स्वर्ग की सड़क है पर कोई उस पर चलना नही चाहता ,नरक का कोई दरवाजा नही है पर लोग उसमे छेद करके घुस जाना चाहते है – अजात |
चौराहे पर रेड लाइट है पर पीछे गाड़ी में बैठे मह्शय को शायद मार्क्सवादी विचारधारा पसंद नही है ( लाल सलाम ) इसलिए लाल रंग देखकर भी वे हार्न दिये जा रहे है …उनके मुताबिक जब ट्रेफिक पुलिस वाला नही है तो मै क्यों खड़ा हूँ ..हार्न लगातार बज रहा है …साइड से वो मेरे पास से मुझे घूरते हुए निकल गए है ….जितनी बड़ी गाड़ी उतना बड़ा गुस्सा ……कोई रुकना नही चाहता है ... ऐसा लगता है पता नही कहाँ जाना है सबको ….जहाँ भी थोडी सी जगह दिखी …निकल लो ….क्रोध गाड़ी का एक्सीलेटर बन गया है ..लोग मोटरसाइकिल ओर ---स्कूटर की पिछली सीट पर क्रोध को बैठा कर बाहर निकलते है …उसकी आदत बिगड़ गई है वो हर जगह साथ चला आता है क्रोध ..अंहकार .. ?दोनों आपस में गुथ गये है ,मिल गये है .इतने की अलग –अलग शक्ल पहचानना मुश्किल है …सड़क पे आप हार्न बजाते है .. ऑफिस में मातहत को धकियाते है ओर ब्लॉग पे ?.किसी ने जरा सी वैचरिक असहमति हमसे दिखायी ….उसके गुण - दोषों पे माइक्रोस्कोप टिका दी …यही व्यक्ति जब आपकी प्रशंसा कर रहा था तब आप इस मुई माइक्रोस्कोप को धूल चटाते है ? हम उन्हें हमेशा सराहते है जो हमें पसंद करते है ..जिन्हें हम सरहाते है उन्हें हमेशा पसंद नही करते ….
एक सज्जन है जिन्होंने "लाफ्टर क्लब "बना रखा है ,वे कही भी मिल जाए आपके जीवन में खुशियों की महत्ता बताने लग जाते है .फ़िर एक फार्म निकालते है सामाजिक कार्यो के लिए आपसे चंदा मांगकर आपको उसका सदस्य बनाते है..सुबह सुबह उनके क्लब के सदस्य कालोनी के पार्क में जोर जोर से हँसते है .वे मुझसे खफा रहते है क्यूंकि कभी कभार मै अपने साडे चार साल के बेटे को पार्क में घुमाने ले जाता हूँ वो उन्हें हँसता देख मुफ्त में हँसता है......उनका बस चले तो खुशी का पेटेंट करा ले ..(जैसे पंडितो ने नर्क का भय दिखकर अपना बिसनेस चला रखा है .-फ़िर अजात )एक ओर मह्श्य है वे हमेशा ही खफा रहते है ,जब विजिलेंस में थे (अच्छी पोस्ट पे )तब इस बात पे खफा रहते थे की लोग काम इतना बड़ा कराते है ओर पैसे कम देते है .. ड्राईवर ओर मातहत को इत्ते जोर से सुबह सुबह डांटते थे की सारी कालोनी सहम जाती थी ...जो पैसे देता था उससे भी खफा जो नही देता उससे भी .....अब रिटायर हो गए है उन्हें सिस्टम से नाराजगी है ..समाज से नाराजगी है समाज भ्रष्ट है ...........क्रोध में पर एक खासियत है ये जाति धर्मं ,उम्र , लिंग - भेद जैसी सामान्य बातो से ऊपर उठ गया है भेदभाव नही करता .. मेरा १४ साल का भतीजा भी इंडियन क्रिकेट टीम से नाराज है
मेरा एक दोस्त कहा करता था की हम सब दौड़ रहे है...रेट रेस यू नो ....जो जितना जोर से दौड़ा उतना बड़ा चूहा ... इस रेस से परेशान भी है ओर इसे जीतना भी चाहते है ...इस भाग दौड़ में हम अपने आप को खो रहे है ....यही मै पिछली पोस्ट में कहना चाहता था .....के .....
साँस लेते है बिजली के तारो पे अब
रिश्ते कंप्यूटर के परदो पे बनते है