मौसम ठंडा है ...अपने होने की इत्तिला दे रहा है .. कमरे गालिबन ठन्डे है
...लाइब्रेरी में पास की कुर्सी पर बैठे किसी इंटेलेकचुवल कम्पेनियन की
तरह खामोश .......घडी की टिक टिक इन दिनों रात को यूँ सुनाई देती है
की लगता है गर्मियों में अपनी आवाज काबू में रख के चलती है ..आलस की
जंजीरे बिस्तर के साथ अटेच है मुई ....एक बार उसके आगोश से निकल जाओ तो
रजाई मुआफ नहीं करती ..तुम्हारी तरह का मिजाज़ पाया है ! हर बार
मिजाजपुर्सी मांगती है ....पर रजाई से निकलना पड़ेगा ..बाहर निकल कर तैयार
होता हूँ ..... हवा गैर-हमदर्द तरीके से आती है .... जैकेट की जेब
में अब भी वही सिगरेट है जो तुम्हारी रकीब हुआ करती थी . सर्दियों में सड़के जल्दी सो जाती है ...बाज खम्बे खड़े कितने वीरान तन्हा दिखाई पड़ते है
... इन्हें देर रात कभी दहशत नहीं होती .....पर पीले रंग की
रौशनी इस कदर अच्छी लगती है ...की कमरे में भी सर्दियों में लैम्प
मुसलसल जला कर छोड़ता हूँ .....
रेलवे स्टेशन के बाहर उतरता हूँ ...तो अहसास होता है आज मौसम बड़ा पुरकैफ है ! सिगरेट के पैकेट को जैकेट की जेब में हाथ डाल कर छूता हूँ .. फिर कुछ मोहलत के लिए मुल्तवी कर देता हूँ.....प्लेटफोर्म अपने आप से बड़ा मुत्तासिर सा है ...ठण्ड की पाबंदी से बेअसर ...वहां मौजूद हर शख्स के मौसम के मुताल्लिक ख्यालात एक से है.... ट्रेन लेट है .....ट्रेनों के ड्राइवर जाने इन ठंडी हमशक्ल पटरियों पे गुजरते क्या सोचते होगे .... कई मिनट अखबार में खर्च करता हूँ....
सीधे हाथ पे बेंच पर वो लड़की इतनी गैर -तवज्जो देती है के शक होता है जैसे ज़ेहन पढने के हुनर से वाकिफ है ....उसकी बड़ी बड़ी आँखे बड़ी गैर तकल्लुफ है ....तुम्हारी बात याद आती है "उस उम्र की आँखे अक्सर सब टटोलना चाहती है" .....उसके दाई ओर बैठी दूसरी दो औरत कुछ रुखी सी है ....खुश्क ..कुछ औरते बड़ी रुखी सी दिखाई पड़ती है ...अपने आप से बेपरवाह ....... शायद उसे दास्ताने कहने का बड़ा शौक है चुप होती है तो मालूम होता है अपने खिलाफ जाकर वो चुप होती है.!दाई ओर एक कोने में खड़े एक साहब है .......इंतज़ार में इंतज़ार लम्बे हो जाते है ..अखबार उतना दिलचस्प मालूम नहीं होता ......
तुम फिर" बेवक्त " ओर "बेवजह "ज़ेहन में दाखिल होती हो ....कोलेज के कई शख्स (उन्हें दोस्त नहीं कहूँगा ) याद आते है जो मुझे देखकर तुम्हे याद करते थे मुमकिन है उनकी दिलचस्पी मुझमे तुम्हारी वजह से रही हो !
जानती हो कई बार मै तुम्हारे लिए " आसान" हुआ हूँ ... ये जानते हुए के तुम्हारी फितरत में पढना नहीं है खास तौर से वे चीज़े जो तुम्हे मुश्किल लगती है ..मेरी तुम्हारी दिलचस्पी भी मुख्तलिफ चीजों में है....फिर वो क्या चीज़ है जो तुम्हे मुझसे जोड़े रखती है .....
प्यार हिस्सों से नहीं किया जाता !
मतलब ??
" कई टुकड़े .जोड़ करके आदमी की सूरत बनती है ...उसमे वे टुकड़े भी है ..जिनमे मै मौजूद नहीं रहती.".. पढना लिखना तुम्हारा सिर्फ एक हिस्सा है .......ओर मै तुमसे प्यार करती हूँ !! ........मै तुमसे तब भी प्यार करती हूँ जब तुम कुछ लिख -पढ़ नहीं रहे होते .......समझे !!
(तुम उससे कही ज्यादा समझदार हो जितना मै तुम्हे सोचता हूँ)
सोचता हूँ कितने ज़ज्बात किस पैमाने पे किस दिल में डाले जाये ये कौन तय करता होगा ...खुदा या उसका कोई कारिन्दा ? ओर ख्वाहिशो पर इख्तियार आदमी की जात पे छोड़ा है ( मुआवाजे के तौर पर ) ? पर न मालूम कैसी हसीन कमजोरी है जो अपनी जेहनी पुख्तगी के बावजूद हर शख्स इस पे निसार है ..अपने डरो की वजह से ही आदमी अपने ख्यालात में ओर इरादों में जुदा होता है ओर अमल में जुदा ! जेब में हाथ डालकर लाइटर टटोलता हूँ अब सिगरेट जलानी पड़ेगी ठण्ड बढ़ गयी है . शुक्र है ऐसे वाहियात ख्यालो का रकीब निकोटिन है !!
रेलवे स्टेशन के बाहर उतरता हूँ ...तो अहसास होता है आज मौसम बड़ा पुरकैफ है ! सिगरेट के पैकेट को जैकेट की जेब में हाथ डाल कर छूता हूँ .. फिर कुछ मोहलत के लिए मुल्तवी कर देता हूँ.....प्लेटफोर्म अपने आप से बड़ा मुत्तासिर सा है ...ठण्ड की पाबंदी से बेअसर ...वहां मौजूद हर शख्स के मौसम के मुताल्लिक ख्यालात एक से है.... ट्रेन लेट है .....ट्रेनों के ड्राइवर जाने इन ठंडी हमशक्ल पटरियों पे गुजरते क्या सोचते होगे .... कई मिनट अखबार में खर्च करता हूँ....
सीधे हाथ पे बेंच पर वो लड़की इतनी गैर -तवज्जो देती है के शक होता है जैसे ज़ेहन पढने के हुनर से वाकिफ है ....उसकी बड़ी बड़ी आँखे बड़ी गैर तकल्लुफ है ....तुम्हारी बात याद आती है "उस उम्र की आँखे अक्सर सब टटोलना चाहती है" .....उसके दाई ओर बैठी दूसरी दो औरत कुछ रुखी सी है ....खुश्क ..कुछ औरते बड़ी रुखी सी दिखाई पड़ती है ...अपने आप से बेपरवाह ....... शायद उसे दास्ताने कहने का बड़ा शौक है चुप होती है तो मालूम होता है अपने खिलाफ जाकर वो चुप होती है.!दाई ओर एक कोने में खड़े एक साहब है .......इंतज़ार में इंतज़ार लम्बे हो जाते है ..अखबार उतना दिलचस्प मालूम नहीं होता ......
तुम फिर" बेवक्त " ओर "बेवजह "ज़ेहन में दाखिल होती हो ....कोलेज के कई शख्स (उन्हें दोस्त नहीं कहूँगा ) याद आते है जो मुझे देखकर तुम्हे याद करते थे मुमकिन है उनकी दिलचस्पी मुझमे तुम्हारी वजह से रही हो !
जानती हो कई बार मै तुम्हारे लिए " आसान" हुआ हूँ ... ये जानते हुए के तुम्हारी फितरत में पढना नहीं है खास तौर से वे चीज़े जो तुम्हे मुश्किल लगती है ..मेरी तुम्हारी दिलचस्पी भी मुख्तलिफ चीजों में है....फिर वो क्या चीज़ है जो तुम्हे मुझसे जोड़े रखती है .....
प्यार हिस्सों से नहीं किया जाता !
मतलब ??
" कई टुकड़े .जोड़ करके आदमी की सूरत बनती है ...उसमे वे टुकड़े भी है ..जिनमे मै मौजूद नहीं रहती.".. पढना लिखना तुम्हारा सिर्फ एक हिस्सा है .......ओर मै तुमसे प्यार करती हूँ !! ........मै तुमसे तब भी प्यार करती हूँ जब तुम कुछ लिख -पढ़ नहीं रहे होते .......समझे !!
(तुम उससे कही ज्यादा समझदार हो जितना मै तुम्हे सोचता हूँ)
सोचता हूँ कितने ज़ज्बात किस पैमाने पे किस दिल में डाले जाये ये कौन तय करता होगा ...खुदा या उसका कोई कारिन्दा ? ओर ख्वाहिशो पर इख्तियार आदमी की जात पे छोड़ा है ( मुआवाजे के तौर पर ) ? पर न मालूम कैसी हसीन कमजोरी है जो अपनी जेहनी पुख्तगी के बावजूद हर शख्स इस पे निसार है ..अपने डरो की वजह से ही आदमी अपने ख्यालात में ओर इरादों में जुदा होता है ओर अमल में जुदा ! जेब में हाथ डालकर लाइटर टटोलता हूँ अब सिगरेट जलानी पड़ेगी ठण्ड बढ़ गयी है . शुक्र है ऐसे वाहियात ख्यालो का रकीब निकोटिन है !!