2012-06-04

जिंदगी माने .....

पहला टुकड़ा जिंदगी .
(योरोप के किसी देश का एयर पोर्ट सुबह 5  बजकर 6 मिनट - इंडियन टाइम सुबह  9 बजकर 40 मिनट .
बुधवार २ जून )
जानते हो , उस पूरी ट्रिप  में  मेरा मन बार बार  कहता  के  तुम्हे कहूँ स्टूपिड  वो लड़की तुम्हारे लिए ठीक नहीं है . उस रात जब तुम  उसका हाथ पकड़ बस में  कर बैठे थे .तो अजीब सी बैचनी थी .गुस्सा .
"ओर मै"    ?   उसी ट्रिप में  उस  रात बस से लौटते वक़्त  जब तुम  अपना सर उसके  काँधे पर रख  का सो गयी थी   मन किया  था उठकर तुम दोनों को दूर कर दूँ
उस रोज बहुत थक गयी थी .. पर वो तुम्हारा बेस्ट  फ्रेंड था ??
हाँ पर मेरे बेस्ट फ्रेंड  तुम्हारे लिए नहीं बने  थे
इतने साल तुम उस  लड़की के प्यार में पागल थे
 "दैट  वास होरिबल "  आई एडमिट ! पर "बाहर" आ गया था
ओर वो दूसरी  !! तुम पक्के "फ्लर्ट" थे
वो प्यार नहीं था .वो भी किसी  रिलेशंस से बाहर निकली थी,  मै  भी. वो बस एक दूसरे का साथ था जिसमे कोई कमिटमेंट नहीं था फिर वो खूबसूरत बहुत थी.
"खूबसूरत " !ये कैसा एक्सक्यूज़ हुआ ?
कम ओन ख़ूबसूरती अपनी ओर खींचती है ,
ओर फिर भी तुम्हे पसंद करती रही ,साले फ्लर्ट !
 बाई गोड . कुछ बंदियों के साथ वक़्त गुजारते हो तो आपको इस "आई क्यू" की वेल्यू  मालूम पड़ती है  .टेस्टोंस्टीरोंन " लो"  होते ही न अजीब सी फील आती है उन बंदियों से !
रहने दो ,तुम साले मर्द जिस्म से ऊपर उठते नहीं हो ....ख़ूबसूरती !!,
 नहीं  सच्ची , इसे गर  आई क्यू  न कहकर वो कहे    वो होता है न "वेवलेंथ" जैसा कुछ , वो वाकई होता है
 जमीन पर आ जाओ जनाब ! आपका आई क्यू कुछ खास नहीं है !
तुम्हे झूठ लगेगा पर ये सच है  जिस्म   आपको थाम नहीं पाता  , "अटरेक्ट" नहीं कर पाता . रोक नहीं पाता ,आप उबने लगते हो .  !
 टेस्टोंस्टीरोंन तो  फिर "हाई " हो जायेगे तब क्या ?
 प्यार में इसके लेवल से आपके इमोशंस चेंज नहीं होते .प्यार में उबने लगो  तो समझ लो  इस प्यार को वापस टटोलने की जरुरत  है.
 लायर !
 एक "फ्लर्ट " भी कभी किसी को चाह सकता है ,किसी एक को पूरे दिल से .
" इतने बड़े एक्सपर्ट थे तो समझे क्यों नहीं ?"
" दूसरी दुनिया में था तब   फिर   तुमने कब कहा  था तुम मुझे उस नजर से देखती हो"
"लडकिया कभी नहीं कहती"
"जता तो देती है "
"कन्फ्यूज़  थी ओर न इतनी हिम्मत थी तब  " .!
"ओर मै कहाँ कहाँ भटकता रहा "
"हमारे  पास वो नहीं थी न ......ख़ूबसूरती !"
वो उसे देखता है एकटक   "तुम दुनिया में सबसे अलग  थी मेरे लिए ,बहुत अच्छी . तुम नहीं समझोगी "
वो कुछ कहना चाहती है फिर जाने क्यों रुक गयी है   !
"फिर आज क्यों कहा ?"वो पूछता है
ओह अब मै बोल्ड हूँ ,ओर तुम साले बूढ़े हो गए हो
वो मुस्कुराता है !
 जानते  हो इसलिए अपनी बेटियों को  खुला छोड़ा ... के जाओ अपने हिस्से का  जीवन  जियो .
वो सिगरेट निकालता है ".हम  स्मोकिंग ज़ोन में बैठे है शायद "
"रियूमेटोइड" ओर" शुगर" तो है  पर मरोगे तुम" लंग कैंसर" से
 दो तिहाई तो बीत गयी बाकि मालूम है साला स्वर्ग तो मिलेगा नहीं पर नरक में खूब यार दोस्त मिलेगे .
वैसे कोई खिड़की तो होगी कनेक्टिविटी के लिए स्वर्ग से ? क्या कहती हो ?
  छह घंटे बाद कनेक्टिंग फ्लाईट थी एक  हौल्ट उसके देश में था  .वक़्त देश भी बदल देता है .
" सोचती हूँ जादूगरनी का   वो आइना जिसमे " फ्यूचर" दिखता है    गर हमें  देखने को मिल जाता तो हम सपने बुनना छोड़ देते .मुझे पेडियाट्रिशियाँन बनकर अपने गाँव लौटना था  ओर देखो यूरोप के एक कोने में मै गोरो को ट्रीट कर रही हूँ . विकास को अमेरिका जाना था वो वही है  नीलेश को ओर्थोपेडिक करनी थी वो मेडिसिन का लेक्चरार है .ऊपर वाले को सब पता होता है .बस नीचे जब हम हाथ उठाकर अपने सपनो की घोषणा  करते होगे वो मुस्कराता होगा  ."
"सपने भी हमारी पर्सनेल्टी  का ही एक  जरूरी  हिस्सा है जैसे मुश्किलें कुछ मुश्किलें  बहुत मूल्यवान होती है वे  .आपको नये axis.पे रखती है .आपको कुछ समय वहां ठहर कर आगे बढ़ जाना है .,इम्पोर्टेंट  ये है के आप वहां क्या" रिसीव  " करते है .इन "रिसीवो  का जोड़" ही "आपको" बनाता है . "
उसकी  फ्लाईट  का  एनायुंसमेंट हो रहा है 
वो वो अपनी स्टिक संभालता   है .वो उसके  हाथो  को थामती है   "अच्छा लगा, तुम कुछ देर के लिए ही मिले  वापसी में यहाँ से होते हुए जाना  तब तक नीलाभ भी अपनी कोंफ्रेंस से वापस लौटकर आ जायेगा .तुमसे मिलकर खुश होगा .यहाँ की सर्दिया बहुत खूबसूरत होती है
 घुटनों ने सर्दियों के खिलाफ  बगावत कर दी है . वो हँसता है ,उसे गले लगाता है " टेक केयर "
"पता नही फिर  शायद मिलेगे या नहीं" उसकी आवाज थोडा भरी  हुई है
नरक की खिड़की से स्वर्ग बनाने वाले  से एक बार पूछुंगा जरूर  "बेस्ट फ्रेंड कभी प्यार नहीं कर सकते " ऐसा रुल किसने बनाया  ??
अपना ट्रोली बैग लेकर चलता है फिर पीछे मुड़कर देखता है  वो मुस्कराती हुई खड़ी  है  .!
.
दूसरा टुकड़ा जिंदगी    सहारनपुर रेलवे स्टेशन उत्तर प्रदेश -सुबह 9 बजकर ४० मिनट ,बुधवार २ जून
 जाने क्यों इमोशनल हो रहा है वो. गाँव से आते वक़्त .सहारनपुर  नजदीक का पहला रेलवे  स्टेशन है  .वहां से दिल्ली फिर फ्लाईट  , पांच साल में  कुल  दो दफा वो अपने गाँव आया है  .,माँ अलबत्ता विनी को देखने की हर साल इच्छा करती है .वही टालता रहा है .इस बार जिद करके आया है .माँ की तबियत ख़राब है इन दिनों ,देर रात कोई फोन बजता है तो मन के किसी कोने से  डर दिल में  आकर जोर जोर से बजता है
 अखबार  का  पन्ना  मोड़कर वापस पटरी की ओर देखता है ट्रेन के आने का कोई नामोनिशान नहीं है . उसकी बीवी सन ग्लासेस  लगा कर  गर्मी से बैचैन है    इस हिस्से के सूरज  की आदत उसे नहीं है, न यहाँ के लोगो की .थोड़ी चिडचिडी हो रही है  अचानक उस बेंच पे उस एक चेहरा दिखाई देता है क्या ये वही है .वो आहिस्ता आहिस्ता उसकी ओर बढ़ता है
"भाई साहब" वो पुकारता है
एक सामान्य सा चेहरा ,जिसमे चश्मे के पीछे धंसी हुई आँखे , सर पे  सफ़ेद बाल ओर पतला सा शरीर है ,उसे पहचानने की कोशिश कर रहा है
वो  उससे एक दम लिपट गया है
"आप कैसे है "
वो   चेहरा  असहज है  .इतने सालो से  इतने विनम्र व्योवहार की आदत नहीं है .
नहीं पहचाना भाई साहब ,   प्रिंसीपल चौधरी का छोटा बेटा ...
"ओह" उसे याद आया है .
बैंगलोर में हूँ   भाई साहब .सब आपकी बदोलत है
कई साल पहले  गाँव के .स्कूल का   क्लर्क एक पतले  दुबले लड़के को  बोर्ड के एक्जाम से ठीक पहले उसके पिता के पास  खींच कर लाये थे  .जो उम्र में शायद उससे एक दो साल ही बड़ा होगा ."चौधरी साहब  ये करेगा हल सब "
तब उसकी  आँखों में चश्मा नहीं था . वो नमस्कार कर चला गया था तब क्लर्क ने चौधरी साहब को बताया था
जिले  में टॉप आया था ये ,बहुत होशियार है ,दसवी से ट्यूशन पढ़ा रहा है गरीब है ,बाप छोड़ कर चला गया ,माँ घरो में बर्तन मांजती है . स्कूल के एक कमरे में उसे बिठा कर सब पर्चे हल करवा कर उसे ओर क्लर्क के भांजे तक एक्जाम हौल तक पहुंचाए   गए  थे
 "आप कहाँ है भाई साहब " चौधरी का बेटा उस चेहरे से  पूछ रहा है
 . वो  बतलाता है किसी  सरकारी दफ्तर   में क्लर्क है वो   अपनी माँ की तेरहवी से लौट रहा है .अगली खेप में अपने घर वालो को अपने साथ ले जायेगा . दोनों कुछ मिनट  बात करते है  उसकी बीवी उसे आवाज देकर बुला रही है   एक ट्रेन प्लेटफोर्म पर आकर खड़ी हुई है  शायद उसकी  है
"कोई जरुरत हो तो मुझे कहियेगा ",वो अपना कार्ड निकलकर उसके हाथ में देता है .उसकी बीवी अभी तक चुप  नहीं हुई है ,लगातार हाथ हिला रही है
 . वो चाहता है उसके पास कुछ देर रुके पर   उससे नमस्कार कर विदा लेता है  .
तुम भी जाने किस किस से लिपट जाते हो ? व्हू दा हेल इज  देट फेलो  ? आई नो यू आर इन योर होम टाउन ,  आई  नो योर इमोशंस .बट यू हेव  अदर रिस्पोंस बिलिटी टू मैन  .  तुम्हारी ट्रेन प्लेटफोर्म पर आ गयी है पांच मिनट का स्टोपेज है
 .वो कुछ नहीं कहता .वो  बैग उठा कर गाडी में चढ़ जाता है
क्या कहे वो अपनी बीवी से ? एक अजीब सी गिल्ट उसके भीतर जम गयी है ,एक अजीब सा छोटेपन का अहसास .
उस लड़के ने पैसे लेने से मना कर दिया चौधरी साहब क्लर्क ने उसके पिता से कहा था . " .कुछ ओर ही  मिटटी का बना है ये लड़का "!
वो जानता है  वो उसकी मदद के लिए कभी भी फोन नहीं करेगा  . 
उसकी कहानी सुनकर वो सन्न है !उसके पिता बचपन में छोड़कर गायब हो गए  मां ने  बर्तन मांज कर  पांच बच्चो को पढाया . दसवी से  वो ट्यूशन पढ़ाकर खुद पढता आया है . एक साल पहले  उसका बाप  लौटा  फिर तीन  महीने बाद  अपने आप  को गोली मार कर  उसी घर में आत्महत्या  कर ली  कुछ  दिन पहले   पहले उसकी मां कैंसर से मरी  है    छोटा भाई आवारा निकला  है . तीन बहने है ,शुक्र है  एक की शादी  हो गयी  है .शाम छह बजे वो ऑफिस से निकलता है  7 बजे से अपने घर में ट्यूशन करता  है ९  बजे . दो साल पहले कामकाजी लड़की से   शादी की है .  पर  बच्चा  बहनों  की शादी के बाद करना चाहता    है .
"थैंक गोड मै विनी को ममा के पास छोड़कर आई  यहाँ तो वो पागल हो जाती नन्ही बच्ची " उसकी बीवी ए .सी कोच में बैठकर रिलेक्स है
वो  खिड़की से वो उस बैंच को देखता है वो अब भी वही बैठा है शांत !

तीसरा टुकड़ा जिंदगी    -गुडगाँव  सुबह 9 बजकर ४० मिनट.बुधवार २ जून
स्कूल  के बाहर उसने गाडी रोकी है . उसकी पत्नी  एक्जाम पैड  हाथ में थामे " उसके छोटे"  के साथ गेट तक गयी है . पोएम के बारे में कुछ इंस्ट्रक्शन देते हुए वो नीचे झुककर उसे "बेस्ट ऑफ़ लक" कह  रही है . वो  बरसो  पीछे  छलांग  लगाता है है  .पांचवी क्लास तक पढ़ी अपनी गाँव वाली माँ से  वो पूछ रहा  है "ये मैथ्स का सम कैसे होगा "?
 आटा गूँथती   उसकी माँ हाथ पोछकर  उसकी  कोपी में  देर तक  उलझी हुई है .वो उठकर  भागा है
तुम्हे कुछ नहीं आता माँ
उसकी माँ उसे पुकार रही है .
उसकी बीवी चलकर आ रही है ,वो अपनी धुंधलाई आंखो को ठीक करता है .

चौथा टुकड़ा जिंदगी का नहीं है ,किसी डायरी का है
"दरअसल
हम सब इक ढोंग है
 बरसो से न कोई बुद्ध है न कबीर
राम निर्वासित है
तबसे ही
कोई लक्ष्मण उन्हें लेने नहीं जाता
रावण हो गये है अमर
पृथ्वी हांफती है काटते पूरा एक चक्कर
ईश्वर ने दे दिया है त्यागपत्र
कलयुग को मिल गयी है अगले चार सौ सालो की लीज़ ! "

(सुबह 9 बजकर ४० मिनट
जगह जरूरी नहीं है )

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