहे है मुये बादल उसे...... "नुमोनिया" हो जायेगा इस" दिन" को देखना ,इक रोज ऐसे ही हमारे एक नेटिया दोस्त है कुश .....इत्तिफकान अभी तक हम रूबरू नहीं मिले है ...पर हमारे फोन के बिल में इनका भारी योगदान रहता है ... वे ठंडी सांस भर के अपनी एक छोटी सी ख्वाहिश बताते है .... की एक ओर ब्लॉग बनाना चाहता हूँ जिसका नाम कुछ यू हो.....के …" आप .मरने से पहले ये फिल्मे जरूर देखे "…उनकी ख्वाहिशे ओर भी है पर किन्ही अपरिहार्य कारणों से उन्हें यहाँ सार्वजनिक नहीं कर सकते... वो क्या कहते है ...ब्रीच ऑफ़ कोन्फ़ि डेंस हो जायेगा जी ... खैर उन्होंने अगर ये ब्लॉग बनाया तो एक फिल्म हम भी उसमे जोड़ेगे जी....ओर आपसे भी यही कहेगे .मरने से पहले इसे जरूर देख ले ....." इट्स ए वंडरफुल लाइफ" |