2010-07-30

सुन जिंदगी!! किसी-किसी रोज तेरी बहुत तलब लगती है


आवारा !!

होठ  खुश्क रहते है..... तपा तपा सा चेहरा
जैसे कोई नशा किया हो
सुबह जल्द आकर .उन

 रिक्शा वालो ...खोमचे वालो ...की संगत में

.देर तक बैठा रहता   है

 इन गर्मियों में फिर 
दिन को
  उगने का सलीका नहीं  आया ...


 मेसेज की आमद.!!!.....

अच्छा हुआ

जो तुमने तोड़ दिया

उस इकरारनामे को

जिसके मुताबिक ना हमें मिलना था

ना बात करनी थी

पिछले आधे घंटे से

 दरअसल .......
मै तुमको ही सोच रहा था

पिछले आधे घंटे से
........
मेरे शहर में भी बारिश है

टचवुड !!!!





जुदाई ....

दिल किसी मुंशी सा......
 कब से

रोज दिन को ...पलट कर

उन पे मार्क लगा रहा है

पिछले शुक्रवार की  रात किसी ने एब्सेंट लगायी थी .....




  कारोबारी दुनिया में प्रेसेंट  .. रोज दर्ज करनी होती है ....जरूरी ....गैर-जरूरी  कितने मसले है .......कुछ  उलझाते है ...कुछ को फलांगता हूं  ..घडी   अपनी दोनों बांहे   आहिस्ता  आहिस्ता   फैलाती    है .......  .मोबाइल की . कोंटेक्ट लिस्ट में नाम को स्क्रोल करते  करते किसी  नाम पे रुक गया  हूं......

जिंदगी माने !

 .
अक्सर बांट कर या टुकडो में ही पी है
 
एक्स- रे दिल को धब्बो को कहां
  दिखाता है 
 किसी-किसी  रोज तेरी बहुत तलब लगती है जिंदगी!!







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