2009-08-07

"मेरी तामीर में ही मुज्बिर है इक सूरत खराबी की "


हमारे घर के ठीक सामने रहने वाले प्रोफेसर साहब कहा करते थे ...आज के ज़माने में पैसा उड़ रहा है .बस उसे पकड़ने की तरकीब आनी चाहिए .....हर आदमी ने अपनी अपनी तरकीब निकाल रखी है ..रोज नयी नयी निकल रही है ...जिंदगी इसी तरकीब में गुजर रही है... आपकी जिंदगी का कुल निचोड़ एक टोटल है ...करके देखिये ... सारी पास बुक , पोलिसिया ऍफ़ डी ,सोना . जमीन के कागजात ...हम सबके पास एक आंकडा है ....किसी का ज्यादा तो किसी का कम ..... सारी भाग - दौड़ ...सारी .कवायद...इतने झूठ ...इसी आंकडे की खातिर ...पीछे क्या क्या छूटा. है .. कभी हिसाब किया है.....अंगुलियों पे गिनने की कोशिश करिये कितने इंसानों की जिंदगी में आपके किसी कदम से..सपोर्ट से ...सकरात्मक बदलाव आया है .....कभी आँख बंद कर दिल पर हाथ रख कर एक सवाल खुद से पूछिए ... आपके मरने के बाद कितने लोग आपको याद करेगे ..आपकी बीवी ...बेटा .ओर शायद एक आध दोस्त......कब तक ?आपकी जिंदगी में एक टोटल ये भी तो है.........
कभी यू ही सोचा है की ये ज्ञानी मुनि बड़े बूढे इतने सालो से आत्मा आत्मा चिल्ला रहे है ..आखिर है क्या बला ?ऐसी कौन सी चीज है जिसके शरीर से निकल जाने पर इस शरीर की कोई वक़्त नहीं रह जाती.......
हम डार्विन-लेमार्क को महान वैजानिक घोषित करते नहीं थकते ...पर अपनी आत्मा का इस्तेमाल कम उम्र से ही करना बंद कर देते है ... आत्मा की एट्रोपी भी तो होती होगी ....कोई तो सिस्टम होगा जो उसे भी डीटोक्सीफाई करता होगा ...
ऐसे सवाल बहुत डराते है .....पर ये भी सच है भरे पेट ही ऐसे सवाल उठते है ....ओर इनकी उम्र भी ज्यादा नहीं होती ....
दो साल पहले पुणे जाते वक़्त मै फ्लाईट में ..छत्तीस साल की उम्र के एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर से मिला था जो लाखो रुपये महीना कमा रहा था ..पर पिछले दो सालो से सो नहीं पा रहा था ..काम की भाग दौड़ में उसे इन्सोमिनिया हो गया था ......
सड़क के बीच एक रेलवे क्रॉसिंग पर फाटक बंद है..आप पहले से खड़ी गाडी के ठीक पीछे लाइन में खड़े हो जाते है .पीछे से एक बड़ी गाडी आपके आगे से गुजर कर टेडी होकर खड़ी हो जाती है..उसके पीछे कई ओर ...फाटक खुलने में कुछ देर की मशक्कत के बाद वे आपसे पहले निकल जाती है ....आप सोचते है क्या फायदा मेरा डिसिप्लिन में रहने का ...जिंदगी भी एक फाटक है .. फर्क सिर्फ इतना है ...वक़्त के साथ आपकी गाड़ी की पोजीशन भी बदलती जाती है ..... ..वो कौन से कारण है की पहली क्लास से सच बोलना चाहिए पढ़ते पढ़ते आठवी क्लास तक पहुँचते पहुँचते हम जान जाते है की ये सेंटेंस सिर्फ पढने के लिए है....वक़्त को अगर फ्रेम में बंद करके लगाया जा सकता तो हर फ्रेम अलग अलग तस्वीर बयान करता ..
तो क्या सचमुच पैसा इतना बुरा है ...पर जिंदगी में बड़ा घालमेल है ....
२००६ का सर्दियों का कोई महीना -
लोयंस क्लब की ओर से एक हेल्थ केम्प है .मेरा एक दोस्त एक्टिव मेंबर है इसलिए विशेषगो की जमात में बतोर विशेषग मै भी वहां मौजूद हूँ....पास के गाँव के बच्चे है स्कूली ड्रेस में .नंगे पाँव ...डी एम् मुख्या अतिथि है .उनकी पत्नी भी साथ है .केम्प के बाद उन्हें कुछ कपडे दिए जा रहे है ,मैडम के हाथो ..मैडम मुस्करा कर एक दो बच्चो से सवाल भी पूछ लेती है ...क्या बनोगे बड़े होकर...डॉ ,इंजीनियर ..ऐसे जवाब इस पूरी प्रक्रिया के फोर्मेट को फिनिशिंग टच दे रहे है ...मै भी अपने मोबाइल से खेल रहा हूँ... "मै पैसे वाला बनूगा "उस लाइन के आखरी बच्चे का जवाब है .. ..निगाह उठाकर देखता हूँ... पतला दुबला सात साल का लगभग कुपोषित सा बच्चा है... समय ने .मैडम को भी पोलिश्ड कर दिया है .. वे उसके बालो को सहला कर आगे बढ़ गयी है ...पूरी भीड़ में शायद उसने ही सच बोला है......

साल २००५ महीना याद नहीं -
तीन दिन से एक एडमिट केस देख रहा हूँ ...एडमिट फिजिशियन दोस्त के अंडर है ..पेम्फिगस है ...तीस साल की जवान औरत ...एक इन्वेस्टिगेशन है .जो बाहर होना है ...शाम तक नहीं हुआ है ...अस्पताल वाले कहते है ..पति मना कर रहा है ...वो सामने पड़ता है...क्यों ?मै पूछता हूँ.....अभी ऍफ़ .डी तुड़वाई है साहब .पोस्ट ऑफिस वाले कहते है कल मिलेगे ...उसका छोटा बच्चा अपने बाप की अंगुली थामे मुझे देख रहा है....मेरी सारी अकड़ ढीली हो गयी है ....

जावेद अख्तर साहब ने एक बार कही लिखा था ...मुश्किल हालात में जीना भी एक आर्ट है ...वक़्त ने अच्छे समय के लिए भी ये डेफिनेशन मुक़र्रर कर दी है .. ...एंड लाइफ इज नौट फॉर बेड एक्टर्स यू नो !
खवाहिशे लाइन लगा कर खड़ी है ..इस जीवन को मै भरपूर जीना चाहता हूँ....ओर दुःख से मुझे घबराहट होती है ..तो क्या पैसा ही सुख है ....सुरक्षा है..... जमीर भी अपनी स्पेस चाहता है ..मै फिर कंफ्युस हूँ....पर आज की दुनिया में ...जब वारेन बुफेट नाम का आदमी अपनी कुल संपत्ति का ८३ प्रतिशत हिस्सा दान कर देता है तो हैरानी होती है ..ओर ये हैरानी ओर भी बढ़ जाती है जब हमें उस हिस्से की .कीमत मालूम पड़ती है ......... जानते है वो हिस्सा कितना है ...३७ अरब डालर ..यानी १६६६ ० अरब रुपये .....
आप ओर मै तीन जन्मो में भी इतना पैसा नहीं कमा सकते ...कम से कम मै तो नहीं ...क्या कारण रहे होगे उस इन्सान को इस निर्णय तक पहुचने के.......पर क्या हम उम्र के किसी मोड़ पर पहुंचकर कोई भी छोटा दान कर सकते है ?
यूँ भी इस दौर में भावनाये डिसपोजेबिल है.... ओर हर सुबह एक डस्ट बिन की माफिक ....






"मेरी तामीर में ही मुज्बिर है इक सूरत खराबी की "
मजाज़ की इस लाइन का मतलब है ....मेरे बनने में ही बिगड़ने की एक सूरत छिपी हुई है

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