2008-05-13

मैं जाट ओर वो होस्टल -भाग दो


चूँकि कमरे मे तीन दीवारे थी ओर बाकि जगह अलमारी ने ले रखी थी ,इसलिए हमने अपनी अपनी एक -एक अलमारी बाँट ली ,तीसरी अलमारी हमारे लोकल दोस्तो के लिए रिजर्व थी ,एक रोज जब मैं जोर्ज माइकल का पोस्टर खरीद कर लाया तो जाट बोला “यो कौन है “ 
मैंने कहा "गाना गाता है ",अगले रोज़  रोज़ दूसरा पोस्टर .
जाट खामोशी से देखता रहा …..कुछ हफ्तो बाद एक दिन शाम को जाट ने पलंग पे एक पोस्टर फैलाया ……ताऊ देवीलाल .. ओर उन दोनों के बीच चिपका दिया ……रात को मैंने उससे पूछा 
“तू ये लाया कहाँ से ? 
हरियाणा से मँगवाया है .
दिनों मेस मे  अक्सर  दो  ही चीजे  बनती  थी बटाटा यानि आलू ओर पूरी ..
आलू हिन्दुस्तानी परिवार का बुनियादी  ओर कम्पलसरी  हिस्सा है...पर यहाँ इसकी रोज़ रोज़ की प्रजेंस उब देने  लगी ...अक्सर हम आधा पेट उठते ओर रात को कॉलेज के पीछे लारी पे जाकर अंडे खाते ...जाट पाव ज्यादा खाता ओर अंडे कम.....
उसका पेट अंडे बरदाश्त कर लेता पर मेरा अक्सर बेसबब बगावत इख्तियार करता  .
बारिशो के महीने शुरू हुए  तो लोकल दोस्तों ने  कहा ' यहाँ रेन कोट भी जिंदगी का जरूरी हिस्सा है ' हम दोनों हंस दिए ..गुजराती आसमान को हमने अंडरएस्टीमेट किया था   बारिशे गिरी ओर गिरती रही.. अंदर कमरे में गीले कपडे बदस्तूर जमा होते रहे ..अंतत  पांच दिन  गुजरने के बाद "गुजराती  आसमान" से  ब्रेक की कोई उम्मीद न देखकर जाट ने एक रोज़ होस्टल लोबी में खड़े होकर आस पास निहारा  ओर एक रैन कोट चूज़ किया ..पहनकर चला दिया  क्लास से बाहर निकल कर वो छतरियो पर एक सरसरी निगाह मारता ओर कोई पसंद की उठा कर चला आता ....रंग बिरंगी छतरिया  लडकियों की होती.. फ़िर हमारी एक दोस्त ने उसे एक छतरी गिफ्ट कर दी...
र शायद गुजराती आसमान हमारी बेअदबी से उस साल ज्यादा ही नाराज था ...बहुत बारिशे गिरी इतनी की मेस बंद हो गयी ओर एक सप्ताह का अवकाश ,बरोदा -अहमदाबाद ओर  नजदीक वाले  अपने अपने घर चले गए ....महीने के आखिरी दिन थे .बैंक मे पैसे नही थे ओर मेस बंद ....जेब मे कुल जमा  पूँजी के नाम पर    एक पचास का नोट  पूरे दो दिन काटने थे ....लंच ओर डिनर के साथ ...एक लोकल दोस्त ने लंच पे बुलाया ,मैं ओर जाट खुश हुए ....एक टाइम के खाने का बंदोबस्त हुआ ...सोमवार को बैंक खुल जाना था .
तब मेरे पास एक फटफटिया हुआ करती थी जिस पर  यू .पी  का नंबर था ओर  जब कभी पोलिस  थामती  हम बीस रुपये देकर छूट जाते उन दिनों" स्टूडेंट कंशेसन" मिलाकर ट्रेफिक पोलिस का यही रेट था  .(वैसे एक बार जाट को पकड़ लिया  जाट ने खाली जेबे दिखा दी पोलिस वालो ने वही बैठा लिया ...  जाट ने तकरीबन  तीन  बीडी उनसे  मांग कर पी डाली  तो पोलिस वालो ने सरेंडर कर दिया था .) . खैर उस दिन हम खुशी खुशी लंच करके वापस लौट रहे थे की अचानक सामने से एक ठुल्ला दिखा ओर उसने हमे थाम लिया ....मरते क्या न करते जेब मे हाथ डाला तो ५० का नोट था ...मैंने उसके हाथ मे दिया ....उसने जेब में डाला ओर मुड लिया .जाट ने उसे आवाज़ दी   "पईसी वापस ना करने? थारा तो बीस का रेट चल रिया सै 
पोलिस  वाले ने मुझे देखा .मैंने तुरंत अनुवाद करके उसे बताया ...सुनते ही उसने डंडा हिलाया हम दोनों दुखी मन से भागे तुम्हारा तो २० का रेट है ....
पोलिस वाले ने हम दोनों को हड़का कर भगादिया.....तब किसी से उधार मांग कर हमने अगले दो दिन काटे .....
अगले साल हमारी इस सबसे बड़ी समस्या का हल हो गया कॉलेज मे 
रेसिडेंट मेस मे हम दोनों को एंट्री मिल गयी जिसको ज्यादातर नॉर्थ इंडियन ने चला रखा था ...लेकिन जाट का i.q गजब का था ओर उसकी याददाश्त गजब की थी ....अक्सर जब हम एक्साम के दिनों मे ऊपर-नीचे हो रहे होते जाट आराम से टी.वी पर क्रिकेट मैच देख रहा होता ,उसने गुजराती पढ़ना फौरन सीख लिया ओर अक्सर गुजराती के अखबार बोल बोल के पढता ....तब हमे एक मोहतरमा से इश्क हुआ  प्लान बना के... लड़के बर्थ डे पार्टी में हमसे गाने की फरमाइश  करगे .ओर हम ओर हम तीन दिनों तक रिहर्सल किया हुआ गाना इसरार के बाद  सुनाकर लड़की को" इम्प्रेस" कर देंगे . धड़कते दिल से उस रोज हम पहुंचे ...पहले बीस मिनट गुजरे ..फिर अगले पांच मिनट .हम बेचैन हुए ..एक दोस्त को इशारा किया ...वे इग्नोर कर गए ...अगले पांच मिनट ओर ...आखिरकार हमने जाट को लात मारी ...जाट ने दोस्ती की खातिर आखिरकार वादा निभाया  ...ओर हमने एक दो रिक्वेस्ट के बाद रिहर्स किया हुआ गाना सुना दिया .वो इश्क तो परवान नहीं चढ़ा अलबत्ता वो गाना हमारी जिंदगी में दोस्तों की महफ़िल में बदस्तूर बिना हिले दस साल तक शामिल रहा ...वो गाना था "दिए जलते है फूल खिलतेहै......
 
. मारे कॉलेज के 
एनुवल फंक्शन   मे ओडीटोरियम का उपरी हिस्सा under -graduates के लिए रहता था ओर  फंक्शन वाली रात वाली रात  हवा मे ही इतना नशा होता था की पीने वाले भी   नशे  मे  रहते थे दरअसल ये सालो से चली आ रही परम्परा थी...उस दिन सिगेरेट की इतनी खपत थी की बाद के सालो मे हम लोगो ने ये भी सोचा की क्यों छत से जलती हुई रस्सी टांग दी जाये क्यूंकि माचिस की बड़ी किल्लत रहती थी क बार किसी ने मांगी ओर फ़िर गुम.......
जाट की केपसिटी बहुत अच्छी थी मैंने आज तक उसे एक या बार ही चढ़े हुए देखा है....कई लोग होस्टल से दो पैग  लगाकर चलते थे ....टीचर्स से डरते भी थे अपने साथ एक ऐसा बन्दा रखते थे जो थोड़ा होश मे हो अगर गेट पर कोई कड़क या सख्त टीचर खड़ा होता तो पहले उसे गुजर जाने देते .....
तो एक रोज .जब आधे घंटे तक  जाट नही दिखे तो हम उन्हें ढूंढने निकले .देखा जाट एक साहेबजादे को बाहर ओडी टोरियम की दीवार से टिका रहे है 
..क्या हुआ .....
अबे फला बाहर गार्डन मे पड़ा है .....तू उसे देख .....मैं तीसरे को बाथरूम से लेकर आता हूँ....
हम गार्डन मे पहुंचे तो देखा वे महाशय तारो को देख रो रहे है .......क्या हुआ ? 
"साला जाट कहाँ है  मुझे गार्डन मे छोड़ गया  दोस्ती यारी भी तो एक चीज़ होती है" ...खैर हम दोनों ने बारी बारी से बीच में बैठाकर दो लोगो को हॉस्टल के कमरे में पहुँचाया .इन सब मे तीस मिनट गुजरे तब याद आया ...ऑडिटोरियम की दीवार के सहारे तीसरा अब भी खड़ा होगा   .तीसरा वाकई वही खड़ा था .

जाट दूसरे दोस्तो की तरह "दिल चाहता है "देखकर फोन नही करता , कभी देर रात पीने के बाद उसका फोन आता पर .... वो ओर मैं साल मे दो बार तो मिलते ही है...... आज जाट इतना कमाता है की मुझसे इन्कम टैक्स बचाने के तरीके पूछता है ...उसके पास सारे लेटेस्ट गदेट्स है उसके पास बड़ी गाड़ी है ....दो खूबसूरत बच्चे है... उसकी गाड़ी मे जगजीत की सी डी बजती है.....साल मे एक बार छुट्टी मनाने विदेश जाता है ओर जब कभी मेरा मन बहुत उदास हो जाता है मैं घंटे की ड्राइव करके हरियाणा पहुँच जाता हूँ...हमारी बीवीया हमसे नाराज रहती हैक्यूंकि हम दोनों जब मिलते है तो घंटो रात भर पीकर जग कर बतियाते है ....आज से साल पहले जब मैंने 
प्रेक्टिस शुरू ही की थी तब अचानक किसी लाइट के  डिफॉल्ट की वजह से मेरी एक लेसर मशीन को जबरदस्त  नुकसान हुआ तब जेब मे इतने पैसे भी नही थे की दूसरी लूँ ,परेशान हालत मे मैंने जाट को फोन लगाया ,वो मुझसे साल पहले प्राइवेट प्रक्टिस मे गया था ...परेशां मत हो इन्सुरेंस वालो को फोन करना ....नही बात बने तो शाम को मुझे बताना ....मैं पैसे लेकर जाउन्गा ...ये पोस्ट लिखते लिखते सोच रहा हूँ उसे फोन कर लूँ..... .. . ... ......." ..... musical nights ?...... " ......



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