2008-06-10

कितना मुश्किल है आसान होना ?

वो जब रोज थककर घर लौट कर आती है तो उसे अपनी थकान से ज्यादा इस बात की फिक्र रहती है की मेरे बेटे ने खाया की नही ?घर मे घुसते ही उसका पहला सवाल होता है ....उसने कुछ खाया है या नही.... ।वो दोपहर का पेट भर खाना सिर्फ़ छुट्टी वाले दिन खाती है ॥सुबह कभी कभी नाश्ता करती है कभी नही.....क्यूंकि जाते जाते भी उसे इस बात की चिंता रहती है कि नाश्ता ठीक बना या नही ? कई बार शायद रास्ते मे उसका भी मन होता है कि कही रुक कर कोल्ड ड्रिंक पी ले....पर ... उससे ज्यादा घर जल्दी पहुँचने की जल्दी....कितने सालो से वे एक सन्डे का इंतज़ार करती है कि उस रोज वो सिर्फ़ उसका संडे होगा.....पर सन्डे वो सुबह से ही जुट जाती है..... ऐसा लगता है सन्डे वो ज्यादा व्यस्त रहती है.....जब कभी छोटू भूखा सो जाता है या उसे कोई चोट लगती है तो वो रुआंसी हो जाती है....उससे लिपट कर रोती है ....."मैं नौकरी छोड़ दूँ?वो सवाल पूछती है ओर ना जाने किस "guilt " को अपने अन्दर सीचती राहती है.....कभी कभी साल मे एक दो दिन वो कहती है "सुनो चाय पिलायोगे ?"...ओर फ़िर थोडी देर मे ही गैस के पास आकर दूध मे पत्ती भी डाल देती है... एक गुलाब का फूल कई रोज तक संभाल कर रखती है ओर पानी से उसे कई रोज तक जिलाए रखती है...फ़िर बाद मे किसी किताब मे छुपा कर रख देती है.....बाज़ार मे किसी रोज अपने लिए खरीदने निकलती है ओर फ़िर किसी दूकान से छोटू के लिए टी शर्ट ले आती है.....तुम्हारा ?अगले सन्डे देख लेंगे.......



एक माँ की पाती

तुम क्या जानो ....
कितना मुश्किल होता है
इक नन्ही सी जान को
बहला -फुसला कर उठाना

छोटे से कंधो का
बस्ते का बोझ उठाना
छुट्टी की घंटी के संग
अपना चेहरा दिखाना
इक -इक निवाले मे
हाथी -घोड़े बिठाना
रोज़ कई शब्दो को
चुन कर इक कहानी बनाना
भरी दुपहरी झूठ-मूट
आँख मीच कर सो जाना
दिन भर की तल्खियो को
उसकी हँसी से मिटाना

तुम क्या जानो.....
कभी-कभी
अच्छा लगता है
बिखरा घर
तुम क्या जानो
कैसा लगता है
आँसू गाल पर रख कर सो जाना
तुमने देखा है कभी ,
सोया हुआ बचपन ?
हर रात
खिड़की से रात को उतारकर
टीका लगाती हूँ

तुम लिखो
चाँद तारो की बाते ,
मुश्किल लोगो की ,
उलझी उलझी सी बाते
मेरी दुनिया तो......
छोटी सी दुनिया है
जिसके सारे रिश्ते
इन्ही नन्हे हाथो से होकर गुज़रते है।

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails