2020-01-18

तुम्हारा दिसंबर खुदा !

मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम दोनों की अपनी ज़िंदगिया थी , रोजमर्रा की ज़िंदगिया।
एक दूसरे से अलहदा ,बाहर की ज़िंदगिया !
वो दिसंबर का कोई सर्द दिन था। इत्तेफ़ाक़ से हम दोनों के पास एक दूसरें के लिए वक़्त था ! ढेर सारा वक़्त !
माल रोड की उस सड़क पर हम दोनों साथ थे, सूरज गैर हाज़िर था । घुमते घुमते हम दोनों सड़क किनारे किसी बैच पर बैठे थे।
मैंने सिगरेट सुलगाई थी और पिछले दिन के मुताल्लिक कोई बात करने लगा। सर्द हवाओ की खातिर तुमने अपना सर ढक लिया था ,सड़क पर सामने दो बच्चे खेल रहे थे। उनकी आवाजे जैसे उस सर्द दिन से लड़ती मालूम हो रही थी मैंने अपनी बात ख़त्म की ,मेरी सिगरेट भी ख़त्म हो गयी थी। कुछ देर ख़ामोशी का वक़्फा हमारे दरमियान गुजरा।
मैंने दूसरी सिगरेट सुलगाई। कुछ कश लिए।
अचानक तुम मेरी और मुड़ी थी ,फिर पूछा " तुम कुछ कह रहे थे "
मैंने तुम्हारी उन आँखों को देखा " या खुदा तुम मोहब्बत में हो "
तुम्हारे होठ एक मर्तबा कांपे थे तुमने हंस के मेरे कंधे पर हाथ मारा था !
तुमने उसके बाद कुछ कहा था शायद पर मुझे सुनाई नहीं दिया था !
तुम किसी और की मोहब्बत में थी !
वो दिसंबर बहुत सर्द था !
तुम्हारा दिसंबर खुदा !




LinkWithin

Related Posts with Thumbnails