2008-06-24

इन आवारा नज्मो की उम्र बहुत लम्बी होती है



कुछ नज्मो से आपको मुहब्बत होती है ओर कुछ नज्मो को आपसे ..ऐसा रिश्ता बेख्याली के दिनों मे शायद ओर मजबूत होता है ..पिछले दिनों कुछ मसरूफियत भी रही ओर बेख्याली भी......एक नज़्म ने आज सुबह दरवाजा खटखटाया .....











हर शब

सफ़र करती है
कई रगो का,
कई मोडो पे ठहरती है
जमा करती है
कुछ लफ्ज़

और
रखकर
"मायनो" को
अपनी पीठ पर
सीने दर सीने फिरती है
आवाज दे देकर
जब ढूंढता है शायर

थकी हुई
किसी स्याही से लिपटी हुई
किसी सफ्हे पे सोयी मिलती है
थामो हाथ तो ........
नब्ज़ रुकी रुकी सी मिलती है
इन आवारा नज्मो की उम्र मगर बहुत लंबी होती है









(एक साल पहले लिखी गयी )

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